पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद एलजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में उठाया बड़ा कदम. पटना में आज बिहार संसदीय बोर्ड की बैठक के दौरान चिराग ने बिहार की प्रदेश इकाई के साथ सभी जिला कमिटियों को भंग करने का ऐलान कर दिया है. संसदीय बोर्ड की इस बैठक में बिहार प्रदेश के सभी सांसद,पूर्व सांसद,उपाध्यक्ष,पूर्व विधायक और एलजेपी के सभी प्रवक्ता मौजूद थे.



क्या होगा एलजेपी का अगला कदम



एलजेपी के संसदीय बोर्ड की इस बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि राज्य में पार्टी को मजबूत करने के लिए अगले दो महीने में फिर से सभी कमेटियों को गठन किया जाएगा. यही नहीं, पार्टी ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी कार्यकर्ताओं को अगले विधानसभा चुनाव की अभी से तैयारी करनी है. हालांकि चिराग ने अपनी पिछली कमिटी में युवाओं और अनुभवी नेताओं का सही गठजोड़ रखा थाबिहार चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को डैमेज करने के इरादे से चुनावी मैदान में उतरे चिराग पासवान की अगुवाई में एलजेपी ने इस बार महज एक सीट पर ही सफलता पाई है. जानकार बताते हैं कि एलजेपी के गठन के बाद से यह अब तक की उसकी सबसे बड़ी हार है. इस बार एलजेपी के 135 उम्मीदवार मैदान में थे जिनमें सिर्फ एक सीट जीती है.



एलजेपी विधानसभा चुनाव सबके लिए रही नुकसानदेह



इस बार विधान सभा चुनाव में चिराग पासवान की अध्यक्षता वाली एलजेपी ने एनडीए के साथ ही महागठबंधन का भी खासा नुकसान पहुंचाया है. उन 54 सीटों पर जहां एलजेपी ने वोट खेल बिगाड़ा उनमें 25 सीटें जदयू कोटे की थीं. इन सीटों पर एलजेपी को जितने वोट मिले, तनी वोट जदयू की हार के मार्जिन से ज्यादा थीं. इसके अलावा एलजेपी ने वीआईपी की चार सीटों पर भी काफी नुकसान पहुंचाया.चिराग का शुरू से बस एक हीं यह स्टैंड था कि वह भाजपा के खिलाफ ज्यादा सीटों पर नहीं लड़ेंगे इसलिए उन्होंने भाजपा की केवल एक ही सीट पर गेम खराब किया है. वहीं अब यह भी साफ हो गया है कि चिराग ने महागठबंधन का भी नुकसान किया.
चुनावी आंकड़ों की बात करें तो चिराग की पार्टी ने आरजेडी को भी 12 सीटों पर और कांग्रेस को 10 सीटों का नुकसान पहुंचाई. भाकपा माले को एलजेपी ने 2 सीटें पर हरवा दिया. यानि कुल मिलाकर एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए भोटकटवा की श्रेणी में रही एलजेपी.



लोजपा ने गठन से अब तक देखे की रंग



बिहार की राजनीति में दलितों के बीच लोकप्रिय नेता के तौर पर रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना वर्ष 2000 में की थी. पार्टी की स्थापना के बाद से हीं रामविलास ने पार्टी को मुख्यधारा से जोड़ने की शुरुआत कर दी थी और पहली बार एलजेपी 2004 के लोकसभा चुनाव में अपने दम पर उतरी थी मैदान में उतारा. पार्टी ने इस चुनाव में 4 सीटों पर जीत भी हासिल की. तब लोजपा कांग्रेस और राजद के साथ यूपीए गठबंधन का हिस्सा थी. यूपीए की चुनाव में जीत के साथ ही पासवान को गठबंधन सरकार में केमिकल एंड फर्टिलाइजर मिनिस्टर बनाया गया था. इसके बाद फरवरी 2005 में बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ लड़ते हुए लोजपा ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और 29 सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि 2005 में दुबारा हुए विधानसभा चुनाव में एलजेपी महज 10 सीटों पर ही सिमट गई. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ छोड़ना उन्हें महंगा पड़ा और रामविलास खुद तो चुनाव हारे ही उनकी पार्टी का एक भी सांसद लोकसभा नहीं पहुंच सका.
साल 2010 में आरजेडी सुप्रीमों लालू यादव का साथ मिलने से राम विलास पासवान राज्य सभा पहुंचे, लेकिन एलजेपी राज्य में अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाई और एलजेपी के विधायकों की संख्या घटकर दर्जन से भी कम रह गई. लेकिन 2014 में फिर अपने बेटे चिराग के कहने पर रामविलास पासवान ने पाला बदला और एनडीए गठबंधन में नरेन्द्र मोदी के साथ आए और 6 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की और एक राज्यसभा सीट भी हासिल की. हालांकि वर्ष 2015 में एनडीए के तहत 42 सीटों पर एलजेपी चुनावी मैदान में उतरी, जिनमें महज दो पर हीं जीत मिली और इस बार जब पार्टी अकेले दम पर 135 सीटों पर लड़ी और सिर्फ एक सीट पर हीं जीत मिली.