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मिशन 2025 क्या में सफल हो जाएगी JDU की खास रणनीति? RJD की भीतरी उथल-पुथल का उठा पाएगी फायदा, समझें पूरा गणित

Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियां सियासी तैयारी करने में जुटी है. जातीय समीकरणों को लेकर भी राजनीतिक चर्चाएं बढ़ गई हैं.

Bihar Assembly Election 2025: बिहार में चुनावी साल शुरू होते ही जातीय समीकरणों की राजनीति तेज हो जाती है. इस बार, जेडीयू ने राजपूत समुदाय को साधने के लिए महाराणा प्रताप पुण्यतिथि को “राष्ट्रीय स्वाभिमान दिवस” का नाम देकर एक नई रणनीति अपनाई है. जिसे जेडीयू एमएलसी संजय सिंह के सरकारी आवास पर आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी हिस्सा लिया. उनके अलावा सुमित कुमार,अशोक चौधरी,वशिष्ठ नारायण सिंह,जयंत राज और तमाम अन्य नेताओं ने इस कार्यक्रम में शिरकत की. इस कार्यक्रम ने जातीय समीकरणों को लेकर राजनीतिक चर्चाएं बढ़ा दी हैं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी की रणनीति की झलक भी दी है. 

'महाराणा प्रताप का गौरवशाली इतिहास और वर्तमान राजनीति' 

महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के ऐसे महान योद्धा हैं, जिनकी वीरता और स्वाभिमान के किस्से हर भारतीय को गौरवान्वित करते हैं. उनका नाम राजपूत समाज के लिए गर्व का प्रतीक है. जेडीयू द्वारा उनकी पुण्यतिथि को “राष्ट्रीय स्वाभिमान दिवस” का स्वरूप देकर एक सामाजिक और राजनीतिक संदेश दिया गया है. यह आयोजन न केवल राजपूत समुदाय की भावनाओं से जुड़ने की कोशिश है, बल्कि इस समुदाय के समर्थन को हासिल करने का भी एक तरीका है.

 जेडीयू की रणनीति और संजय सिंह की भूमिका 

 इस कार्यक्रम के केंद्र में जेडीयू एमएलसी संजय सिंह हैं, जिन्होंने इसे अपने राजनीतिक भविष्य और विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया. संजय सिंह, जो बाढ़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं, इस आयोजन के माध्यम से राजपूत समाज में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस कार्यक्रम में मौजूदगी यह दिखाती है कि जेडीयू इस समुदाय को साधने के लिए पूरी तरह गंभीर है. राजपूत समाज बिहार की कई विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है. इसको अपने पक्ष में करना जेडीयू की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा बन चुका है.

आरजेडी के भीतर उथल-पुथल और जेडीयू का अवसर 

बिहार में हुई जातीय जनगणना से साफ़ है कि राज्य में राजपूतों की संख्या लगभग 3.5% है. जेडीयू की इस पहल के पीछे आरजेडी की अंदरूनी कलह भी एक प्रमुख कारण है. हाल ही में आरजेडी के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया, जिससे राजपूत समाज के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. 18 जनवरी को आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यक़ारिणी की बैठक हुई. लालू प्रसाद यादव की मौजूदगी में हुई इस बैठक में जगदानंद सिंह और उनके बेटे सुधाकर की अनुपस्थिति ने इस नाराजगी को और स्पष्ट कर दिया. यह स्थिति जेडीयू के लिए एक बड़ा मौका है, जो महाराणा प्रताप जैसे गौरवशाली प्रतीक के माध्यम से राजपूत वोट बैंक के समर्थन को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है.

 जातीय राजनीति का प्रभाव 

 बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती है. चाहे यादव-मुस्लिम गठजोड़ हो या दलित और अति पिछड़ों का समर्थन, हर राजनीतिक दल किसी न किसी जातीय समूह को साधने की कोशिश करता है. जेडीयू एमएलसी संजय सिंह के तरफ़ से किया गया आयोजन भी उसी परंपरा का हिस्सा है, जहां महाराणा प्रताप जैसे ऐतिहासिक नायकों का इस्तेमाल एक जातीय समूह को एकजुट करने के लिए किया जाता है.

 संजय सिंह ने एबीपी न्यूज़ से इस पर बातचीत में कहा कि 2019 से इस कार्यक्रम को करते आ रहे हैं. ये कार्यक्रम केवल महाराणा प्रताप के प्रति सम्मान व्यक्त करने और उनके बलिदानों को याद करने का एक प्रयास है. 

क्या जेडीयू की रणनीति सफल होगी?
चुनावी साल में जेडीयू ने राजपूत समाज को साधने के लिए जो रणनीति अपनाई है, वह फिलहाल एक मजबूत शुरुआत की तरह दिखती है. आरजेडी के भीतर राजपूत नेताओं की नाराजगी को जेडीयू भुनाने की कोशिश में है, लेकिन यह देखना बाकी है कि इस प्रयास का कितना असर पड़ेगा. बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों का खेल जारी रहेगा और राजपूत समाज को साधने की यह कोशिश चुनावी परिणामों पर कितना प्रभाव डालेगी, यह आने वाले समय में साफ होगा. लेकिन इतना तय है कि “राष्ट्रीय स्वाभिमान दिवस” जैसे आयोजन राजनीति और समाज के बीच के उस धुंधले फर्क को और कम कर रहे हैं, जो जातीय समीकरणों पर आधारित है.

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