गयाः बिहार के गया जिले के बाराचट्टी, मोहनपुर आदि नक्सल प्रभावित इलाकों में पिछले एक दशक से अफीम की खेती होती आ रही है. सीमावर्ती इलाका और हाईवे से सटे होने के कारण इन इलाकों से अफीम की तस्करी आसानी से हो जाती है. वहीं इन्हीं इलाकों में अब वन विभाग के द्वारा वैकल्पिक खेती की व्यवस्था की जा रही है. इसके लिए लेमन ग्रास की खेती के लिए लोगों को और गांव के युवाओं, खासकर महिलाओं को जागरूक किया जा रहा है. प्रशिक्षण क बाद इन इलाकों में लेमन ग्रास और शहद पालन से किसानों को जोड़ा गया है.
बाराचट्टी के शंखवा, छोटकी चापि, बड़की चापि इलाके में लेमन ग्रास की खेती सैकड़ों एकड़ में लगवाई गई है और इससे तेल निकाल कर ग्रामीण बेच रहे है. जो आमदनी इन्हें अफीम से होती थी आज वह लेमन ग्रास से हो रही है. 1500 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से महाराष्ट्र की कंपनी इसे खरीद रही है.
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हर साल की जाती है कार्रवाई
डीएफओ अभिषेक कुमार ने बताया कि यह इलाका काफी नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है. पिछले एक दशक से नशे की अफीम की खेती सैकड़ों एकड़ जमीनों पर होती आ रही है. पिछले वर्ष 2021 में 600 एकड़ में अफीम की फसल की गई थी जिसे विनष्टीकरण किया गया है. इस वर्ष ड्रोन से एरियल सर्वे में खुलासा हुआ कि 450 एकड़ जमीन पर अफीम की फसल लगाई गई है. क्योंकि फरवरी से मार्च के बीच मे अफीम की फसल तैयार हो जाती है. इसके पूर्व वन विभाग, जिला पुलिस, नारकोटिक्स और अर्धसैनिक बलों द्वारा संयुक्त कार्रवाई की जाती है. इस वर्ष भी होगी.
बता दें कि इन इलाकों में गरीबी, बढ़ती बरोजगारी और नशे के कारोबार में शॉर्टकट तरीके से अच्छे पैसे की लालच में ग्रामीण जंगली क्षेत्रों में अफीम की खेती कर रहे हैं. पिछले कई वर्षों से इन इलाकों में अफीम की खेती की जाती रही है और हर साल कार्रवाई होती रही है. यही वजह है कि अफीम की खेती में कुछ कमी जरूर आई है. विशेष सहायता योजना से लेमन ग्रास की खेती के प्रति अब जागरूक किया जा रहा है. ताकि लोग अफीम की खेती छोड़कर लेमन ग्रास की खेती कर आमदनी कर सकें.
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