पटना : देश की आजादी के बाद से दशकों तक चंपारण कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था आज उसी  चंपारण में कांग्रेस के लिए अपनी वजूद तलासनी  मुश्किल हो गई है इस बिहार विधानसभा चुनाव में चंपारण में एनडीए का परचम लहराता रहा. 21 सीटों में लगभग दो तिहाई से ज्यादा सीटों पर  बीजेपी ने कब्जा जमा लिया और बीजेपी के खाते में 15 सीटों आईं तो वहीं इसकी सहयोगी पार्टी जेडीयू ने 2 सीटों पर बढ़त हासिल की बाकी बचे तीनों सीट पर आरजेडी और  एक एक सीट पर भाकपा माले का कब्जा रहा.इन सबके बीच कांग्रेस के लिए सबसे निराशाजनक यह रही कि पिछले चुनाव में मिली 2 सीट भी उसे गंवानी पड़ी.इस बार महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही कांग्रेस को चंपारण में 21 विधानसभा क्षेत्रों में से कुल 9 सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर मिला था.  इनमें से  2 सीटें बेतिया और नरकटियागंज उसकी सीटिंग सीटें थीं और इतनी सीटों के साथ एक बार फिर कांग्रेस को अपना लक्ष्य दिखाने का अवसर मिला था लेकिन इस बार भी चंपारण की जनता का विश्वास हासिल करने में कांग्रेस कामयाब नहीं हो सकी. सबसे बड़ी बात ये रही कि कांग्रेस के सहयोगी दल राजद ने भी इस इलाके में अपनी पैठ नही बना सकी और  सिर्फ 3 सीटों पर सिमट कर रह गई. इस बार चंपारण में  महागठबंधन में थोड़ा बहुत लाभ मिला है  तो वो है भाकपा माले जिसने अरसे बाद चंपारण में दमखम दिखाया है  नेता वीरेंद्र प्रसाद ने  सिकटा सीट पर जदयू के प्रत्याशी और मंत्री खुर्शीद को न सिर्फ हराया बल्कि तीसरे नंबर पर कर दिया है. लेकिन कांग्रेस के  वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो सन् 2000 के बाद से कांग्रेस और कम्युनिस्टों के लिए चंपारण में सांसद का पद पाना सपने जैसा हो गया है पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली बेतिया और नरकटियागंज की सीट भी इस बार खिसक गई और अब ये कहना अनुचित नही होगा कि चंपारण में कांग्रेसियों का सम्रज्य और अस्तित्व शून्य हो गया है.