पटना: बिहार में ‘टोपो’ भूमि का सर्वेक्षण किया जा रहा है. इसको लेकर राजस्व और भूमि सुधार मंत्री आलोक मेहता (Minister Alok Mehta) ने कहा कि पूरे राज्य में जारी विशेष सर्वेक्षण और सभी भूमि के बंदोबस्त के काम में तेजी लाने और दिसंबर 2024 तक काम पूरा करने के निर्देश अधिकारियों को जारी किए गए हैं. राज्य में 'टोपो' भूमि का भी सर्वेक्षण किया जा रहा है. कुछ जिलों में यह कवायद पूरी होने की कगार पर है. जब कवायद पूरी हो जाएगी तो निश्चित रूप से राज्य में भूमि विवाद के मामलों में कमी आएगी. साथ ही सरकार भी 'टोपो' भूमि के बारे में निर्णय लेने की स्थिति में होगी.


टोपो सर्वेक्षण को लेकर फैलाई गई थी अफवाह- मंत्री आलोक मेहता


मंत्री आलोक मेहता ने कहा कि इससे पहले ऐसी अफवाह फैलाई गयी थी कि राज्य में 'टोपो' भूमि का सर्वेक्षण चल रही कवायद का हिस्सा नहीं है. एक अनुमान के अनुसार बिहार में सर्वेक्षण रहित भूमि का अनुपात इसके क्षेत्रफल का लगभग 20 प्रतिशत है. बिहार में भूमि सर्वेक्षण 1905 और 1915 के बीच अंग्रेजों द्वारा किया गया था और बाद में नदी की धारा में परिवर्तन के कारण मिलने वाली भूमि को छोड़ दिया गया था. वर्ष 1959 में बिहार सरकार ने एक और भूमि सर्वेक्षण कराने का फैसला किया था लेकिन वह भी पूरा नहीं हो सका.


'टोपो' भूमि क्या होता है?


मंत्री ने आगे कहा कि मौजूदा कानून के अनुसार राज्य में सभी गैर-सर्वेक्षित भूमि सरकार की है. कोई भी व्यक्ति बिना सर्वेक्षण वाली भूमि पर स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है लेकिन हम जल्द ही इस संबंध में एक नीति की घोषणा करेंगे. बता दें कि बिहार में जिस भूमि का अबतक सर्वेक्षण नहीं हो सका है उसे 'टोपो' भूमि कहा जाता है और इस तरह की भूमि ज्यादातर गंगा और कोसी जैसी नदियों के किनारे स्थित हैं.


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