पटनाः देश में कोयले की कमी से बिजली संकट को लेकर एक तरफ बवाल मचा है तो दूसरी ओर दशहरा और दिवाली ने बिजली विभाग पर लोड बढ़ा दिया है. बिहार पिछले कुछ दिनों से खुले बाजार से बिजली खरीदने के लिए प्रतिदिन 20 करोड़ का अतिरिक्त भुगतान कर रहा है. ऊर्जा विभाग के अधिकारी भी खुद यह मान रहे हैं कि राज्य में बिजली को लेकर समस्या है, लेकिन इस दुरुस्त किया जा रहा है और सुधार भी हुआ है.  


दरअसल, एनटीपीसी के माध्यम से ही राज्य को थर्मल पावर की आपूर्ति होती है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह अपने 4,500 मेगावाट के निर्धारित आवंटन के मुकाबले लगभग 3,000-3,300 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने में सक्षम है. सरकारी सूत्रों की मानें तो बिहार में उच्च मांग और कम आपूर्ति की वजह से बिजली खरीद दर तीन से पांच रुपये के मुकाबले 20 रुपये प्रति यूनिट तक बढ़ गई.


इस मामले की जानकारी रखने वाले विभाग एक अधिकारी ने कहा कि राज्य को पिछले कुछ दिनों में केवल 347 मेगावाट से 397 मेगावाट बिजली मिल रही थी, जबकि निजी कंपनियों के माध्यम से 688 मेगावाट बिजली खरीद समझौता हुआ था. कुल मिलाकर ये तमाम कारण हैं जिसकी वजह से बिहार में बिजली की कमी हो गई है. यही वजह है कि दिन में औसतन चार से आठ घंटे बिजली गुल हो जाती है. राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में खासकर ऐसा हो रहा है.


इस मामले में बिहार सरकार के ऊर्जा सचिव संजीव हंस ने पिछले सप्ताह ही ट्वीट कर जानकारी दी थी कि बिहार की कंपनियां बिजली पैदा नहीं करती हैं. इसके बजाय, वे केंद्रीय बिजली उत्पादन संस्थानों से बिजली खरीदते हैं और उपभोक्ताओं को देते हैं. वर्तमान में कोयला संकट को देखते हुए महंगी बिजली मिल रही है, लेकिन उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर बिजली आपूर्ति हो रही है.


त्योहार में 250-300 मेगावाट तक बढ़ जाती मांग


ऊर्जा सचिव ने कहा था कि बिजली आपूर्ति में लगातार सुधार हो रहा है. खुले बाजार में कीमतों में कमी आई है. अब 14-16 प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली खरीदी जा रही है. स्थिति सामान्य हो रही है, जल्द ही इसकी मांग के अनुरूप बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे. कहा कि दशहरा और दिवाली में बिहार में बिजली की मांग 250-300 मेगावाट तक बढ़ जाती है.



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