बिहार चुनाव: जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने पर विचार कर रही है एलजेपी
चिराग पासवान नीत पार्टी ने अब तक बीजेपी पर निशाना साधने से परहेज किया है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की तारीफ भी की है.
नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के अपेक्षित प्रवेश ने गठबंधन के एक अन्य घटक लोक जनशक्ति पार्टी के भीतर बेचैनी बढ़ा दी है. एलजेपी ने अगले सप्ताह अपने राज्य संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत जनता दल (यूनाइटेड) के साथ एलजेपी के बिगड़ते संबंधों के संकेत के बीच पार्टी सूत्रों ने कहा कि सात सितंबर को बोर्ड की बैठक के एजेंडा में मुख्य मुद्दा यह है कि क्या जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारना है.
चिराग पासवान नीत पार्टी ने अब तक बीजेपी पर निशाना साधने से परहेज किया है और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ भी की है. लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ उसके तेवर हमलावर रहे हैं. एक एलजेपी नेता ने कहा, ''हम निश्चित रूप से उन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने पर विचार कर रहे हैं जहां जेडीयू चुनाव लड़ेगी.''
पासवान ने इस संबंध में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया लेकिन कहा कि उनकी पार्टी उचित समय पर फैसला करेगी. उन्होंने कहा, "मेरा ध्यान अपनी पार्टी को चुनाव के लिए तैयार करने पर है. मेरी पार्टी के हित में जो भी निर्णय लिए जान हैं, उचित समय पर लिए जाएंगे." इस बीच मांझी के नेतृत्व वाली पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) एनडीए में शामिल हो गई. पार्टी के एक प्रवक्ता ने कहा कि मांझी नीतीश कुमार से मिलते रहे हैं जिन्होंने अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वी को सत्तारूढ़ गठबंधन में लाने में अहम भूमिका निभायी है.
एलजेपी और जेडीयू के बीच तकरार बढ़ गयी है
एनडीए के एक अन्य प्रमुख घटक बीजेपी ने पहले ही घोषणा कर दी है कि कुमार गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. एलजेपी और जेडीयू के संबंध लंबे समय से मधुर नहीं रहे हैं. मांझी की पार्टी के एनडीए में शामिल होने से एलजेपी और जेडीयू के बीच तकरार बढ़ गयी है. एलजेपी के संस्थापक रामविलास पासवान मोदी सरकार में मंत्री हैं. पासवान की ही तरह मांझी अनुसूचित जाति से आते हैं और राज्य में अपने को दलित नेता के रूप में पेश करने के लिए वह एलजेपी नेतृत्व पर हमला करते रहे हैं.
हालांकि उनका चुनावी प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है और उनकी पार्टी 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की सहयोगी के रूप में केवल एक सीट जीत सकी थी. वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी आरजेडी-कांग्रेस के साथ थी लेकिन उसे कोई सीट नहीं मिल सकी. एलजेपी का मानना है कि कुमार एनडीए में मांझी को इसलिए लेकर आए हैं ताकि उस पर निशाना साधा जा सके. बीजेपी ने दोनों दलों के झगड़े में पक्ष लेने से अब तक इनकार किया कर दिया है और उसने मतभेदों को बहुत तवज्जो नहीं दिया है.
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