भारत से लेकर अरब, यूनानी, रोमन और चीन की दंतकथाओं में फिनिक्स यानी अमरपक्षी का जिक्र मिलता है. जिसके बारे में बताया जाता है कि ये पक्षी 1000 साल के जीवन चक्र के बाद खुद को अपने घोसले सहित जला लेता है. उस राख से दोबारा नया फिनिक्स पैदा होता है. बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का फिर से उभार किसी फिनिक्स की तरह कम नही है.


2024 लोकसभा चुनाव से पहले बिहार की सियासत यू-टर्न मोड में है. एक तरफ जातीय जनगणना के जरिए मंडल-कमंडल की सियासी तपिश बढ़ाने की कवायद चल रही है, तो दूसरी तरफ 90 दौर के बाहुबली राजनीति में फिर आने की तैयारी कर रहे हैं.


आनंद मोहन समेत कई बाहुबली नेता अपने-अपने लिए समीकरण फिट करने में जुटे हैं. बाहुबलियों के सक्रिय होने से बिहार की 40 में से 10 सीटों पर राजनीतिक दलों को खेल बिगड़ने की आशंका है. दिल्ली फतह में जुटे कई दल इसी हिसाब से समीकरण बना रहे हैं.


90 के दशक में बिहार की सियासत में बाहुबलियों का दबदबा था. आनंद मोहन, सूरजभान सिंह, पप्पू यादव जैसे नेता लोकसभा पहुंचने में भी कामयाब हुए थे. 2005 के बाद बिहार की सत्ता से बाहुबली साइड लाइन होते चले गए, लेकिन हाल के वर्षों में इस ट्रेंड में बदलाव आया है.


पत्नी और भाई के सहारे राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश में लगे कई बाहुबली अब खुद मैदान में कूद चुके हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि लोकसभा की किन-किन सीटों पर बिहार के बाहुबली गेमचेंजर साबित हो सकते हैं और क्यों?


1. वैशाली- गंगापार वैशाली बिहार की सबसे चर्चित लोकसभा सीट है, जहां से वर्तमान में दिनेश सिंह की पत्नी वीणा सिंह रालोजपा से सांसद हैं. वैशाली सीट पर कई बाहुबलियों की नजर है, इनमें आनंद मोहन, मुन्ना शुक्ला और राजकुमार सिंह का नाम प्रमुख हैं.


1976 के परिसीमन के बाद वैशाली लोकसभा सीट आस्तित्व में आया था. 15 लाख मतदाता वाले इस लोकसभा सीट पर भूमिहार, राजपूत और मुसलमान वोटरों का दबदबा है. यादव मतदाता भी वैशाली में बड़ी संख्या में है.


वैशाली में 8 में से 6 सांसद राजपूत बिरादरी के रहे हैं, जबकि 2 सांसद भूमिहार. 1994 के उपचुनाव में वैशाली सीट ने काफी सुर्खियां बटोरी थी. उस वक्त आनंद मोहन ने अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतार दिया था. 


लवली आनंद के खिलाफ तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने किशोरी सिन्हा को उतारा था, लेकिन राजपूत-भूमिहार गठजोड़ की वजह से लवली आनंद जीतने में सफल रही थी. इस हार को मुख्यमंत्री लालू यादव की हार बताई गई. 


जेल से रिहा होने के बाद आनंद मोहन शिवहर के साथ-साथ वैशाली में सक्रिय हो गए हैं. माना जा रहा है कि उनकी पत्नी फिर से वैशाली सीट से चुनाव लड़ सकती है. आनंद मोहन के साथ-साथ राजकुमार सिंह और मुन्ना शुक्ला भी इस सीट के लिए सक्रिय हैं.


मुन्ना शुक्ला पुराने समीकरण की दुहाई के भरोसे वैशाली में जमे हैं, तो राजकुमार सिंह सांसद रह चुके हैं और 2020 में तेजस्वी की मदद के बदले अपने खाते में सीट आने की उम्मीद पाले हुए हैं.


2. मुंगेर- 18वीं शताब्दी में मीर कासिम की राजधानी रहे मुंगेर में भी बाहुबली नेताओं का बोलबाला है. मुंगेर सीट से वर्तमान में जनता दल यूनाइटेड के ललन सिंह लोकसभा सांसद हैं. ऐसे में महागठबंधन से शायद ही किसी नेता को टिकट मिले.


