88 दिन बाद पटना हाईकोर्ट ने बिहार के जातिगत सर्वे पर से रोक हटा लिया है. चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की बेंच ने एक लाइन का जजमेंट दिया है. 4 मई को हाईकोर्ट ने 5 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस सर्वे पर अंतरिम रोक लगाया था.
बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. नीतीश सरकार के वित्त मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि हाईकोर्ट ने बिहार सरकार की दलील और सरकार की नीति को उचित माना है. चौधरी के मुताबिक जल्द ही सर्वे का काम पूरा कर लिया जाएगा.
बिहार जातिगत सर्वे के मामले में पटना हाईकोर्ट में कुल 7 बार सुनवाई हुई. पहली 2 सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया था. इसके बाद 5 बार और सुनवाई हुई, जिसमें याचिकाकर्ताओं को 3 दिन और सरकार को 2 दिन पक्ष रखने का मौका मिला.
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के सभी दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया. हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील दीनू यादव ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है.
हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश क्या था?
4 मई को पटना हाईकोर्ट ने 6 याचिकाओं पर फैसला देते हुए जातिगत सर्वे पर अंतरिम रोक लगा दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि बिहार सरकार सर्वे के सभी डेटा को सुरक्षित रखें. दरअसल, याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सुनवाई के बीच सर्वे काम अगर जारी रहता है, तो इसका नकरात्मक असर पड़ सकता है.
हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सरकार का कहना था कि अंतरिम के नाम पर हाईकोर्ट ने अंतिम फैसला दे दिया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को हाईकोर्ट जाने के लिए ही कहा था.
बिहार सरकार 4 की दलीलें, जिससे स्टे हटा
1. जाति समाज की सच्चाई, इसमें नया कुछ नहीं- बिहार सरकार की ओर से पटना हाईकोर्ट में एडवोकेट जनरल पीके शाही ने पक्ष रखा. शाही ने कहा कि जाति समाज की सच्चाई है. सभी धर्मों में जातियों का विभाजन किया गया है. कॉलेज से लेकर नौकरी के पेशे में जातियों का जिक्र जरूरी है.
ऐसे में जातिगत सर्वे को यह कहकर खारिज कर देना कि यह समाज में दूरियां पैदा करेगी, गलत होगा. शाही ने कोर्ट से कहा कि सर्वे का उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध में आंकड़ा एकत्रित करना है, जिसका उपयोग जनता के कल्याण के लिए किया जाएगा.
बिहार सरकार ने यह साफ कहा कि गणना को किसी दायरे में लाना उसके उद्देश्य को सीमित कर देगा.
2. सूचना लेने में निजता का उल्लंघन नहीं- याचिकाकर्ताओं ने दलील देते हुए कहा कि 1931 में भारत में पहली बार जातिगत सर्वे हुआ था. उस वक्त देश में 74 जातियां को रिकॉर्ड में लिया गया था. बिहार सरकार के कथित सर्वे में 215 जातियां रिकॉर्ड में है.
सरकार भले इसे सर्वे बता रही हो, लेकिन सर्वे का जो फॉर्मेट है, वो जनगणना का है. इससे व्यक्तिगत पहचान उजागर होगी. निजता का उल्लंघन लोगों के लिए खतरा बन जाएगा. किसी के व्यक्तिगत पहचान को निजी लाभ या हानि के लिए उपयोग किया जा सकता है.
बिहार सरकार ने इसका पुरजोर विरोध किया. सरकार ने कहा कि हम जो डेटा लोगों से ले रहे हैं, वो सब पब्लिक डोमेन में पहले से हैं. शाही के मुताबिक अभी तक किसी ने निजता उल्लंघन की शिकायत नहीं की है. उन्होंने कहा कि लोगों से जबरदस्ती हम जानकारी नहीं ले रहे हैं.
शाही ने सर्वे के फॉर्मेट का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि हमने 17 सवाल लोगों से पूछे हैं, जो निजता के दायरे से बार है.
3. सर्वे राज्य का अधिकार, SC भी कह चुका है- कोर्ट में पीके शाही ने दलील देते हुए कहा था कि सर्वे कराना राज्य का अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट भी कई आदेश में यह कह चुका है. पीके शाही ने कहा कि सर्वे का 80 फीसदी काम पूरा कर लिया गया है. अब तक जो भी जानकारी लोगों से ली गई है, वो सभी सर्वे का ही हिस्सा हैं.
