पटना: बिहार की नई सरकार पहले दिन ही अपने दावों में फेल हो गई. क्राईम करप्शन और कम्युनिज्म से कभी समझौता नहीं करने का ऐलान करने वाली नीतीश सरकार ने बिहार के सबसे बड़े घोटाले के आरोपी को हीं शिक्षा विभाग का जिम्मा सौंप दिया.मेवालाल चौधरी को नीतीश सरकार में जेडीयू कोटे से कैबिनेट में मंत्री बनाया गया है. चौधरी ने सोमवार को सीएम के साथ पद और गोपनीयता की शपथ ली. बताते चलें कि ये वही मेवालाल चौधरी हैं, जिनके खिलाफ कभी भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसके बाद नीतीश कुमार को इनको पार्टी से निकालना पड़ा था.बिहार के शिक्षा मंत्री बने मेवालाल चौधरी पर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति रहते नौकरी में घोटाला करने का आरोप लगा था उनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उस वक्त बिहार के राज्यपाल हुआ करते थे उन्होंने ही मेवालाल चौधरी के खिलाफ जांच भी करवाई थी. उन पर लगे आरोपों को सही पाया गया था और सबसे बड़ी बात ये रही कि ये जांच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुई थी मेवालाल चौधरी पर सबौर कृषि विश्वविद्यालय के भवन निर्माण में भी घोटाले का आरोप लगा था सबसे बड़ी बात यह है कि मेवालाल चौधरी के इस बड़े घोटाले के खिलाफ सत्तारूढ़ जेडीयू नेताओं ने भी आवाज उठाई थी. मेवालाल नीतीश कुमार के साख हैं इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भागलपुर सबौर स्थित कृषि कॉलेज को नीतीश सरकार ने विश्वविद्यालय का दर्जा दिया तो चौधरी को यहां का पहला कुलपति बनाया गया था. मेवालाल चौधरी रिटायर हुए तो मुख्यमंत्री ने 2015 में उनको जदयू से टिकट दे दिया और मेवालाल तारापुर विधानसभा से विधायक निर्वाचित हो गये.मेवालाल जब कुलपति बने तो इनकी पत्नी नीता चौधरी जदयू से विधायक बनीं. यह 2010 की बात है, लेकिन बहाली में गड़बड़ी और राजभवन से प्राथमिकी दर्ज होने के बाद विपक्षी तेवर इनके खिलाफ कड़े होने की वजह से नीतीश कुमार ने चौधरी को जदयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया. अब 2020 के चुनाव में फिर से विधायक निर्वाचित होने पर मेवालाल की किस्मत का दरवाजा खुला है.
मेवालाल पर लगे थे ये आरोप
सबौर कृषि विश्वविद्यालय में 161 सहायक शिक्षक और वैज्ञानिकों की बहाली में धांधली का आरोप लगा था और विपक्ष में रहते सुशील मोदी ने इस घोटाले के खिलाफ सदन में आवाज उठाया था. उनकी मांग पर ही राजभवन ने रिटायर जस्टिस महफूज आलम से गड़बड़ियों की जांच कराई गई थी. इसके बाद जज ने 63 पन्ने की जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी की पुष्टि की थी.हालांकि मेवालाल चौधरी नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते थे लिहाजा उनके खिलाफ कार्यवाही होने में बहुत देर कर दी गई थी तब इनका रसूख इतना था की मेवा लाल के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाई बाद में 2017 में उनके खिलाफ निगरानी विभाग ने एफ आई आर दर्ज की और चूंकि उस वक्त तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला चरम पर था तो मेवा लाल चौधरी के खिलाफ भी कार्यवाही करनी पड़ी उन्हें जेडीयू से निलंबित कर दिया गया था. इसी आधार पर राज्यपाल सह कुलाधिपति के आदेश पर थाना सबौर में 35/2017 नंबर की एफआईआर दर्ज की थी. बाद में पांच गवाहों के बयान दफा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए थे. ये बहाली जुलाई 2011 में प्रकाशित विज्ञापन के माध्यम से बाकायदा इंटरव्यू प्रक्रिया के तहत की गई थी. इनके खिलाफ इस मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था. इस घोटाले को बिहार का व्यापम घोटाले का नाम दिया गया था.