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Bihar News: पुलिस के लिए मुसीबत बने हीरा मोती, चाहकर भी नहीं छूट रहा मालिक से पिंड, जानें पूरा मामला

Heera Moti Bihar: पूरा मामला गोपालगंज जिले के जादोपुर थाना का है. थानेदार ने कहा कि 10 हजार रुपये प्रतिमाह खर्च दोनों बैलों पर खर्च आता है. थाना से पैसा जाता है.

गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज में पुलिस के लिए हीरा मोती नाम के दो बैल मुसीबत बन गए हैं. गलती मालिक की बताई जा रही है और सजा बैल भुगत रहे हैं. पूरा मामला गोपालगंज के जादोपुर थाने का है. ''हीरा और मोती'' के नाम से प्रसिद्ध इन बैलों को लेकर पुलिस सिर पीट रही है. यह मामला शराबकांड से जुड़ा हुआ है. बैलों को मालिक की ओर से शराब की तस्करी में लगाया गया था जिसे पुलिस ने शराब के साथ बैलगाड़ी को भी जब्त किया था. कानूनी प्रक्रिया के तहत इन बैलों को नीलाम करना था लेकिन नीलामी की रकम इतनी अधिक है कि कोई खरीदार ही नहीं मिल रहा है.

इधर, पुलिस को थक हार कर शराबकांड के अभियुक्त को ही जिम्मेनामा पर बैलों को सौंपना पड़ा है. अब ''हीरा और मोती'' ना ही मालिक के रहे, ना ही उन्हें छोड़ सकता है और ना ही उसके पास बैलों को चारा खिलाने के लिए उतने पैसे हैं. अब यह है कि पिछले नौ महीने से वह अपने दोनों बैलों को बिना काम कराए उनकी देखभाल कर रहा है.

क्या है पूरा मामला?

जादोपुर थाने की पुलिस ने 25 जनवरी 2022 को रामपुर टेंगराही गांव के समीप छापेमारी कर एक बैलगाड़ी से पशुओं के चारा (घास) में छिपाकर रखे गए 960 बोतल शराब जब्त की थी. पुलिस ने चार लोगों को अभियुक्त बनाया था जिसमें ओमप्रकाश यादव भी शामिल था. ओमप्रकाश समेत तीन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. एक अभियुक्त अभी भी फरार है.

तत्कालीन थानाध्यक्ष मिथिलेश प्रसाद सिंह के बयान पर मामला दर्ज कर एंटी लिकर टास्क फोर्स ने इस बैलगाड़ी को शराब तस्करी के मामले में जब्त किया था. इस बीच पुलिस ने दोनों बैल को अपने पास न रख अभियुक्त के कंधों पर इनकी जिम्मेदारी डाल दी. अभियुक्त होने के कारण उसके नाम से नहीं बल्कि उसके भाई के नाम से जिम्मेनामा कागज बनाया गया. इधर, जेल से बाहर निकले शराबकांड के अभियुक्त ओमप्रकाश का कहना है कि कागज उसके भाई के नाम पर है और बैल को उसके हवाले कर दिया गया है.

जेल जाने पर पत्नी करती थी देखभाल

बेतिया जिला के नौतन थाना क्षेत्र के भगवानपुर गांव के रहने वाले ओमप्रकाश यादव का कहना है कि शराबकांड में पुलिस ने फंसाकर जेल में डाल दिया. जेल जाने के बाद पत्नी ने किसी तरह से छह महीनों तक बैलों की देखभाल की. जेल से आने के बाद अब हम लोग ही देखभाल चारा पानी कर रहे हैं. इन बैलों के कारण ना ही कहीं जा पा रहे हैं और ना ही इससे काम लिया जा सकता है. काम अगर लेंगे और बैलों को कोई नुकसान होगा तो इसकी भी जिम्मेदारी हमारी ही होगी. उसका भी हमें ही जवाब देना पड़ेगा. ओमप्रकाश यादव के मुताबिक थाने से उसे चारा के लिए कोई खर्च नहीं मिलता है.

10 हजार रुपये प्रतिमाह खर्च, थाना से जाता है पैसा

जादोपुर के थानाध्यक्ष विक्रम कुमार ने कहा कि बैलों की देखभाल के लिए ओमप्रकाश को हर महीने 10 हजार रुपये दिए जाते हैं. बैलों के नीलामी का प्रयास किया जा रहा है. जो भी कानून सम्मत कार्रवाई है वह जारी है. सवाल अब उठता है कि जिसके पास से शराब बरामद हुई उसी को जिम्मेनामा बनाकर बैलों की देखरेख की जिम्मेदारी कैसे सौंप दी गई?

नीलामी की कीमत 60 हजार रुपये

जेल से बाहर निकले ओमप्रकाश यादव ने अपनी दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि नौ महीने में 50 हजार रुपये से ज्यादा खर्च हो गए हैं. छह महीने जेल में भी सजा काट ली. अब भी इन बैलों से पीछा नहीं छूट रहा है. ओमप्रकाश का कहना है कि 38 हजार रुपये का बैल है, जिसकी नीलामी के लिए कीमत 60 हजार रुपये निर्धारित कर दी गई है इसलिए कोई खरीदार भी नहीं मिल रहा है.

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