90 के दशक के आनंद मोहन की राजनीति की याद दिलाती हैं पुष्पम प्रिया चौधरी, जानिए- क्या है समानता
मार्च महीने में अखबार में फुल पेज का विज्ञापन देकर पुष्पम प्रिया चौधरी ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा जाहिर की थी.
Bihar Election: बिहार की राजनीति में काले कपड़ों वाली पुष्पम प्रिया चौधरी की खूब चर्चा है. पुष्पम की पार्टी का नाम प्लूरल्स है और इस बार के चुनाव में पुष्पम की पार्टी बिहार की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने वाली है.
पुष्पम की राजनीति को देखकर नब्बे के दशक वाले आनंद मोहन की राजनीति की याद आती है. वैसे भी पुष्पम और नब्बे के दशक वाले आनंद मोहन की राजनीति में कई तरह की समानताएं हैं. मसलन दोनों मूल रूप से बिहार के मिथिलांचल के हैं. दोनों ही सवर्ण हैं. दोनों की राजनीति मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ रही है, और है. आनंद मोहन की पार्टी का नाम बिहार पीपुल्स पार्टी था. पीपुल्स और प्लूरल्स... शब्दों की डिक्शनरी में दोनों आसपास हैं.
पुष्पम की राजनीति को बारीक से समझने से पहले आनंद मोहन की राजनीति के बारे में समझना जरूरी हो जाता है. आनंद मोहन 1990 में जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे. मंडल कमीशन के खिलाफ आनंद मोहन ने बगावत की और तब बिहार के सवर्णों के नेता बनकर उभर गये. साल 1994 में सवर्ण बहुल वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव में पत्नी लवली आनंद को बिहार पीपुल्स पार्टी का सांसद बनवा दिया. इसके बाद साल 1995 के विधानसभा चुनाव में पूरे बिहार में (तब झारखंड साथ था) 324 सीटों पर उम्मीदवार उतारे.
उत्तर बिहार, मिथिलांचल में उम्मीदवारों ने अच्छे खासे वोट काटे हालांकि पार्टी जीत नहीं पाई. खाता खुलने के नाम पर एक सीट मिली थी. उस चुनाव में सत्ता विरोधी वोट कई मोर्चों पर बंट गया था. मसलन बीजेपी, समता पार्टी, बिपीपा जैसी पार्टियां अलग-अलग लड़ी और लालू को जबरदस्त सफलता मिली. खुद आनंद मोहन उस चुनाव में शिवहर, खगड़पुर और गायघाट की तीन सीटों से लड़े थे और तीनों जगह हारे.
इसके अगले साल सत्ता विरोधी वोट को एकजुट करने के लिए बीजेपी और समता पार्टी ने हाथ मिलाया. आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी का समता पार्टी में विलय हो गया. और तब सबने मिलकर 1996 का लोकसभा चुनाव लड़ा.
पुष्पम प्रिया राजनीतिक घराने से आती हैं
अब आते हैं पुष्पम प्रिया पर. पुष्पम प्रिया राजनीतिक घराने से आती हैं. दादा उमाकांत चौधरी नीतीश कुमार के करीबी रहे. समता पार्टी के टिकट पर उन्होंने हाय घाट से चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए. चाचा जेडीयू में हैं, पिता एमएलसी रहे. पुष्पम ने बिहार से बाहर जाकर पढ़ाई की और इस वक्त बिहार बदलने का सपना दिखाकर चुनाव की तैयारी में हैं.
पुष्पम ने ऐसे अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा जाहिर की थी
मार्च महीने में अखबार में फुल पेज का विज्ञापन देकर उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा जाहिर की थी. खुद को सीधा सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया था. हर कोई जानता है कि सीधा कोई सीएम उम्मीदवार नहीं होता. पुष्पम भी जानती ही होंगी.. लेकिन लोगों का ध्यान खींचने के लिए उन्होंने ये दांव खेला और दांव चल गया.
चर्चा होने लगी कि ये लड़की कोई कमाल करेगी. पुष्पम की मानें तो उन्होंने बिहार की पहचान को वापस दिलाने का बीड़ा उठाया है. सोशल मीडिया एकाउंट को देखेंगे तो पाएंगे कि पुष्पम बिहार के उन जगहों का दौरा कर चुकी हैं जो बिहार में इन दिनों पहचान की मोहताज हैं. सरकारी उदासीनता का शिकार रहे ऐतिहासिक स्थलों को पुनर्जीवित करने का सपना है. बांकीपुर और बिस्फी से चुनाव लड़ना इसी ओर इशारा भी है.
पुष्पम ने उम्मीदवारों की जो लिस्ट जारी की है उसकी चर्चा हो रही है
पुष्पम की बातें सुनेंगे तो जानेंगे कि वो बातें तो बड़ी-बड़ी करती हैं लेकिन क्या वाकई में जो बातें वो कह रही हैं उसका बिहार की असली जमीन पर कोई असर दिखने वाला है. उन्होंने उम्मीदवारों की जो लिस्ट जारी की है उसकी चर्चा हो रही है. धर्म के नाम पर बिहारी और जाति के नाम पर पेशे को जगह दी गई है. कहने के लिए कोशिश तो बेहतर है. लेकिन बिहार जैसे राज्य जहां कि आज भी जाति के गणित को देखकर जीत हार का समीकरण बनता बिगड़ता है वहां ये प्रयोग कारगर होगा मुश्किल लगता है.
पुष्पम अपनी बड़ी-बड़ी बातों, काले कपड़ों, राजनीति के तरीकों को लेकर सुर्खियां बटोर रही हैं. लेकिन ये सुर्खियां सियासत के अखाड़े में उन्हें मजबूत योद्धा बना पाएंगी इसमें संदेह है. भविष्य क्या होगा.. कह नहीं सकते... लेकिन बिहार वो प्रदेश है जहां हर किसी की कभी न कभी गुंजाइश तो बनती ही है.