गया: बिहार के गया जिले के बाराचट्टी और मोहनपुर प्रखंड के अलावे बिहार-झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती की जा रही है. बीते दिनों एसएसबी और वन विभाग द्वारा इन क्षेत्रों में की जा रही अफीम की खेती का ड्रोन से एरियल सर्वेक्षण के खुलासा किया गया था. अब उस फसल के नष्टीकरण का कार्य शुरू किया गया है.
बता दें कि पहाड़ी इलाकों में वन विभाग की जमीन पर अफीम की खेती की जा रही थी. ऐसे में वन विभाग के अधिकारियों द्वारा अब जेसीबी मशीन चलाकर फसल को नष्ट किया जा रहा है. चूंकि, काफी नक्सल प्रभावित इलाका है, इसलिए वन विभाग की टीम के साथ-साथ एसएसबी के जवान और एनसीबी विभाग के अधिकारियों के संयुक्त नेतृत्व में यह कार्रवाई की जा रही है. साल 2020 में 400 एकड़ में लगे अफीम की फसल को नष्ट किया गया था. लेकिन इस बार 600 एकड़ भूमि पर लगे अफीम की फसल को नष्ट किया जा रहा है.
इस संबंध में वन विभाग के बाराचट्टी के रेंजर मोहम्मद अफसार ने बताया कि अफीम की खेती के पीछे नक्सलियों और राजनेताओं के हाथ के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भी भूमिका होती है. यही वजह है कि रैयती और वन विभाग की जमीन पर इतने बड़े पैमाने पर अफीम की खेती की जा रही है.
उन्होंने बताया कि अफीम फसल की नष्टीकरण को लेकर कई बार एनसीबी और जिले के कई वरीय अधिकारियों के साथ बैठके की गई थी, जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों को इसमें सहयोग करने की बात कही गई थी. लेकिन आज तक किसी जनप्रतिनिधियों ने अफीम की खेती होने की सूचना या जानकारी नहीं दी है.
उन्होंने कहा कि बताया कि पिछले साल सिर्फ अफीम के फसल को नष्टीकरण का कार्य किया गया था. लेकिन पहली बार रैयती जमीन पर अफीम की खेती करने वालों की पहचान कर नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई जा रही है.
ज्ञात हो कि कम समय मे अन्य फसलों की अपेक्षा में लाखों रुपये प्रति किलो बिकने वाली अफीम तैयार हो जाती है, जिससे नक्सलियों की आर्थिक स्थिति और मजबूत होती है. राजनेताओं और नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों को लोभ देकर यह खेती करवायी जाती है. उन्होंने बताया कि जंगली इलाके और नेशनल हाईवे से जुड़े होने के कारण इसकी तस्करी आसानी से एक राज्य से दूसरे राज्यो में की जाती है.