(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Bihar Election Result: सीटें हुई कम फिर भी नीतीश में है दम, जानिए बिहार में NDA की जीत की 10 बातें
आखिर वो क्या कारण रहे जिसके चलते नीतीश को इस कदर कांटे के मुकाबले का सामना करना पड़ा. प्री-पोल में भले ही बीजेपी-जेडीयू के जीत की संभावना जताई गई थी, लेकिन एग्जिट पोल में तेजस्वी को बढ़त ने नीतीश खेमे को जरूर बेचैन किया.
नई दिल्लीः बिहार की जनता ने नीतीश कुमार की अगुवाई में लड़े गुए चुनाव में एनडीए के पक्ष में एक बार फिर से अपना जनादेश दे दिया है. 69 वर्षीय जेडीयू अध्यक्ष के लिए वैसे तो यह जीत मुश्किल भरी रही और मंगलवार को दिनभर इसी बात पर सस्पेंस बना रहा. आखिर वो क्या कारण रहे जिसके चलते नीतीश को इस कदर कांटे के मुकाबले का सामना करना पड़ा. प्री-पोल में भले ही बीजेपी-जेडीयू के जीत की संभावना जताई गई थी, लेकिन एग्जिट पोल में तेजस्वी को बढ़त ने नीतीश खेमे को जरूर बेचैन किया.
आइये जानते हैं, वो 10 बातें जिसकी वजह से बिहार में एक बार फिर एनडीए के पक्ष में जनादेश दिया गया है-
1-बीजेपी ने पीएम मोदी समेत कई स्टार प्रचारकों को उतारा
बिहार चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी की तरफ से नीतीश कुमार के प्रचार के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उतर आए. उन्होंने धुआंधार रैलियां कर लालू यादव-राबड़ी के राज को जंगल राज बता हमला किया. साथ ही, उन्होंने राज्य की जनता से विकास को पटरी पर न उतरने देने के लिए बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को ही वोट देने की अपील की. इसके साथ ही, स्मृति ईरानी, योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के कई स्टार प्रचारकों ने जमकर प्रचार किया.
2- ‘जंगलराज के युवराज’ का नारा देकर बनाया मुद्दा बिहार चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी और जेडीयू ने अपने 15 वर्षों के शासन की तुलना लालू-राबड़ी के 15 वर्षों के शासन से की और उसके बाद वोट देने की अपील की. इसके साथ ही, लोगों में यह भय पैदा किया गया कि अगर उन्होंने लालू यादव के बेटे तेजस्वी के नाम पर वोट किया तो बिहार की 15 साल पहले जैसी ही स्थिति हो जाएगी. इस चुनाव में तेजस्वी के खिलाफ नारा दिया गया- जंगल राज का युवराज.
3-बीजेपी का बिहार की जनता से वादा नीतीश कुमार की जीत में बीजेपी की तरफ से जनता के सामने किए गए वादों ने भी अहम भूमिका निभाई. बीजेपी ने तेजस्वी के 10 लाख नौकरी के जवाब में बिहार की जनता को 19 लाख नौकरियों का वादा किया. इसके अलावा, बीजेपी ने बिहार के लोगों से मुफ्त वैक्सीन देने का भी चुनावी वादा किया. बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में 3 लाख शिक्षकों की एक साल में भर्ती का वादा किया. बिहार में अगले पांच वर्ष में आईटी हब ( IT HUB) बनाते हुए पांच लाख रोजगार देने का भी वादा किया गया.
4-महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम नीतीश ने पिछले 15 वर्षों के दौरान महिला सशक्तिकरण, बालिका शिक्षा पर जोर, थ्री सी यानी करप्शन (भ्रष्टाचार), क्राइम (अपराध) और कम्युनिलज्म (साम्प्रदायवाद) को खत्म करने के लिए काम किया. बिहार में अपराध को जड़ से हटाने में काफी हद तक नीतीश को भी सफलता मिली क्योंकि पन्द्रह साल पहले राज्य की स्थिति बदतर थी और अपहरण, लूट और फिरौती ने उद्योग-धंधों का रूप ले लिया था.
5- सड़क, बिजली पर नीतीश सरकार की सक्रियता नीतीश कुमार के पहली बार सत्ता में आने से पहले बिहार की सड़कें बदहाल और जर्जर थीं. उन्होंने सड़कों निर्माण को खास प्राथमिकता दी. नीतीश कुमार का दावा किया कि सड़क मरम्मत के लिए भी नीति बनी है.
