CM Nitish Kumar on Bihar Caste Census: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बिहार में शनिवार को अपने जाति-आधारित सर्वेक्षण (Caste Census) के दूसरे दौर की शुरुआत बख्तियारपुर (Bakhtiyarpur) से की. इस मौके पर उन्होंने जातिगत जनगणना को विकास के लिए जरूरी बताया. उन्होंने कहा कि जाति सर्वेक्षण का दूसरा दौर जो आज शुरू हुआ है, वह एक अच्छी कोशिश है. यह हमें हर जाति की संख्या, उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति के बारे में सही जानकारी देगा. इससे हमें सरकारी कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से डिजाइन करने में मदद मिलेगी.


मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्वे पूरा होने के बाद सर्वे की रिपोर्ट बिहार विधानसभा में रखी जाएगी और फिर इसे सार्वजनिक किया जाएगा. उन्होंने कहा कि हम केंद्र सरकार को भी बताएंगे कि यह अच्छा होगा यदि देशभर में जाति आधारित जनगणना की जाए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कई लोगों के इस बारे में गलत विचार हैं.


कई दूसरे राज्य भी करेंगे अनुसरण


नीतीश कुमार ने कहा, चूंकि हम इसे पहली बार कर रहे हैं, इसलिए कई अन्य राज्य भी बहुत रुचि के साथ देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह हमारी लंबे समय से मांग रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि कई राज्य भी जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं और हमने इस मुद्दे को संसद में भी उठाया था. 


15 मई तक जारी रहेगा सर्वेक्षण


गौरतलब है कि सर्वेक्षण का दूसरा दौर 15 मई तक जारी रहेगा. इस दौरान लगभग 320,000 गणनाकार राज्य भर में अपने काम को अंजाम देंगे, जो 17 सामाजिक आर्थिक मानदंडों पर 29 मिलियन पंजीकृत परिवारों के विवरण का दस्तावेज तैयार करेंगे. इसमें रोजगार, शिक्षा, वैवाहिक स्थिति, भूमि जोत और संपत्ति के स्वामित्व से लेकर जाति से संबंधित सवाल होंगे. इस में शामिल होने वालों को 214 पूर्व-पंजीकृत जातियों के बीच चयन करना होगा, जिन्हें कोड आवंटित किए गए हैं. 


हार्ड और सॉफ्ट दोनों रूपों में जमा किए जाएंगे डाटा


अधिकारियों ने कहा कि डेटा को एक कागज के रूप में दर्ज किया जाएगा. इसके बाद विशेष रूप से डिजाइन किए गए ऐप पर अपलोड किया जाएगा. अभ्यास की देखरेख तय करने वाले नोडल निकाय, सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव मोहम्मद सोहेल ने बताया कि दोपहर 2 बजे तक 50,000 प्रविष्टियां दर्ज की जा चुकी थीं.


1931 के बाद नहीं हुई जातिगत जनगणना


दरअसल, भारत में जातिगत जनगणना हमेशा से एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. ब्रिटिश काल की जनगणना में जाति की गिनती बहुत बारीकी से की जाती थी, लेकिन सभी जातियों की गणना करने वाली आखिरी जनगणना 1931 में हुई थी. स्वतंत्र भारत में इस प्रथा को समाप्त कर दिया और बाद की जनगणनाओं में केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गणना की गई. लिहाजा, पिछड़ी जातियों की संख्या का कोई आधिकारिक संख्या नहीं है.


इससे पहले 2011 में केंद्र सरकार ने घोषणा की कि नियमित जनगणना के साथ-साथ एक सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना भी आयोजित की जाएगी. लेकिन, जातिगत डेटा को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया और सरकार ने बाद में संसद को बताया कि पद्धतिगत कमजोरियों की वजह से डेटा का सटीक विश्लेषण नहीं किया जा सका. नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत गणना की अनुमति नहीं देने और दशकीय जनगणना में देरी के लिए केंद्र पर भी निशाना साधा. गौरतलब है कि 2011 के 2021 में जनगणना होना था. लेकिन इसकी शुरुआत अब तक नहीं हुई है. 


बीजेपी ने मुस्लिम तुष्टिकरण व जातिवाद का लगाया आरोप


दरअसल, 2024 के आम चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने के लिए  सामाजिक न्याय की राजनीति के एक नए मॉडल के रूप में जातिगत जनगणना का इस्तेमाल किए जाने की उम्मीद है. यही वजह है कि बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता निखिल आनंद ने जातिगत जनगणना की आलोचना करते हुए कहा है कि राजद की गोद में बैठने के बाद नीतीश कुमार मुस्लिम तुष्टिकरण और जातिवाद की राजनीति कर रहे हैं. वह पीएम बनने के लिए बेताब हो गए हैं. लेकिन, तेजी से उनके पैरो तले से जमीन खिसकती जा रही है. 


कोर्ट में भी विचाराधीन है केस


गौरतलब है कि जातिगत जमगणना को कानूनी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. पटना उच्च न्यायालय में इसको चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के बाद ये तय होगा कि याचिका को स्वीकार किया जाए या नहीं. दरअसल इस याचिका में बिहार की जातिगत जनगणना को इस आधार पर चुनौती दी है कि जनगणना को अधिसूचित करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को ही है. 


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