बिहार: सरकारी मदद नहीं मिलने से बाढ़ पीड़ित नाराज, कहा- केवल चुनाव के वक्त वोट लेने आते हैं नेता
उत्तर बिहार में बाढ़ कोई नई समस्या नहीं है. सालों से पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, छपरा समेत अन्य जिले बाढ़ की चपेट में आते रहे हैं. इस समस्या के निदान के लिए सरकार द्वारा बाढ़ पूर्व तैयरी भी की जाती है. इसके बावजूद लोग हर वर्ष इस त्रासदी को झेलते हैं.
मोतिहारी: मॉनसून की शुरुआत में ही मूसलाधार बारिश होने और गंडक बराज से पानी का डिस्चार्ज किए जाने की वजह से बिहार के चार जिले बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं. बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के निचले इलाके बाढ़ प्रभावित हैं. इन इलाकों में रहने वाले लोगों की जिंदगी अस्त-व्यस्त हो गई है. किसी भी काम के लिए उन्हें नाव का सहारा लेना पड़ रहा है. सरकारी नाव नहीं होने की वजह से वे प्राइवेट नाव से आवागमन कर रहे हैं, जिस वजह से उन्हें अधिक किराया चुकाना पड़ रहा है.
गांव में कोई सुविधा नहीं
बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि अब तक सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल पाया है, जिस वजह से परेशानी और बढ़ गई है. गांव में कोई सुविधा नहीं है, लोग भूखे मर रहे हैं. किसी की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें नाव के सहारे अस्पताल पहुंचाना पड़ रहा है. ये सुविधा भी शाम होते ही बंद हो जाती है. अगर देर रात किसी की तबीयत बिगड़ती है, तो उसे सुबह तक इंतेजार करना पड़ता है. इस बीच उनकी जान भगवान भरोसे रहती है.
सरकार पर लगाया आरोप
जिले के सिसवन प्रखंड से शहर आए अफरोज ने कहा कि अब तक कोई मदद नहीं मिली है. सरकार वोट लेकर जनता को बेवकूफ बना रही है. नेता केवल वोट लेने के वक्त आते हैं. इसके बाद उन्हें जनता की कोई फिक्र नहीं है. चुनाव में नेता वादे करते हैं कि सारा काम करा देंगे, लेकिन चुनाव खत्म होते ही ये गायब हो जाते हैं.
गौरतलब है कि उत्तर बिहार में बाढ़ कोई नई समस्या नहीं है. सालों से पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, छपरा समेत अन्य जिले बाढ़ की चपेट में आते रहे हैं. इस समस्या के निदान के लिए सरकार द्वारा बाढ़ पूर्व तैयरी भी की जाती है. करोड़ों रुपये योजनाओं के नाम पर खर्च किए जाते हैं. मुख्यमंत्री खुद समीक्षा भी करते हैं. इसके बावजूद लोग हर वर्ष इस त्रासदी को झेलते हैं.
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