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नीतीश कुमार के वोट बैंक पर बड़ा खतरा! क्या ‘कास्ट सेंसस’ को लेकर फंसेगा मामला? कुर्मी की उपजातियां उठा सकती है ये कदम 

Nitish Kumar: नीतीश बीते 17-18 सालों से बिहार में मुख्यमंत्री बने आ रहे हैं. साल 1994 में लालू ये अलग होने के बाद समता पार्टी बनी थी. सीएम के साथ शुरू से कुशवाहा, जैसवार, धानुक समेत अन्य समाज रहा है.

बिहार: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) लगातार 2005 से अभी तक मुख्यमंत्री पद पर बने हैं. बिहार में सबसे ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने और आठ बार शपथ लेने का रिकॉर्ड भी कायम कर चुके हैं. इसकी मुख्य वजह यह है कि उनका मुख्य वोट बैंक कुर्मी, कोइरी, कुशवाहा, धानुक, जैसवार, चंदेल, समसवार, सहित कई पिछड़ा समाज नीतीश कुमार के साथ शुरू दौर से है. नीतीश कुमार इन जातियों को अपना वोट बैंक मानते हैं. साल 1994 में लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav) के जनता दल से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी अलग समता पार्टी बनाई थी.

पहली बार में ही नीतीश कुमार को मिली थी सात सीट 

उन्होंने 1994 के 12 फरवरी को पटना के गांधी मैदान में कुर्मी चेतना विशाल रैली किया था. इसमें इन सब जातियों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी ली थी. लालू प्रसाद से अलग होने के छह महीने बाद 1995 के विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रथम बार में ही सात सीटें मिली थी. उसके बाद 2000 में नीतीश कुमार को इन्हीं जातियों का बदौलत 34 सीटें मिली थी. साल 2005 में बीजेपी के साथ गठबंधन कर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए, लेकिन पिछले कुछ सालों से नीतीश कुमार का यह वोट बैंक में बिखराव है. जेडीयू के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा अब 1994 की बात दोहराते हुए अपनी हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं.

नहीं हो रही उपजाति की गणना 

साल 2020 के चुनाव में कुशवाहा समाज ने अपनी ताकत दिखाई थी और कई जगहों पर जनता दल यूनाइटेड को कुशवाहा समाज ने वोट भी नहीं दिया था. कहीं कहीं 10 से 15% वोट ही  कुशवाहा समाज का मुख्यमंत्री को मिला था. अब नीतीश कुमार अति पिछड़ों को एकजुट और आरक्षण में बढ़ोतरी की राजनीति के तहत बिहार में जाति आधारित गणना करवा रहे हैं,  लेकिन इस गणना में मुख्य जातियों की गणना हो रही है. उप जातियों की गणना नहीं होगी. मुख्य जाति को कुर्मी बनाया गया है उसमें उपजाति में धानुक, जैसवार, पटेल, चंदेल और समसवार शामिल है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद कुर्मी जाति से आते हैं.वह अपनी जाति और उपजाति की वोट बैंक को अभी तक संभाल कर रखने में कामयाब रहे हैं. देखा जाए तो बीते दिनों उपेंद्र कुशवाहा जिस तरह से पार्टी में बगावत कर रहे हैं और अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं तो वहीं धानुक जाति के लोग भी अब अपनी हिस्सेदारी खोज रहे हैं.

धानुक समाज का गुस्सा देख चुके हैं सीएम 

अखिल भारतीय धानुक उत्थान महासंघ के बिहार प्रदेश अध्यक्ष बलराम मंडल ने पूरे जिले के धानुक समाज के जिला अध्यक्षों के साथ बैठक करने का एलान किया है. कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस तरह से राजनीति कर रहे हैं और जाति आधारित जनगणना में धानुक समाज को कुर्मी जाति में जोड़ने का काम कर रहे हैं वह समाज कभी बर्दाश्त नहीं करेगा.  नीतीश अपनी जाति कुर्मी को आगे कर रहे हैं और हम लोग की जातियों को अपनी जाति बताकर अपना वोट बैंक बना रहे हैं. ये उनके लिए हानिकारक होगा. नीतीश कुमार जब से लालू प्रसाद यादव से अलग हुए तब से धानुक समाज उनके साथ रहा है. हर चुनाव में खुलकर नीतीश कुमार का सपोर्ट किया है. बलराम मंडल ने कहा कि इससे पहले भी धानुक समाज का गुस्सा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देख चुके हैं.

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