मुंगेर में सूरजभान सिंह और अनंत सिंह जैसे बाहुबली नेता सक्रिय हैं. अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी मोकामा सीट से विधायक हैं, जबकि सूरजभान के भाई चंदन सिंह नवादा से सांसद हैं. सूरजभान की पत्नी 2014 में मुंगेर से सांसद रह चुकी हैं.


हाल ही में आरजेडी नेता अनंत सिंह की पत्नी को बागेश्वर दरबार में देखा गया था, जिसके बाद कई तरह की अटकलें तेज हो गई थी. ऐसा इसलिए क्योंकि आरजेडी ने बागेश्वर बाबा के कार्यक्रम का अघोषित बायकॉट कर रखा था. 


मुंगेर में भूमिहार मतदाताओं के साथ-साथ यादव वोटरों का भी दबदबा है. यहां इस बार सूरजभान सिंह और अनंत सिंह का असर देखने को मिल सकता है. 2019 में ललन सिंह का मुकाबला अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी से हुआ था.


3. नवादा- वैशाली और मुंगेर की तरह ही नवादा सीट की गिनती भी सबसे हॉट सीटों में होती है. यहां से वर्तमान में रालोजपा के चंदन सिंह सांसद हैं. 2014 में बीजेपी के गिरिराज सिंह सांसद चुने गए थे. 


नवादा में पिछली बार रालोजपा के चंदन सिंह का मुकाबला आरजेडी के विभा देवी से हुआ था. विभा देवी बाहुबली नेता राजवल्लभ यादव की पत्नी हैं. इस बार भी यहां विभा देवी और चंदन सिंह में ही मुख्य मुकाबला होने की संभावना है.


चंदन बाहुबली सूरजभान सिंह के भाई हैं. ऐसे में नवादा सीट की यह लड़ाई बाहुबलियों के बीच की लड़ाई ही मानी जाएगी. जातिगत समीकरण की बात करें तो नवादा में भूमिहार, राजपूत, यादव और मुस्लिम वोटरों का काफी दबदबा है.


4. मधेपुरा और सुपौल- आनंद मोहन के जेल से छूटने के बाद पप्पू यादव के साथ उनकी तस्वीर खूब वायरल हुई थी. बिहार के सियासी गलियारों में पप्पू यादव के भी महागठबंधन में शामिल होने की अटकलें लग रही है.


पप्पू यादव मधेपुरा से सांसद रह चुके हैं, जबकि उनकी पत्नी रंजीत रंजन सुपौल से लोकसभा जा चुकी है. दोनों सीट पर पप्पू यादव का खासा प्रभाव है. 2019 और 2020 के चुनाव में हार के बावजूद पप्पू यादव बिहार की पॉलिटिक्स सक्रिय है.


मधेपुरा और सुपौल सीट पर वर्तमान में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का कब्जा है, लेकिन यहां पप्पू यादव फैक्टर काफी महत्वपूर्ण है. सुपौल और मधेपुरा दोनों जगहों पर यादव-मुस्लिम वोटरों का दबदबा है.


पप्पू यादव 1991 में पूर्णिया लोकसभा सीट से पहली बार निर्दलीय चुनाव जीते थे. इसके बाद पूर्णिया सीट से ही वे 2 बार सांसद बने. 2004 में उन्होंने मधेपुरा सीट से ताल ठोका और संसद पहुंचने में सफल रहे.


5. महाराजगंज और सारण- आरजेडी का गढ़ सारण और महाराजगंज सीट पर पिछले चुनाव में बीजेपी का भगवा लहराया था. महाराजगंज सीट पर पिछली बार जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और सारण सीट पर राजीव प्रताप रुडी को जीत मिली थी. 


2013 के उपचुनाव में महाराजगंज सीट से बाहुबली प्रभुनाथ सिंह ने जीत दर्ज की थी, लेकिन इस वक्त सिंह रांची जेल में बंद हैं. उनकी रिहाई की मांग भी जोरों से उठ रही है. 


