बांका: जिले के रजौन प्रखंड क्षेत्र के नवादा बाजार के रहने वाले दो युवकों ने प्लास्टिक के कचरे से नई तकनीक का खोज किया है. इस नई तकनीक की मदद से ये दोनों युवक प्लास्टिक के कचरे से पेट्रोल, डीजल, मिट्टी तेल के साथ-साथ रसोई गैस तैयार कर रहे हैं और इसका वे खुद उपयोग भी कर रहे हैं. इसकी हर तरफ चर्चा हो रही है. बताया जा रहा है कि नवादा बाजार के निवासी महेश प्रसाद सिंह के पुत्र वरुण कुमार सिंह (27 वर्ष) और राजेन्द्र चौधरी के पुत्र मुनिलाल (24 वर्ष) दोनों दोस्त गुजरात के राजकोट में किसी लोहा फैक्ट्री में मजदूरी करते थे. कोरोना काल में काम बंद होने के बाद वे घर आ गए थे.


दोनों दोस्तों ने तरह-तरह के किए प्रयोग


दोनों युवकों ने बताया कि विगत वर्ष ठंड के समय में अलाव तापने के दौरान वे प्लास्टिक डालकर जलाते थे. इसी क्रम में उन दोनों ने पाया कि प्लास्टिक बहुत देर तक जलने के साथ-साथ काफी धुंआ निकालता है. इसी को देखकर उनके मन में ख्याल आया कि आखिर इस जले हुए प्लास्टिक के धुएं से क्या बनता है? इसके बाद दोनों ने मिलकर तरह-तरह के प्रयोग करने शुरू कर दिए और फिर दोनों ने प्लास्टिक के कचरे से पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और रसोई गैस बनाने के नई तकनीकों का विकास कर लिया.


प्लास्टिक के कचरे को करने लगे इकट्ठे


इस सबंधं में दोनों युवकों ने बताया कि उन्हें इस तकनीक को विकास करने के लिए आस पास के गली-मोहल्ले और गांवों में घूम-घूमकर प्लास्टिक के कचरे को इकट्ठा करने लगे. इस दौरान समाज के लोगों से काफी कुछ ताना सुनने को मिला, लेकिन उन्होंने लोगों के ताने को सुनते हुए हर बात की अनदेखी करते हुए अपना प्रयास जारी रखा.


'साफ प्लास्टिक से ज्यादा पेट्रोल और डीजल तैयार होता है'


वरुण और मुनिलाल ने बताया कि इस नई तकनीक की मदद से करीब 4 किलो प्लास्टिक को 400 डिग्री तापमान पर गर्म करने पर करीब 2 लीटर डीजल और 800 डिग्री तापमान पर गर्म करने पर डेढ़ लीटर पेट्रोल तैयार कर रहे हैं. इस तकनीक से तैयार किए गए पेट्रोल को वे अपनी बाइक में उपयोग भी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि गंदा प्लास्टिक के अपेक्षा साफ प्लास्टिक से ज्यादा पेट्रोल और डीजल तैयार होता है. दोनों युवकों ने आगे बताया कि इस विधि से पाइप की मदद से अलग-अलग बर्तनों में डीजल, पेट्रोल के साथ-साथ मिट्टी तेल और रसोई गैस भी आसानी से तैयार किए जा सकते हैं.


सरकार और जनप्रतिनिधियों से लगाई गुहार


युवकों ने बताया कि इस तकनीक को विकसित करने में उन्हें करीब 25 से 30 हजार रुपए की लागत लगी है, जिससे वे गैस चूल्हा, गैस सिलिंडर, गैस वेल्डिंग, ऑक्सीजन सिलिंडर, पाइप आदि खरीदे हैं. उनकी परिवारिक और आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने की वजह से उन्हें इस तकनीक को विस्तृत रूप देने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. दोनों ने सरकार और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई है कि उन्हें कुछ आर्थिक सहायता मिल जाती तो इस नई तकनीक से कचरा प्रबंधन होने के साथ-साथ देश में पेट्रोल और डीजल जैसे प्राकृतिक संसाधनों को तैयार करने में बहुत मदद मिलती.


वहीं, इस संबंध में राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज बांका के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर सुनील चन्द्र साह ने बताया कि पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ प्लास्टिक में भी हाइड्रोकार्बन है, जिसके कारण यह बिल्कुल संभव है.


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