बिहार विधानसभा चुनाव 2020 का मुकाबला कांटे का दिख रहा. नीतीश कुमार पूरे चुनाव के दौरान 15 साल के सत्ता विरोधी लहर का सामने करते हुए दिखे दिए. तमाम एग्जिट पोल में तेजस्वी की सरकार बनती हुई दिखाई दी. इसकी वजह से राज्य के बीजेपी और जेडीयू दफ्तर में मायूसी छाई हुई थी. लेकिन, जब मंगलवार को मतपेटी खुली और बीजेपी-जेडीयू गठबंधन शुरुआती रुझानों से ही महागठबंधन से आगे रहा. ऐसे में अब जबकि नीतीश कुमार की राज्य में सरकार बनती हुई दिखाई दे रही है तो सवाल उठ रहा है बिहार के इस नतीजे के आने के बाद कैसे केन्द्र से लेकर बिहार की राजनीति बदलेगी?


बिहार पर असर


दरअसल, पूरे चुनाव के दौरान बीजेपी ने जेडीयू को बड़ा भाई मानते हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व मे चुनाव लड़ा. बीजेपी ने पीएम मोदी समेत तमाम स्टार प्रचारकों को चुनाव में उतारकर पूरी ताकत झोंक दी लेकिन वे इसी बात को दोहराते रहे कि एनडीए के जीतने पर सीएम मुख्यमंत्री ही होंगे. लेकिन, चुनाव नतीजे के बाद क्या बीजेपी अब उस स्टैंड पर कायम रहेगी? दरअसल, चुनाव में जेडीयू के मुकाबले बीजेपी को ज्यादा सीटें मिलती हुई दिख रही हैं. राजनीति में अक्सर यही होता है कि जिसका जीते हुए उम्मीदवार ज्यादा होते हैं उन्हें ज्यादा कैबिनेट में जगह दी जाती है, यहां तक की मुख्यमंत्री भी उन्हीं का होता है.


लेकिन, चूंकि बिहार में बीजेपी की तरफ से अंदरूनी आवाज उठी थी कि सीएम चेहरा किसी पार्टी के अंदर से लाना चाहिए लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने चुनाव नीतीश कुमार की अगुवाई कर लड़ने का फैसला किया था. ऐसे में अभी इस बात पर सस्पेंस बन गया है कि नीतीश फिर सीएम बनेंगे या बीजेपी अपना चेहरा सामने लाएगी.


केन्द्र पर असर


अपने पिता राम विलास पासवान को खो चुके चिराग पासवान ने चूंकि पूरे चुनाव के दौरान नीतीश कुमार के खिलाफ कैंपेन किया और उनके 15 वर्षों के राज पर हमला बोला ऐसे में अब सबकी नजर एलजेपी पर टिकी है. सवाल है कि क्या लोक जनशक्ति पार्टी अब उस नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार में हिस्सा लेगी, जिसके खिलाफ वह लगातार चुनाव के दौरान बोलते रहे? ऐसे संभावना कम दिखती है.


इतना ही नहीं, ऐसी भी संभावना है कि जिस तरह से चुनाव प्रचार के दौरान चिराग पासवान ने वोट कटवा की भूमिका निभाई है, ऐसे में उन्हें केन्द्र की सत्ता से भी बाहर होना पड़ सकता है. राम विलास पासवान अब नहीं है ऐसे में राजनीति का ककहरा सीख रहे चिराग का उनका अकेले चुनाव लड़ने का यह दांव फिलहाल उल्टा साबित होता दिखाई दे रहा है.