सीवान: सीवान शहर के शुक्ल टोली स्थित प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में मंगलवार को सस्वर सुंदरकांड (Sunderkand) का 48वां वार्षिकोत्सव मंगलवार को धूमधाम से मनाया जा रहा है. भव्य तोरण द्वार के साथ ही पूरे परिसर की भव्य सजावट की गई है. यहां पर मंदिर प्रबंधन के अलावा सेवा दल के सदस्यों की टोली पूरी व्यवस्था की निगरानी कर रही है. यहां पर सुबह से हनुमान जी (Hanuman ji) के दिव्य दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ है.


सुबह से ही लगी है भक्तों की भीड़
मंदिर परिसर में सुबह से ही भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई हैं. सुबह सात से शाम पांच बजे तक दिव्य दर्शन और शाम छह से रात आठ बजे तक सस्वर सुंदरकांड के पाठ का आयोजन किया गया है. पाठ के समापन के बाद श्रद्धालुओं के आगमन तक महाप्रसाद का वितरण जारी रहेगा. रंग-बिरंगी रौशनी व फूलों से मंदिर से लेकर गर्भगृह तक को सजाया गया है. प्रत्येक मंगलवार को मंदिर परिसर में होने वाले सस्वर सुंदरकांड का 48वां वार्षिकोत्सव इस बार माघ के अंतिम मंगलवार यानि की 31 जनवरी को मनाया जा रहा है. 


सुंदरकांड के पाठ के बाद होगा महाप्रसाद का वितरण 
मंदिर प्रबंधन समिति के आनंद किशोर दत्त व अभिषेक दत्त ने बताया कि मंदिर के संस्थापक व अंतरराष्ट्रीय मानस प्रवचनकर्ता स्वामी गणेश दत्त शुक्ल द्वारा स्थापित हनुमान मंदिर में मंगलवार की शाम सुप्रसिद्ध भजन गायक व लखनऊ निवासी उत्तम ग्रुप सस्वर सुंदरकांड का पाठ के बाद भक्तों के बीच महाप्रसाद का वितरण किया जाएगा. वार्षिकोत्सव के दिन मंगलवार को हनुमान जी को शुद्ध घी के बने दस क्विंटल लड्डू का भोग लगाया गया है. सस्वर सुंदर कांड के वार्षिकोत्सव को लेकर मंदिर की सजावट के लिए पटना से गुलाब, गेंदा ओर जूही के फूल मंगाए गए हैं. रामभक्त हनुमान जी समेत अन्य देवी-देवताओं के लिए हरिद्वार से वस्त्र मंगाए गए हैं.


काफी प्राचीण है सीवान का यह मंदिर
गौरतलब हो कि प्रसिद्ध हनुमान मंदिर का उद्घाटन मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन चंद्रराम गुलाम ने तीन फरवरी 2006 को किया था. सीवान का ये मंदिर काफी प्राचीन है. 1901 में इस मंदिर की स्थापना की गई थी. हनुमान मंदिर के संस्थापक और अंतरराष्ट्रीय मानस प्रवचनकर्ता स्वामी गणेश दत्त शुक्ल ने इस मंदिर की नींव डाली थी. उनके भाई शम्भू दत्त शुक्ल ने बताया कि स्वामी जी को हनुमान जी ने साक्षात दर्शन दिए थे. इस दर्शन के बाद स्वामी जी को प्रेरणा मिली, वे विदेश गए और सनातन धर्म का प्रचार किया. विदेश से लौटने के बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण कराया. शम्भू दत्त शुक्ल ने बताया कि मंदिर की जब नींव पड़ी, तब एक बंदर के रूप में हनुमान जी आते थे. जब तक मंदिर बना तब तक वह लगातार इस मंदिर परिसर में ही रहे. उन्होंने किसी को क्षति नहीं पहुंचाई और मंदिर उद्घाटन के 15 दिनों के बाद मंदिर के प्रांगण में ही उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया.


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