शाही ने कोर्ट में बताया कि हम इस सर्वे में आर्थिक जानकारी भी ले रहे हैं, जिससे लोगों के लिए योजनाएं बनाई जा सके. शाही ने कहा कि सर्वे कराने को लेकर केंद्र की ओर से अब तक कोई भी आपत्ति दर्ज नहीं कराई गई है, ऐसे में उसके अधिकार का हनन कैसे हो सकता है?
बिहार सरकार ने सर्वे को लेकर पटना हाईकोर्ट में एक हलफनामा भी दाखिल किया. शाही ने कोर्ट में कहा कि ट्रांसजेंडर को अलग-अलग जातियों में नहीं बांटा जा रहा है. इमरजेंसी फंड की बात बेबुनियाद है. सरकार ने सर्वे के लिए अलग से व्यवस्था की है.
4. डेटा सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की- याचिकाकर्ताओं ने अपने दलील में कहा था कि सर्वे का डेटा ऑनलाइन तरीके से जुटाया जा रहा है, जो लीक हो सकता है. इस पर बिहार सरकार ने कहा कि डेटा सुरक्षा की जिम्मेदारी हम ले रहे हैं.
बिहार सरकार ने सर्वे करने वाली एजेंसी का नाम भी हाईकोर्ट के सामने पेश किया. साथ ही एजेंसी कामकाज के तरीके के बारे में भी कोर्ट को जानकारी दी गई.
दाखिल की गई थी 5 जनहित याचिका
जातिगत सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 5 याचिका दाखिल की गई थी, जो एनजीओ यूथ फॉर इक्वलिटी, एनजीओ सोच-एक प्रयास, रेशमा प्रसाद, अखिलेश कुमार और मुस्कान कुमारी ने अलग-अलग दाखिल की थी. सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाकर्ताओं से हाईकोर्ट जाने के लिए कहा था.
इसके बाद हाईकोर्ट ने सभी 5 याचिकाओं को मर्ज कर एक साथ सुनवाई शुरू की थी.
याचिका में केंद्र सरकार को भी प्रतिवादी बनाया गया था. एनजीओ यूथ फॉर इक्वलिटी जातिगत आरक्षण के खिलाफ पहले भी कोर्ट में याचिका दाखिल करता रहा है. वहीं एनजीओ सोच-एक प्रयास (ESEP Trust) दिल्ली का स्वयंसेवी संगठन है.
एक याचिकाकर्ता रेशमा प्रसाद ट्रांसजेंडर हैं और जातिगत के बजाय लिंग आधारित गणना की मांग कर रही हैं.
जातिगत सर्वे मामले में अब तक क्या-क्या हुआ?
27 फरवरी 2020: जाति आधारित गणना कराने का प्रस्ताव बिहार विधानसभा में सर्वसम्मति से पास हुआ. उस वक्त बीजेपी-जेडीयू की सरकार थी.
23 अगस्त 2021: सीएम नीतीश कुमार, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की. इस प्रतिनिधिमंडल में सभी दलों के नेता शामिल थे.
1 जून 2022: जाति आधारित गणना के मुद्दे पर बिहार में सर्वदलीय बैठक हुई, सभी पार्टियों की सहमति बनी. उस वक्त भी बिहार में बीजेपी और जेडीयू की सरकार थी.
2 जून 2022: कैबिनेट से जातीय गणना से संबंधित प्रस्ताव पारित. सरकार ने 2 चरण में सर्वे कराने का आदेश दिया. 500 करोड़ रुपए बजट का प्रावधान किया गया.
07 फरवरी 2023: बिहार में सात जनवरी से जातीय गणना की शुरुआत हुई. सर्वे की जिम्मेदारी समान्य प्रशासन विभाग को सौंपी गई. नीतीश इसके मुखिया हैं.
15 अप्रैल 2023: जातिगत सर्वे के दूसरे फेज की शुरुआत हुई. इस फेज में सभी परिवारों से 17 प्रकार की जानकारी मांगी गई.
21 अप्रैल 2023: जातिगत सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. 27 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने याचिककर्ताओं से हाईकोर्ट जाने के लिए कहा.