Saraswati Puja 2023: इस साल 26 जनवरी को सरस्वती पूजा है. मां सरस्वती विद्या का वर देने विद्यार्थियों के बीच आ रही हैं. ऐसे में मूर्तियों की भारी मांग को देखते हुए मूर्तिकार मूर्ति निर्माण में मशगूल हैं. बिहार के पूर्णिया से आई तीन मूर्तिकार बेटियों की ये कहानी अनूठी है. मूर्तिकार पिता का मान बढ़ा रहीं ये बेटियां पढ़ाई और घर के दूसरे कामकाज के साथ बीते पांच वर्षों से मूर्ति निर्माण में जुटी हैं. इन होनहार बेटियों की कारीगरी ऐसी कि दुकान की सारी मूर्तियों की एडवांस बुकिंग हो चुकी है. मूर्ति खरीदार इन बेटियों की मूर्ति को खूब पसंद कर रहे हैं. 


शहर के कप्तान पाड़ा से लेकर कटियार मोड़, थाना चौक, मधुबनी, काली टोला जैसे कई स्थानों पर मां सरस्वती की मूर्ति बनाई जा रही है. मूर्ति खरीदारों के बीच मूर्तिकार रामू की बेटियों द्वारा बनाई जा रही मां सरस्वती की मूर्ति की ही डिमांड है. मूर्तिकार रामू बताते हैं कि इनकी सभी मूर्तियां बिक चुकी हैं. कई ऐसे खरीदार हैं जो लौट रहे हैं, लेकिन अब समय नहीं कि मूर्तियां बनाई जा सके. लिहाजा उन्हें खरीदारों को वापस लौटने का मलाल है.


पिता से सीखा है हुनर


शहर के रामबाग इलाके में रहने वाली मूर्तिकार राजू की बड़ी बेटी पूजा बताती है कि मूर्तिकार पिता के हुनर को संजोए रखने के लिए करीब पांच साल पहले उन्होंने ये जिम्मेदारी उठाई थी. बाकी बहने भी मूर्ति निर्माण में उनका हाथ बटाती हैं. मां सरस्वती की मूर्तियों को फाइनल टच दे रहीं मंझली बेटी आरती ने कहा कि उनके पिता दशकों से मूर्ति बनाते आ रहे हैं. लिहाजा वे बचपन से पिता को मूर्तियों की कारीगरी करते हुए देखती आ रही थी. उन्होंने पिता से विरासत में मूर्ति निर्माण की कला सीखी. उनकी मूर्तियों की डिमांड बाजार में अधिक है. मूर्तियों की नक्काशी से लेकर, मां को पहनाए जाने वाले परिधान सब कुछ भिन्न होते हैं. वे एक दुल्हन की तरह मां सरस्वती को रूप देती हैं. यहां तक कि हाथों में मेहंदी तक लगाई जाती है.


तीसरी बेटी एग्जाम की तैयारी के बावजूद मूर्ति को देती वक्त


इन दिनों मूर्तिकार राजू की तीसरी बेटी पुष्पा की स्नातक पार्ट वन की परीक्षा चल रही है. वे कहती हैं पढ़ाई के बाद जितना भी समय शेष बचता है, समय बर्बाद करने के बजाए वे मां सरस्वती की मूर्ति को फाइनल टच देने चली आती है. उन्हें खुशी है कि तीनों बहनों और दो भाइयों ने पिता की जिम्मेदारी उठा ली है. उनके पिता को भी उन पर नाज है.  ये जानकर उन्हें बेहद खुशी होती है. मां संतोषी देवी कहती हैं कि उनकी बेटियां उनके लिए वरदान हैं. वे बेटियों को बेटों से कम नहीं समझती.  उनकी बेटियों ने ये साबित भी कर दिखाया कि बेटियों बेटों से बेहतर हैं. 


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