बिहार के मदरसों में पढ़ाई जा रही हिंदुओं को 'काफिर' कहने वाली किताब, NCPCR के अध्यक्ष का दावा
Priyank Kanungo: बिहार के मदरसों में पढ़ाई जाने वाली किताबों पर एक बार फिर सवालिया निशान खड़े हुए हैं. इस बार ये सवाल एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने उठाए हैं.
NCPCR Chairperson Priyank Kanungo: बिहार के मदरसों में हिंदुओं को काफिर बताए जाने वाली किताब पढ़ाई जा रही है. मदरसे के बच्चों के दिमाग में जहर भरा जा रहा है. 'तालीम-उल-इस्लाम' नाम की किताब का इस्तेमाल इन मदरसों में हो रहा है, इस किताब में गैर मुस्लिमों को काफिर कहा गया है. इस बात की जानकारी दिल्ली में एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने दी है.
प्रियांक कानूनगो का कहना है, 'बिहार में सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसों में 'तालीम-उल-इस्लाम' जैसी किताबें पढ़ाई जा रही हैं, जिसमें गैर-मुसलमानों को काफिर बताया गया है. हमें यह भी जानकारी मिली है कि इन मदरसों में हिंदू बच्चों को दाखिला दिया जा रहा है'. इसे लेकर बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह ने सोमवार (19 अगस्त) को अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ये मामला संगीन है और सरकार को इसे देखना चाहिए.
Delhi: NCPCR Chairperson Priyank Kanoongo says, "In government-funded madrasas in Bihar, books such as 'Talimul Islam' are being taught, which label non-Muslims as kafirs. We have also received information that Hindu children are being admitted to these madrasas..." pic.twitter.com/pDJeIcXC3H
— IANS (@ians_india) August 19, 2024
बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह ने क्या कहा?
बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह ने कहा है कि क्यों नहीं मुसलमानों से अल्पसंख्यक का दर्जा छीना जाए. अल्पसंख्यकों की श्रेणी से मुसलमानों को बाहर करना चाहिए. मुसलमान अब भारत में अल्पसंख्यक नहीं हैं. जिसकी आबादी करोड़ों में है, वो अल्पसंख्यक कैसे हो सकता है? इस देश में अब शरिया कानून, हलाला और चार शादी वाला सिस्टम नहीं चलेगा. यहां सेक्युलर सिविल कोड आएगा और उसका हर किसी को पालन करना ही होगा. तब जाकर बिहार में इस तरह के काम पर रोक लग सकेगी.
'बिहार में कॉमन सिविल कोड को लाना जरूरी'
उन्होंने कहा कि बिहार मदरसा बोर्ड का सिलेबस जो पूरी तरह कट्टरपंथ से भरा हुआ है. NCPCR ने इस पूरे मामले को उजागर किया है. बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह ने कहा है कि बिहार में कॉमन सिविल कोड को लाना जरूरी हो गया है, नहीं तो बिहार के हर मदरसे में ऐसे ही मुसलमानों को हिंदुओं को खिलाफ भड़काया जाएगा. इन सभी मदरसों में सरकार के जरिए फंडिग की जाती है और सरकार से पैसा लेकर इस तरह का काम मदरसों में होता है.
'तालीम-उल-इस्लाम' किताब को लिखने वाले एक भारतीय लेखक किफायतुल्लाह साहब थे, जो दिल्ली के ही रहने वाले थे. ये किताब आजादी के पहले ही लिखी गई थी. किफायतुल्लाह साहब की मृत्यु 1952 में हुई थी. यहां ये जानना भी जरूरी है कि दरअसल इन इस्लामिक किताबों में 'काफिर' शब्द का अर्थ 'इंकार करने वाले' से है. यानी जो एक भगवान यानी एक खुदा को नहीं मानते उन्हें 'काफिर' कहा जाता है, जो लोग सिर्फ एक भगवान के होने का इंकार करते हैं. हालांकि इस शब्द को लेकर लोगों के बीच आज भी भ्रम की स्थिति है. काफिर एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब इंकार करने वाला होता है. अगर कोई मुसलमान भी एक खोदा के होने का इंकार करता है तो उसे भी काफिर कहा जाता है. 'काफिर' शब्द किसी विशेष समुदाय या धर्म के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया है.
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