पटनाः जहरीली शराब (Poisonous Wine) से हुई मौतों के बाद बिहार की सियासत में घमासान मचा है. पक्ष और विपक्ष दोनों एक दूसरे पर हमलावर है. इधर रविवार को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर शराबबंदी को लेकर कई प्रश्न किए हैं. तेजस्वी यादव ने कहा कि चंद चुनिंदा अधिकारियों के चश्मे से ही बिहार के हर हालात और घटना को देखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) क्या इन ज्वलंत सवालों के जवाब दे पाएंगे?


नीचे पढ़ें तेजस्वी यादव के 15 सवाल


बिहार में आए दिन शराब की बड़ी खेप पकड़ी जाती है, जब्त की गई शराब और गाड़ी को पुनः तस्करों के हवाले करने के लिए थानों से ही बोली लगती है जिसका बड़ा हिस्सा प्रशासन व पुलिस के अफसरों और सत्तारूढ़ नेताओं की जेबें गरम करती हैं, क्या मुख्यमंत्री को इस बात की जानकारी नहीं है? बिल्कुल है!


बिहार में दूसरे राज्यों से शराब आती है तो बिहार सीमा के अलावा अक्सर 4-5 जिलों से होते हुए अपने गंतव्य स्थल तक पहुंचता है. बिना विभिन्न जिलों के प्रशासन, मद्य निषेध एवं उत्पाद विभाग व पुलिस के शीर्ष अफसरों की आपसी मिलीभगत, तालमेल और तय हिस्सेदारी के पहुंचना संभव ही नहीं है.


क्या मुख्यमंत्री नहीं जानते कि बिहार में शराब सिर्फ और सिर्फ बोतल में बंद है लेकिन चारों तरफ थानों और प्रशासन की निगरानी में हर चौक-चौराहे से शराब की खुलेआम धड़-धड़ल्ले से बिक्री होती है?


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क्या नीतीश कुमार नहीं जानते कि शराब तस्करों को दी जा रही छूट के बदले मिलने वाली राशि के बल पर ही उनकी पार्टी बिहार की सबसे धनी पार्टी बन गई है?


क्या यह संभव है कि नीतीश कुमार नहीं जानते कि शराबबंदी कानून के लचर कार्यान्वयन के कारण राज्य में 20 हजार करोड़ की एक समानांतर अवैध अर्थव्यवस्था खड़ी हो गई है जिसके सबसे बड़े लाभार्थी जदयू भाजपा में बैठे शराब माफिया के लोग, सरकारी अफसर और पुलिस प्रशासन के लोग हैं?


बिहार में आज तक शराबबंदी पुख्ता तरीके से लागू नहीं हो पा रहा है क्योंकि इसे लागू करने वाले व्यक्ति के मन में ही खोट है. नीतीश कुमार ने बड़ी कुटिलता से शराबबंदी से होने वाले अवैध आय को अपनी पार्टी की रीढ़ की हड्डी बना लिया है!


आज तक शराब माफिया से मिलीभगत पर किसी वरिष्ठ अफसर या सत्तारूढ़ नेता पर कार्रवाई नहीं हुई है. जबकि भाजपा जदयू के नेताओं के विरुद्ध लगातार सबूत मिलते रहे हैं, ये नेता पकड़ाए भी जा रहे हैं इनके वीडियो भी सामने आते रहे हैं.


आज तक शराबबंदी कानून में कोई पैसेवाला या रसूखदार जेल नहीं गया है? सभी पैसे देकर छूट जाते हैं पर 3 लाख से अधिक गरीब-दलित वर्गों के लोग, जो पुलिस व प्रशासन की लोभी जेबों को गरम करने के योग्य नहीं थे, का जीवन खराब कर दिया गया.


जो लोग शराबबंदी कानून में जेलों में बंद हैं, लगभग वो सभी दलित, अतिपिछड़े व गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं. उनके जेल में रहने उनके परिवार के सदस्य भी आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रभावित हुए हैं.


मुख्यमंत्री प्रवचन देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते. कानून व्यवस्था उनके ही जिम्मे है. पुलिस प्रशासन उन्हीं के अधीन है. शराबबंदी की नाकामी नीतीश कुमार की नाकामी है और हर जहरीली शराब कांड में जाने वाली जानों के जिम्मेदार नीतीश कुमार खुद हैं.


क्या शराबबंदी से उत्पन्न संस्थागत भ्रष्टाचार और संस्थागत हत्याओं के ज़िम्मेवार केवल और केवल माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार नहीं है?


मुख्यमंत्री बताएं, शराबबंदी के नाम पर अपने प्रिय नजदीकी अधिकारियों संग हुई हजारों समीक्षा बैठकों में चाय-बिस्कुट और पकौड़ों की खपत के अलावा धरातल पर इन बैठकों का कोई सकारात्मक परिणाम सामने आया?


क्या मुख्यमंत्री नहीं जानते कि उनके अधीन पुलिस उन्हीं की आंखों में धूल झोंकती है? 50 ट्रक शराब की तस्करी कराने के बाद पर एक पुराना ट्रक जब्त दिखाती है जिसमें दिखावे के लिए सीमित मात्रा में शराब और बाक़ी पेटियों और बोतलों में बनावटी रंग भरा होता है. क्या बिहार की इंटेलिजेन्स, पुलिस और गृह विभाग इस सच्चाई से अवगत है?


नवादा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, गोपालगंज, बेतिया, बक्सर इत्यादि ज़िलों में ज़हरीली शराब से हुई सैंकड़ों मौतों का जिम्मेवार कौन है?


लगभग 6 वर्ष बाद भी शराबबंदी क़ानून सही से लागू नहीं हो पाया एवं उसका अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आया तो उसका जिम्मेवार कौन है? क्या यह विशुद्ध रूप से गृहमंत्री सह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अदूरदर्शिता, असफलता और कमजोर नेतृत्व क्षमता का परिचायक नहीं है?



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