नालंदा: बिहार के नालंदा से अजीबो गरीब केस सामने आया है जिसे जानने के बाद आप भी चौंक उठेंगे. नालंदा के एक बड़े जमींदार रहे कामेश्वर सिंह की करोड़ों की संपत्ति पर राज करने वाला कन्हैया 41 साल बाद फर्जी निकल गया. कोर्ट के फैसले के बाद अब साफ हो गया है कि वो कन्हैया नहीं बल्कि दयानंद गोस्वामी है जो धोखेबाजी से उनका बेटा बनकर रह रहा था.  


जिला न्यायालय के एडीजे मानवेंद्र मिश्र ने चार दशक पुराने इस मामले में मंगलवार को फैसला सुनाया. जज ने कहा कि वारिस बना व्यक्ति उनका बेटा कन्हैया नहीं दयानंद गोस्वामी है. फैसला सुनाते हुए करोड़ों की संपत्ति का वारिस बने दयानंद गोस्वामी को दो अलग-अलग धाराओं में तीन-तीन साल और एक धारा में 6 माह के कठोर कारावास की सजा सुनाई है. उस पर दस-दस हजार का जुर्माना भी लगाया गया है. जुर्माना नहीं देने पर 6 माह अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.



ऊपर तस्वीर में बिना टाई वाला असली कन्हैया है. दयानंद गोस्वामी वर्तमान में जमुई जिले के लखैय गांव का रहने वाला है. 1981 से ही सिलाव थाना क्षेत्र के मुरगांवा गांव के एक जमींदार कामेश्वर सिंह के यहां फर्जी तरीके से उनका पुत्र कन्हैया बनकर रह रहा था. कामेश्वर सिंह की पत्नी रामसखी देवी ने उसके खिलाफ केस दर्ज कराया था. जमींदार दंपती की मौत के बाद उनकी बेटी विद्या देवी यह केस लड़ रही थीं.


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क्या है पूरा मामला?


बेन थाना के मुरगावां गांव के जमींदार कामेश्वर सिंह का पुत्र कन्हैया सिंह मैट्रिक परीक्षा के दौरान चंडी हाई स्कूल से वर्ष 1977 में अचानक गायब हो गया था. उनकी करोड़ों की संपत्ति का कन्हैया इकलौता वारिस था. गायब होने के कुछ माह बाद ही पड़ोसियों ने गांव में आए एक भरथरी को कन्हैया के तौर पर पहचान कर उसे वहां रखवाया था. तब कामेश्वर सिंह की पत्नी रामसखी देवी ने उसे कन्हैया मानने से इनकार कर दिया था.



वर्ष 1981 में सिलाव थाने में संपत्ति को हड़पने के ख्याल से आए इस कन्हैया पर नकली होने का आरोप लगाते हुए मुकदमा किया गया. 1981 में मामला दर्ज होने के बाद अनुसंधान के क्रम में उसकी पहचान तत्कालीन मुंगेर जिले के लक्ष्मीपुर थाना क्षेत्र के लखई गांव निवासी दयानंद गोस्वामी के रूप में की गई थी. कथित कन्हैया को मां रामसखी देवी और बहन विद्या देवी कन्हैया मानने से इनकार कर रही थीं.


सहायक अभियोजन पदाधिकारी राजेश पाठक ने बताया कि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया था, लेकिन फिर से इसकी सुनवाई के लिए केस को निचली अदालत में भेजा गया. इस मामले में अब तक कई मोड़ आ चुके हैं. करीब 41 साल बाद जज मानवेंद्र मिश्र ने 420, 419 और 120 बी भारतीय दंड संहिता के तहत सजा सुनाई है. दयानंद गोस्वामी को जेल भेज दिया गया है.


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