पटना. बिहार विधानसभा चुनावों की मतगणना बेहद रोमांचक मोड़ पर पहुंच चुकी है. एनडीए और महागठबंधन दोनों बहुमत के लिए जरूरी 122 के जादुई आंकड़े को छूने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. बिहार में बीजेपी और जेडीयू यूं तो लंबे समय से गठबंधन में हैं लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में नजर आ रही है.

बता दें कि ताजा प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक जहां बीजेपी 72 सीटों पर आगे चल रही है वहीं जेडीयू महज 45 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. आरजेडी 73 सीटों पर बढ़त के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है. बता दें कि बीजेपी और जेडीयू 20 सालों के गठबंधन में हैं. 2015 विधानसभा चुनावों में जरूर थोड़े वक्त के लिए दोनों की राहें जुदा हुईं लेकिन उस चुनाव में भी जेडीयू को 71 सीटें मिलीं तो अकेले दम पर लड़ रही बीजेपी सिर्फ 53 सीटें ही जीत पाई थी.

बीजेपी को ज्यादा सीटें मिलती देख पार्टी के अंदर से यह आवाज भी आने लगी है कि बीजेपी को मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोकना चाहिए. हालांकि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने बार-बार यह साफ किया है कि सीटें चाहे कितनी भी आएं लेकिन सीएम तो नीतीश जी ही बनेंगे. सिलसिलेवार तरीके से बिहार में एनडीए गठबंधन में बीजेपी के बड़े भाई के तौर पर उभरने पर एक नजर डालते हैं.

2005 विधानसभा चुनावों में पहली बार एनडीए ने बिहार में जीत हासिल की. इन चुनावों में एनडीए को 143 सीटें मिली थीं. जेडीयू को 88 सीटों पर जीत नसीब हुई वहीं बीजेपी के 55 विधायक जीते.

 2010 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए गठबंधन ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. एनडीए ने 206 सीटों पर प्रचंड जीत दर्ज की. जेडीयू के 115 और बीजेपी के 91 विधायक जीतकर आए थे. नीतीश कुमार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार के मुखिया बने.

2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी और जेडीयू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. इन चुनावों में आरजेडी 80 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी. जेडीयू को 71 सीटें मिलीं. अकेले दम पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी महज 53 सीटों पर सिमट गई थी.

2020 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू और बीजेपी ने क्रमश: 122 और 121 सीटों पर चुनाव लड़ा है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक जेडीयू सिर्फ 43 सीटें जीतती नजर आ रही है. वहीं बीजेपी 72 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. आरजेडी 75 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. ऐसे में बीजेपी पहली बार जेडीयू के मुकाबले अधिक सीटें जीतती नजर आ रही है. यह अंतर जितना बढ़ता जाएगा नीतीश कुमार उतने ही कमजोर पड़ते जाएंगे.

ऐसे में नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अंतिम परिणाम अगर त्रिशंकु विधानसभा की तरफ जाता है तो नीतीश कुमार पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने का दबाव बढ़ जाएगा. बता दें कि गिरिराज सिंह समेत बीजेपी के कई नेता पहले भी यह कहते आए हैं कि बिहार में बीजेपी को अपना सीएम बनाना चाहिए. हालांकि नीतीश कुमार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि यह उनका अंतिम चुनाव है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई बार यह दोहराया है कि वह नीतीश कुमार को दोबारा बिहार का मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं. ऐसे में एनडीए की सरकार में नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री बनना फिलहाल तो तय लग रहा है लेकिन राजनीति में अंतिम समय तक कुछ भी अंतिम तौर पर नहीं कहा जा सकता. अगर-मगर और संभावनाओं का खेल सियासत में काफी पुराना है. नीतीश कुमार भी मंझे हुए राजनेता हैं ऐसे में वो अपनी कुर्सी बचा ले जाएं तो अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

क्या है बीजेपी के बड़े भाई बनने के निहितार्थ

बीजेपी भले ही अधिक सीटें लाने के बावजूद नीतीश कुमार को ही सीएम बनाने पर राजी हो जाए लेकिन यह आखिरी बार ही होगा. निश्चित तौर पर बीजेपी अगला चुनाव अपने सीएम चेहरे के साथ लड़ेगी. नीतीश कुमार की पार्टी में उनके बाद कोई दूसरा चेहरा नजर नहीं आता. नीतीश कुमार 2025 विधानसभा चुनावों में निश्चित तौर पर सीएम का चेहरा नहीं होंगे. बीजेपी में अंदरखाने उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी से नाराजगी भी है. ऐसे में नित्यानंद राय हों या संजय पासवान बीजेपी अगले चुनावों में अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार उतारेगी और वो निश्चित तौर पर सुशील मोदी नहीं होंगे.