वरिष्ठ समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी)का राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में आज विलय हो जाएगा. इसके लिए दिल्ली में शरद यादव के आवास पर एक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. इसमें आरजेडी के वरिष्ठ नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव मौजूद रहेंगे.


कब हुई थी लोकतांत्रिक जनता दल की स्थापना


शरद यादव ने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन मई 2018 में किया था. स्थापना के बाद से इस दल ने कोई चुनाव नहीं लड़ा है. शदर यादव ने 2019 का लोकसभा चुनाव खुद आरजेडी के टिकट पर मधेपुरा से लड़ा था. उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. वहीं 2020 का विधानसभा चुनाव उनकी बेटी सुहासिनी यादव ने बिहारीगंज सीट से कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था. उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा था.  


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आरजेडी में अपने दल के विलय की घोषणा शरद यादव ने एक ट्वीट में की थी. इसमें उन्होंने लिखा था कि उनकी कोशिश आज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक मजबूत विपक्ष खड़ा करने की है. उनका कहना था कि वो इस दिशा में बहुत लंबे समय से काम कर रहे हैं. उन्होंने समान विचारधारा वाली पार्टियों की एकता पर बल दिया था.


तेजस्वी यादव ने शरद यादव को पिता की तरह बताया


चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव को हुई सजाओं के बाद आरजेडी की कमान तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं. उन्होंने शरद यादव को अपने पिता की ही तरह समाजवादी नेता बताया था.उन्होंने कहा था कि शरद यादव उनके पिता की तरह है और उनका मार्गदर्शन करेंगे. 


आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध मेहता ने अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' को बताया कि एलजेडी और आरजेडी का विलय केवल सांकेतिक नहीं है. उन्होंने कहा कि शरद जी ने ठीक ही कहा है कि यह विलय विपक्ष की एकता की ओर पहला कदम होगा. उन्होंने कहा कि शरद यादव एक ऐसे नेता हैं, जिनका हर दल के नेता सम्मान करते हैं. उनके अनुभव से आरजेडी को लाभ होगा. 


नीतीश कुमार के फैसले का शरद यादव ने किया था विरोध


यह यह विलय काफी समय से अटका हुआ था. एलजेडी के संस्थापक नेता शरद यादव और पूर्व सांसद अली अनवर पिछले कई वर्षों से राजनीतिक वनवास में थे. वो अपनी पार्टी को बिहार या किसी और राज्य में बढ़ा नहीं पाए. खुद शरद का भी मधेपुरा के बाहर जनाधार नहीं माना जाता है. मधेपुरा से वो कई बार सांसद चुने गए हैं.


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आरजेडी के लिए शरद यादव का महत्व न केवल उनके राजनीतिक कद से बल्कि इस बात के लिए भी है कि बिहार में सरकार चला रही जेडीयू के इस पूर्व नेता ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ 2017 में फिर गठबंधन करने के फैसले की आलोचना की थी.