Bihar Caste Census: बिहार में विवादों में घिरी जाति जनगणना, ट्रांसजेंडर का कोड निर्धारित होने पर मचा बवाल
Bihar Caste Census 2023: जातिगत जनगणना से पहले विभिन्न जातियों को कुल 215 कोड आवंटित किए गए हैं और सूची में थर्ड जेंडर को भी एक जाति कोड के आवंटन के साथ एक अलग जाति माना गया है.
Bihar Caste Census News: बिहार में जारी जाति आधारित गणना में ट्रांसजेंडर (Transgender) को एक जाति के रूप में दर्शाए जाने से गणना को लेकर ताजा विवाद खड़ा हो गया है. बिहार में जातियों (Bihar Caste Census )की अब संख्या के रूप में कोड के आधार पर पहचान की जाएगी. प्रत्येक जाति को 15 अप्रैल से 15 मई तक जाति आधारित गणना के महीने भर चलने वाले दूसरे चरण के दौरान उपयोग के लिए एक संख्यात्मक कोड दिया गया है.
विभिन्न जातियों को कुल 215 कोड आवंटित किए गए हैं और सूची में थर्ड जेंडर को भी एक जाति कोड के आवंटन के साथ एक अलग जाति माना गया है. बिहार स्थित एक स्वयं सेवी संगठन दोस्ताना सफर की संस्थापक सचिव रेशमा प्रसाद ने राज्य सरकार की ओर से चल रही कवायद में थर्ड जेंडर को एक अलग जाति मानने के कदम को आपराधिक कृत्य करार देते हुए शुक्रवार को कहा कि किसी की लैंगिक पहचान कैसे हो सकती है. एक मनुष्य उसकी जाति बन जाता है. क्या पुरुष या महिला को जाति के रूप में माना जा सकता है. इसी तरह ट्रांसजेंडर को जाति के रूप में कैसे माना जा सकता है. ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग किसी भी जाति के हो सकते हैं. रेशमा प्रसाद ने कहा कि यह कदम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण से जुड़े नियमों के खिलाफ है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के गैर भेदभाव को रोकने की बात करता है.
'ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों से अन्याय'
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के समाज कल्याण विभाग को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि किसी व्यक्ति की लिंग पहचान को जाति के रूप में नहीं माना जाना चाहिए. मैं निश्चित रूप से इस संबंध में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखूंगा और इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग करूंगा. यह ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के साथ सरासर अन्याय है.
लिंग को जाति का रूप देना गलत
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की कुल जनसंख्या 40827 है. इसी तरह के विचार को प्रतिध्वनित करते हुए ट्रांस अधिकार कार्यकर्ता और थूथुकुडी (तमिलनाडु) के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ग्रेस बानू ने बताया कि बिहार सरकार का कदम ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के साथ एक सामाजिक अन्याय है. ट्रांसजेंडर, जो एक लैंगिक पहचान को जाति कैसे माना जा सकता है. ट्रांसजेंडर समुदाय में इतनी सारी जातियां हैं. अगर राज्य सरकार (बिहार सरकार) को नहीं पता कि ट्रांसजेंडर लोगों की गिनती कैसे की जाती है, तो हम उसकी मदद को यहां हैं.
बानू ने कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014) में ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने एक आधिकारिक घोषणा की कि ट्रांसजेंडरों को अधिनियम के भाग तीन के तहत उनके अधिकारों की सुरक्षा के उद्देश्य से तीसरे लिंग के रूप में माना जाएगा. बिहार सरकार के इस सामाजिक अन्याय को तुरंत ठीक करने की आवश्यकता है. किसी व्यक्ति के लिंग को जाति के रूप में नहीं माना जा सकता है.
गलती को सुधारने की मांग
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, पटना के सहायक प्रोफेसर विद्यार्थी विकास ने ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मांग को सही ठहराते हुए कहा कि उसे तुरंत सुधारा जाना चाहिए. किसी व्यक्ति की लिंग पहचान को जाति के रूप में नहीं माना जा सकता है. लिंग श्रेणियों में ट्रांसजेंडर के लिए एक अलग कॉलम होना चाहिए. उन्हें (ट्रांस लोगों को) स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, यदि वे अपनी जाति की पहचान का खुलासा करना चाहते हैं. उस स्थिति में उनकी जाति का जाति श्रेणियों में उल्लेख किया जाना चाहिए.
सरकार चर्चा को तैयार
इस मामले में बिहार के समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने कहा कि अगर उन्हें (ट्रांसजेंडर्स) विभिन्न जातियों को आवंटित कोड सहित जाति-आधारित गणना की चल रही कवायद से कोई समस्या है, तो उन्हें संबंधित विभाग से संपर्क करना चाहिए और उनसे चर्चा करनी चाहिए. सात जनवरी से शुरू हुई गणना की कवायद मई 2023 तक पूरी हो जाएगी. राज्य सरकार इस कवायद के लिए अपने आकस्मिक निधि से 500 करोड़ रुपये खर्च करेगी. इस सर्वेक्षण का दायित्व सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपा गया है.
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