पटना: बिहार विधान सभा चुनाव के झोंके में हर पल हवा का रुख बदल रहा है. आज लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी के खेमें में बढोतरी हुई और लवली आनंद ने अपने बेटे चेतन आनंद के साथ आरजेडी का दामन थामा है. राबड़ी देवी के आवास 10 सर्कुलर रोड पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने इन्हें सदस्यता दिलाई.


लवली आनंद ने दी ये प्रतिक्रिया


आरजेडी की सदस्यता ग्रहण कर लवली ने पार्टी के प्रति समर्पण तुरंत जाहिर किया और कहा, "हम आज तम मन धन से राजद के सदस्य हो गए हैं. अपने समर्थकों से हम कहना चाहते हैं कि नीतीश सरकार ने हमें धोखा दिया है. आनंद मोहन जी को जेल भेजने वालों को जनता जवाब देगी. हमारे समर्थक अब राजद के सदस्य हो गये हैं. हम अपने समर्थकों से कहना चाहते हैं कि ये जुल्मी सरकार को विधानसभा चुनाव में सबक सिखाए व सत्ता से बेदखल करे. हमलोग तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आये हैं. आज आनंद मोहन जेल में हैं. उन लोगों ने खासकर राजपूत समाज को छलने का काम किया है.''


लवली आनंद ने कहा, ''सभी दिग्गजों को सरकार ने जेल में डाल दिया है. हम लोगों से कहना चाहते हैं वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंके. पार्टी हमें जो भी जिम्मेदारी देगी, हम उसे निभाएंगे"


आरजेडी ने खुलकर किया स्वागत


वहीं आरजेडी ने अपने खेमें में बढ़ोतरी और एनडीए से लड़ाई के लिए मिले एक और पिलर का स्वागत खुलकर किया. पार्टी के इन नए सदस्यों की हौसला आफजाई करते हुए आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा, "राजद ने सम्मानपूर्वक लवली आनंद का स्वागत किया है. आनंद मोहन जेल में हैं, लेकिन लवली आनंद व उनके पुत्र चेतन आनंद राजद को सहयोग करेंगे. ताकि विश्वासघात व सांप्रदायिक ताकतों को कैसे परास्त किया जाए. लवली आनंद जी अपने समर्थकों के साथ राजद में शामिल हुई हैं. तेजस्वी यादव ने अपने हस्ताक्षर से अपने दल में शामिल कराया है."


कौन हैं लवली आनंद?


लवली आनंद ने पॉलिटिकल करियर अपने पति आनंद मोहन सिंह की बिहार पीपुल्स पार्टी से शुरू किया था. लवली आनंद राजनीतिक सफर की शुरुआत बिहार पीपुल्स पार्टी से जरूर हुई थी, लेकिन बाद के दिनों में उन्होंने कई पार्टियां बदलीं और सांसद के साथ ही विधायक भी रही. 1994 में वैशाली संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा को हराया था, लेकिन इस जीत को बरकरार नही रख सकीं. साल 2014 के आम चुनाव से पहले वह कांग्रेस में थीं, लेकिन कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर चुनाव लड़ीं, जिसमें उनकी हार हो गईं. साल 2015 में वह जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) से भी जुड़ी थीं. जनवरी 2019 में ये फिर से कांग्रेस से जुड़ीं और आज यानि 28 सितम्बर 2020 से फिर आरजेडी की हो गईं.


अब बिहार में किसका साथ किसे फायदा पहुंचाता है ये तो चुनाव परिणाम ही तय करेगा लेकिन इतना तो साफ है कि इस दौरान कई घर टूटते दिखेंगें तो कई जुड़ते.


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