हालांकि, पहले पांच वर्षों के दौरान सड़का पर नीतीश सरकार की तरफ से जो काम किया गया, बाकी के दस वर्षों के दौरान वैसी सक्रियता गायब दिखी. उनकी एक बड़ी उपलब्धि ये भी रही कि उनके इस कार्यकाल के दौरान गांव-गांव न सिर्फ बिजली पहुंची है बल्कि आज गांव के बच्चे लालटेन की जगह बिजली की रोशनी में पढ़ रहे हैं.
6-रोजगार मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश कुमार ने करीब 1 लाख से ज्यादा स्कूल शिक्षकों की भर्तियां कीं. नीतीश कुमार ने 2020 चुनाव में पेश अपने रिपोर्ट कार्ड में दावा किया है कि उनकी सरकार ने पिछले 15 वर्षों के दौरान करीब 6 लाख लोगों को रोजगार दिया है.
एक सच ये भी है कि नीतीश कुमार जब पहली बार सत्ता में आए थे तो उन्हें बड़ी तादाद में शिक्षकों की भर्ती की थी. उनकी कोशिश थी की शिक्षा में आमूल-चूल बदलाव लाया जाए. हालांकि, शिक्षक की ट्रेनिंग वैसी नहीं थी और नीतीश को अपने इस लक्ष्य में आशातीत सफलता नहीं मिली.
नीतीश ने लालू-राबड़ी के 15 वर्षों के शासन से तुलना करते हुए कहा कि उस दौरान सिर्फ 95,734 ही नौकरियां दी गई थीं. हालांकि, एक हकीकत ये भी है कि जितना रोजगार देना का नीतीश कुमार दावा कर रहे हैं, जमीनी स्तर पर पिछले राज्यों के लिए इन आंकड़ों का कोई खास महत्व नहीं है क्योंकि वह ऐसा पिछड़ा राज्य है, जहां पर सबसे बड़ी चुनौती सरकार के लिए रोजगार का सृजन करना और पलायन को रोकना है.
7- सुशांत केस की सीबीआई जांच की सिफारिश बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का शव बांद्रा स्थित उनके फ्लैट में 14 जून को पंखे से लटका हुआ मिला. सुशांत के पिता के.के. सिंह ने उनकी मौत के लिए सुशांत की गर्ल्फ्रेंड रिया चक्रवर्ती और उसके भाई शौविक चक्रवर्ती को कसूरवार ठहराया. मुंबई पुलिस ने बिहार पुलिस की जांच में अड़ंगा लगाया तो नीतीश की सरकार ने सुशांत के पिता की मांग पर बिना देर किए केन्द्र सरकार से सुशांत के मामले पर सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी. देशभर की नजर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के कारणों पर लगी हुई थी.
8- बिहार में शराबबंदी साल 2015 में महागठबंधन की जीत के बाद नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से किया शराबबंदी का वादा निभाया और राज्य में शराब को बैन करने की घोषणा कर दी. नीतीश ने घरेलू हिंसा और पारिवारिक में बढ़ती कलह के लिए शराब की बढ़ती लत को ज़िम्मेदार बताया. इसके अलावा, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, शोषण और ग़रीबी के लिए भी शराब की लत को एक बड़ा कारण बताया.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश के बाद बिहार में शराब पर प्रतिबंध बिहार निषेध एवं आबकारी अधिनियम के तहत लागू किया गया जो 1 अप्रैल 2016 से शुरू हुआ. क़ानून का उल्लंघन करने पर कम से कम 50,000 रुपये जुर्माने से लेकर 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान है.
9-सीएम पद को लेकर सस्पेंस नहीं नीतीश कुमार के अगुवाई में लड़े गए चुनाव में बीजेपी शुरुआत से ही यह कहती रही कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की जीत होने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे. ऐसे में बिहार के लोगों के मन में मुख्यमंत्री को लेकर किसी तरह का कोई सस्पेंस नहीं थी.
10-नीतीश की छवि बिहार चुनाव में जीत में नीतीश कुमार की सुशासन वाली छवि ने भी अहम भूमिका निभाई. हालांकि, ये सच है कि अगर चिराग पासवान जेडीयू उम्मीदवारों के सामने एलजेपी कैंडिडेट्स को नहीं उतारते तो राज्य में नीतीश कुमार की पार्टी नंबर एक पर होती. लेकिन, चिराग ने जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवारों को उतारकर उन्हें कमजोर किया. यही वजह रही कि जेडीयू तीसरे नंबर पर पहुंच गई. हालांकि, नीतीश कुमार की सुशासन की ही वो छवि है जिसके चलते 15 साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद उनके नेतृत्व में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने मुख्यमंत्री पद का चुनाव लड़ा.
यह भी पढ़ें-