गया: जब दुनिया में आधुनिक घड़ियों का आविष्कार नहीं हुआ था, तब लोग दिन समय देखने के लिए धूप घड़ियों का प्रयोग किया करते थे. इन घड़ियों का सबसे अधिक प्रयोग पश्चमी एशिया मिस्र की सभ्यताओं में किया जाता था. समय बीतता गया और घड़ियों का रूप भी बदलता गया. नई-नई तकनीकों से वैज्ञानिकों द्वारा घड़ी तैयार किया जाता रहा है. लेकिन इस आधुनिक युग में ईसा पूर्व बनी धूप घड़ियों का महत्व कम नहीं हो सका है.


गया के विष्णुपद मंदिर परिसर में आज से करीब 160 वर्ष पहले स्थापित की गई धूप घड़ी आज भी सही समय बताने के साथ-साथ लोगों को आकर्षित कर रही है. लेकिन जानकारी के अभाव में यह आने वाले तीर्थ यात्री और श्रद्धालु घड़ी को देवता समझ पर पूजा अर्चना कर फूल चढ़ा देते हैं. वहीं, सिंदूर व अन्य पूजन सामग्री भी चढ़ा देते हैं.


बताया जाता है कि विष्णुपद मंदिर परिसर में इस घड़ी को विक्रम संवत 1911 में पंडित हीरालाल भईया द्वारा स्थापित किया गया था. तब से यह घड़ी लोगों को समय की जानकारी दे रही है.


बता दें कि सूर्य घड़ी देखने का तरीका होता है. बताया जाता है कि जैसे-जैसे सूर्य पूर्व से पश्चिम की तरफ जाता है उसी तरह किसी वस्तु की छाया पश्चिम से पूर्व की तरह चलती है, सूर्य लाइनों वाली सतह पर छाया डालती है, जिससे दिन के समय घन्टो का पता चलता है. जमीन से 3 फिट की ऊंचाई पर गोलाकार आकार में एक पाया स्थापित कर पाया के ऊपरी हिस्सा पर मेटल का एक लगा है, जिस पर नबंर अंकित है, जो सूर्य के रोशनी के अनुसार समय है.