जहानाबाद: साम्प्रदायिक सौहार्द का नायाब नमूना काको स्थित बीबी कमाल की मजार अपने अंदर कई कहानियों को समेटे हुए है. किस्से-कहानियां सिर्फ नवाबी की ही नहीं हैं, इसके अलावा भी मजार से जुड़े किस्से बेशुमार हैं. बता दें कि सूफी संतों की फेहरिस्त में बीबी कमाल का नाम प्रमुख लोगों में है. आईने अकबरी में महान सूफी संत मकदुमा बीबी कमाल की चर्चा की गई है.
बीबी कमाल की वजह से न केवल जहानाबाद बल्कि पूरे विश्व में सूफीयत की रौशनी जगमगायी है. इन्हें देश दुनिया की महान महिला सूफी होने का गौरव हासिल है. इनका मूल नाम मकदुमा बीबी हदिया उर्फ बीबी कमाल है. दरअसल बचपन से ही उनकी विशिष्टता को देखकर उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जराजौत रहमतूल्लाह अलैह उन्हें प्यार से बीबी कमाल के नाम से पुकारते थे, यही कारण है कि वह इसी नाम से चर्चित हो गयी.
बीबी कमाल के माता का नाम मल्लिका जहां था. बीबी कमाल के जन्म और मृत्यु के बारे में स्पष्ट पता तो नहीं चलता है, लेकिन जो जानकारी सामने आयी है उसके मुताबिक 1211 ए.डी में उनका जन्म हुआ था और लगभग 1296 एडी में इंतकाल हुआ था. बीबी कमाल में काफी दैवीय शक्ति थी. कहा जाता है कि एक बार जब बीबी कमाल काको आई थी तो यहां के शासकों ने उन्हें खाने पर आमंत्रित किया.
खाने में उन्हें चूहे और बिल्ली का मांस परोसा गया. बीबी कमाल अपने दैवीय शक्ति से यह जान गयी कि प्याले में जो मांस है वह किस जीव का है. फिर उन्होंने उसी शक्ति से चूहे और बिल्ली को जिंदा कर दिया. बीबी कमाल एक महान विदुषी और ज्ञानी सूफी संत थीं, जिनके नैतिकता, सिद्धांत, उपदेश, प्रगतिशील विचारधारा, आडम्बर और संकीर्णता विरोधी मत, खानकाह और संगीत के माध्यम से जन समुदाय और इंसानियत की खिदमत के लिए प्रतिबद्ध और समर्पित थीं.
काको स्थित बीबी कमाल के मजार से 14 कोस दूर बिहारशरीफ में उनकी मौसी मखदुम शर्फुद्दीन यहिया मनेरी का मजार है. ठीक इतनी ही दूरी पर कच्ची दरगाह पटना में उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जगजौत रहमतुल्लाह अलैह का मजार है.
रुहानी इलाज के लिए प्रसिद्ध है बीबी कमाल का मकबरा
महान सूफी संत बीबी कमाल का मजार मुख्य दरवाजा के अंदर परिसर में अवस्थित है रुहानी इलाज के लिए प्रसिद्ध मन्नत मानने और ईबादत करने वाले लोग इनके मजार को चादर एवं फूलों की लरीयों से नवाजते है. यहां उर्स के मौके पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
जनानखाना से दरगाह शरीफ के अंदर जाने के साथ एक काले रंग का पत्थर लगा हुआ है, जिसे कड़ाह कहा जाता है. इससे आसेब जदा और मानसिक रुप से विक्षिप्त लोग पर जूनूनी कैफियततारी होती है. इस पत्थर पर दो भाषा उत्कीर्ण हैं जिसमें एक अरबी है, जो हदीस शरीफ का टुकड़ा है और दूसरा फारसा का शेर. इसी पर महमूद बिन मो. शाह का नाम खुदा है, जो फिरोज, शाह तुगलक का पोता था.
दरगाह के अंदर वाले दरवाजे से सटा एक छोटा सा सफेद और काला पत्थर मौजूद है. लोगों का कहना है कि इस पत्थर पर उंगली से घिसकर आंख पर लगाने से आंख की रोशनी बढ़ जाती है. आम लोग इसे नयन कटोरी के नाम से जानते है. दरगाह के ठीक सामने, सड़क के दूसरे तरफ कुआं है, इसके पानी के उपयोग से लोगों के स्वस्थ्य होने का किस्सा मशहूर है. बताया जाता है कि फिरोज शाह तुगलक, जो कुष्ट से ग्रसित था, ने इस पानी का उपयोग किया और रोग मुक्त हो गया. दरगाह से कुछ दूरी पर अवस्थित वकानगर में हजरत सुलेमान लंगर जमीं का मकबरा है, जो हजरत बीबी कमाल के शौहर थे.
क्या कहते हैं शिक्षाविद
इस वाबत शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता शकील अहमद काकवी कहते है कि यहां की जमीन जन्नत की जमीन से बदली गयी थी. दरअसल काको अपने आप में वो हकीकत और अफसाना हैं कि जितना सुनते जाइए उतना ही दिलचस्प होता जाता है. जो भी इसका बयान सुनाता है, एक नई दास्तान सुनाता है. एक शहर, जिसका खयाल आते ही जहन में तहज़ीब की शमाएं रोशन हो उठती हैं. जिसका जिक्र छिड़ते ही दिल की गलियां गुलशन हो उठती हैं. जिसका नाम लेकर आशिक अहदे वफा करते हैं, सुखन-नवाज जिसके होने का शुक्र अदा करते हैं.
दरअसल काको वो तिलिस्म हैं जिसमें कैद हुआ शख्स कभी आजाद नहीं होना चाहता. शकील कहते हैं कि काको अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दिल से लगाए हुए अपने समय से कदम मिला रहा है. काको की रूह और उसके किरदार में जरा भी तब्दीली नहीं हुई है.
सूफी सर्किट में शामिल है बीबी कमाल का मकबरा
इधर, सरकार ने महान महिला सूफी संत बीबी कमाल के मकबरे की महत्ता को देखते हुए इसे सूफी सर्किट से जोड़कर धार्मिक महता के साथ-साथ पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास किया है और हर साल सितंबर माह में सूफी महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जहां देश विदेश के नामचीन सूफी गायक अपने सूफ़ियाना गीत संगीत की मुजायरा करते है.
इस बावत जहानाबाद के डीएम नवीन कुमार ने बताया कि शासन प्रशासन की ओर से सूफी सर्किट के विकास के लिए कई बड़े कदम उठाये गय हैं. प्रशासन काको में पर्यटन के साथ-साथ सर्वांगीण विकास को सतत प्रयत्नशील है. इस वर्ष कोविड-19 के प्रकोप के कारण सूफी महोत्सव जैसा बड़ा आयोजन तो नहीं लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कार्यक्रम कैसे हो इसको लेकर एडीएम स्तर के वरीय अधिकारियों की एक बैठक आयोजित कर अंतिम निर्णय लिया जायेगा .