प्रभुनाथ सिंह के भाई केदार सिंह बनियापुर सीट से विधायक हैं. उनके भतीजे भी राजनीति में सक्रिय हैं. ऐसे में इस बार सारण और महाराजगंज सीट पर प्रभुनाथ परिवार का दबदबा देखने को मिल सकता है. 


राजपूत बहुल्य महाराजगंज सीट पर मुस्लिम-यादव समीकरण खेल बना और बिगाड़ सकते हैं. आरजेडी इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रभुनाथ परिवार को काफी तरजीह देती है. 


सारण सीट का भी समीकरण इसी तरह का है. यहां भी राजपूत और यादव वोटरों का दबदबा है. ऐसे में 2024 के चुनाव में प्रभुनाथ सिंह का परिवार इमोशनल कार्ड के जरिए खेल कर सकते हैं. 


6. शिवहर और खगड़िया- शिवहर और खगड़िया सीट पर इस बार बाहुबलियों का दबदबा देखने को मिल सकता है. आनंद मोहन के रिहाई के बाद शिवहर सीट का समीकरण पूरी तरह बदलने की उम्मीद है. 


शिवहर सीट पर 2009 से ही बीजेपी की रमा देवी चुनाव जीत रही हैं. रमा देवी बिहार के पूर्व मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी हैं. आनंद मोहन की रिहाई के बाद रमा देवी ने नीतीश सरकार पर निशाना साधा था. 


शिवहर सीट पर वैश्व वोटरों का दबदबा है. इसके बाद मुस्लिम और राजपूत वोटर भी बड़ी संख्या में है. शिवहर में वैश्य 25 फीसदी और मुस्लिम 18 फीसदी है. आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद 2020 में शिवहर विधानसभा का चुनाव जीतने में सफल हुए थे.


बात खगड़िया की करें तो यहां भी बाहुबलियों का दबदबा है. आनंद मोहन का होम टाउन सहरसा में है. सहरसा का एक ब्लॉक भी खगड़िया लोकसभा के अंदर ही है. आनंद मोहन के अलावा यहां बाहुबली रणवीर यादव का भी अच्छा-खासा प्रभाव है. 


रणवीर यादव का पहली बार लक्ष्मीपुर तौफीर दियारा नरसंहार में नाम आया. रणवीर यादव 1990 में पहली बार निर्दलीय लड़कर बिहार विधानसभा पहुंचे थे. खगड़िया में मुस्लिम, यादव और निषाद वोटरों का वर्चस्व है.


यहां 3 लाख यादव और डेढ़-डेढ़ लाख निषाद और मुस्लिम वोटर्स हैं.


7. पाटलिपुत्र- राजधानी पटना की ग्रामीण सीट पाटलिपुत्र पर भी इस बार बाहुबलियों का दबदबा रह सकता है. 2019 में पाटलिपुत्रा सीट से बीजेपी के रामकृपाल यादव चुनाव जीते थे. इस बार यहां बाहुबली रीतलाल यादव गेम बिगाड़ने की तैयारी में हैं.


रीतलाल यादव 2020 में पटना के दानापुर सीट से विधायक बने थे. पाटलिपुत्र सीट पर 2019 में आरजेडी से लालू यादव की बेटी मीसा भारती चुनाव लड़ी थी, लेकिन हार गई थी. इस बार आरजेडी यहां रणनीति बदल सकती है. 


पाटलिपुत्रा सीट यादव बहुल है और यहां पर दलित और मुस्लिम गेम बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाते हैं.


अधिकांश बाहुबली सत्ताधारी दल के साथ 
बिहार के अधिकांश बाहुबली सत्ताधारी दल के साथ है. इनमें अनंत सिंह, प्रभुनाथ सिंह, रीतलाल यादव और राजवल्लभ यादव आरजेडी से हैं. आनंद मोहन के भी आरजेडी में जाने की चर्चा है.


वहीं सूरजभान सिंह लोजपा से हैं, जो बीजेपी के साथ हैं. आने वाले वक्त में पप्पू यादव के भी सत्ताधारी दल के साथ जाने की बात कही जा रही है. रणवीर यादव पहले जेडीयू में थे, लेकिन 2019 के बाद वे नीतीश से दूर हो गए.