पटना: देश की राजनीति में 17वीं बिहार विधान सभा चुनाव सबसे महत्वपूर्ण रही क्योंकि कोरोना काल में होने वाला यह पहला चुनाव रहा. दूसरी सबसे खास बात यह भी रही कि पूरे चुनाव के दौरान चुनावी हलकों में सियासी मर्यादा कायम रही. चुनाव प्रचार में या आपसी प्रतिस्पर्धा में किसी भी राजनीतिक पार्टी ने अपनी मर्यादा नही लांघी, जिसका नतीजा यह रहा कि तीन चरण में होने वाला यह पूरा चुनाव निकल गया लेकिन चुनाव आयोग को किसी भी राजनीतिक दल के प्रतिनिधि या नेता पर कोई कार्रवाई करने की जरुरत नहीं पड़ी. और ना हीं किसी पर कोई रोक लगाने की नौबत आई.दरअसल हर बार चुनाव में अपनी विपक्षी पार्टी के लिए नेता हों या मंत्री उनके कुछ ना कुछ ऐसे बोल निकल हीं जाते थे कि चुनाव आयोग को नकेल कसने के लिए या तो उन्हें प्रतिबंधित करना पड़ता था या फिर उनसे स्पष्टीकरण मांगनी पड़ती थी.
इस बार भी चुनाव में ना रैलियां कम हुईं और ना हीं एक दूरसे के लिए जुबानी जंग कम हुईं पर खास बात ये रही की इस बार इन सबके साथ मर्यादा भी रही. जिससे चुनाव आयोग को किसी भी दल या व्यक्ति विशेष पर कार्यवाई करने की नौबत हीं नही पड़ी और किसी नेता से स्पष्टीकरण भी नहीं पूछना पड़ा.हांलाकि इस चुनाव में भी चार गठबंधन के साथ लगभग 200 छोटे छोटे दल सियासी अखाड़े में थें जिनमें 3734 प्रत्याशी चुनावी जंग लड़ रहे थे. वहीं बड़ी संख्या में स्टार प्रचारक भी अपना जलवा बिखेर रहे थें लगातार रैली और सभाएं की जा रही थीं लेकिन उस मंच से भी मर्यादित शब्द हीं बोले जा रहे थें. पार्टी चाहे कोई भी रही अपने विरोधी पर प्रहार भी करती रही लेकिन खोई ऐसी बात नहीं कही गई जिससे आयोग उनकी नकेल कस सके.


पिछले चुनाव में किए गए थे कई नेता प्रतिबंध



बिहार विधान सभा के 2015 के चुनाव के दौरान अपने विरोधियों पर अमर्यादित टिप्पणी के लिए चुनाव आयोग ने कई नेताओं पर कार्रवाई की थी जिनमें बीजेपी के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता शामिल थे. पिछले चुनाव में कुछ नेताओं को 72 घंटे तो कुछ पर 48 घंटे तक की पाबंदी चुनाव आयोग ने लगाई थी मगर इस चुनाव में आयोग को ऐसी कोई कार्रवाई करने की नौबत हीं नही आईं.