पटना: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और पूर्व सांसद देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) के मिलकर संयुक्त जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन (यूडीएसए) बनाने और बिहार में चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद यह तय माना जा रहा है कि आगामी राज्य विधानसभा चुनाव में लड़ाई अब रोचक होगी.


मुस्लिम और यादव मतदाता आरजेडी के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं


ओवैसी और सजद (डी) के साथ में बिहार की राजनीति में प्रवेश को भले ही राजनीतिक दल खुले तौर पर परेशानी का सबब नहीं बता रहे हैं, लेकिन यह तय है कि इनके साथ आकर बिहार चुनाव लड़ने की घोषणा से सीमांचल क्षेत्रों में किसी भी पार्टी के लिए लड़ाई आसान नहीं होगी. कहा जा रहा है कि ओवैसी ने देवेंद्र यादव की पार्टी के साथ गठबंधन कर बिहार के यादव और मुस्लिम मतदाताओं में सेंध लगाने की चाल चली है. मुस्लिम और यादव मतदाता आरजेडी के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं.


संयुक्त जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन (यूडीएसए) ने हालांकि अब तक सीटों की संख्या तय नहीं की है, लेकिन माना जा रहा है कि कोसी और पूर्णिया क्षेत्रों में यह गठबंधन अपने प्रत्याशी उतारेगी. सीमांचल की 15 से 17 सीटों पर मुसलमान मतदाता जहां निर्णायक होते हैं वहीं कई ऐसी सीटें भी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता परिणाम को प्रभावित करते हैं.


पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारी थी


उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारी थी और सभी प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था. पांच सीटों पर तो उनके प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी. दीगर बात है कि 2019 में किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव में एआईएमआईएम के कमरूल होदा ने जीत दर्ज की थी. राजनीति के जानकार और किशनगंज के वरिष्ठ पत्रकार रत्नेश्वर झा भी कहते हैं कि ओवैसी और योगेंद्र यादव के साथ आने के बाद तय है कि यादव और मुस्लिम वोट बैंक का बिखराव होगा, जो आरजेडी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.


वे कहते हैं, "यूडीएसए के निशाने पर जो मतदाता होंगे, वह महागठबंधन के वोट माने जाते रहे हैं, इसलिए यूडीएसए जितना भी वोट पाएगी, वह महागठबंधन को ही नुकसान पहुंचाएगा." कहा जा रहा है कि ओवैसी की प्रचार शैली आक्रामक और ध्रुवीकरण पैदा करने वाली रही है, ऐसे में ओवैसी का प्रभाव बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.


बिहार में दो धाराओं के बीच लड़ाई है- आरजेडी


इधर, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी किसी प्रकार के नुकसान को नकारते हुए कहते हैं, "बिहार में दो धाराओं के बीच लड़ाई है. इसके अलावा जो भी लोग इस चुनाव में आ रहे हैं, वह किसके इशारे पर आ रहे हैं, यहां के लोगों को इसका पता है. बीजेपी के खिलाफ लड़ाई को जो भी कमजोर करने की कोशिश करेंगे, उसको यहां की जनता खुद जवाब देगी."


आरजेडी भले ही यूडीएसएए को खारिज कर रही हो, लेकिन उनके मुस्लिम और यादव वोट बैंक में कुछ सेंध लगना तय है. ओवैसी के मुस्लिम बहुल इलाकों में उम्मीदवार उतारने का कुछ हद तक फायदा बीजेपी को मिल सकता है. यह तय है कि सभी मुसलमान ओवैसी को वोट नहीं देंगे और वोटों का बिखराव होगा. इधर, बीजेपी के प्रवक्ता डॉ़ निखिल आनंद ने बीजेपी को लाभ मिलने को लेकर कहा, "ओवैसी जैसे नेता तुष्टिकरण की राजनीति से मुसलमानों की भावना भड़का कर वोट पाने की जुगत में रहते हैं. बिहार की जनता ऐसे नेताओं के विचारधारा को समझती है."


उन्होंने कहा कि एनडीए इस चुनाव में धर्म और जाति के आधार पर राजनीति करने वालों की राजनीति नेस्तनाबूद कर देगी. उन्होंने कहा कि यह चुनाव बिहार के विकास के लिए चुनाव है.


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