Bihar Pasmanda Muslim Organization Demand: ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज (एआईपीएमएम) ने शुक्रवार को भारत की अनुसूचित जाति (एससी) सूची को धर्म की दृष्टि से तटस्थ बनाने और देश भर में दलित मुसलमानों एवं ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की एक केंद्रीय आयोग से अपील की. पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर अंसारी की अगुवाई में एआईपीएमएम के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज यहां दिन में पूर्व प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन के नेतृत्व वाले तीन सदस्यीय आयोग से मुलाकात की. अंसारी एआईपीएमएम के प्रमुख हैं. 


अनुसूचित जाति की सूची को धर्म की दृष्टि से तटस्थ बनाने की अपील


प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से अनुसूचित जाति की सूची को धर्म की दृष्टि से तटस्थ बनाने की अपील की ताकि पसमांदा मुसलमानों को भी उसमें शामिल किया जा सके. पिछड़े, दलित और आदिवासी मुसलमानों के लिए ‘पसमांदा’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. अंसारी के जरिए जारी किए गए एक बयान में कहा गया है, "हमने आज पूर्व प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाले आयोग से मुलाकात की और अपील की कि केंद्र को एससी दर्जे को धर्म-तटस्थ बनाना चाहिए. भारत के संविधान की उद्घोषणा के बाद, राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 341(1) के तहत संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 जारी किया था, जिसमें एससी श्रेणी में शामिल की जाने वाली ‘जातियों, जनजातियों’ को सूचीबद्ध किया गया". 


प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से यह भी कहा कि समुदाय के भीतर अपनी काफी अधिक संख्या के बावजूद, पसमांदा मुसलमानों का नौकरियों, विधायिकाओं और सरकार के जरिए संचालित अल्पसंख्यक संस्थानों के साथ-साथ समुदाय द्वारा संचालित मुस्लिम संगठनों में प्रतिनिधित्व कम है. एआईपीएमएम के मुख्तार अंसारी ने कहा, "दलित मूल के मुसलमान और ईसाई लंबे समय से धार्मिक प्रतिबंध हटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ताकि उन्हें अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल किया जा सके".


संविधान के अनुच्छेद 341 के तीसरे उपबंध को हटाने की मांग


उन्होंने ये भी कहा कि वर्ष 2004 से दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों के जरिए संविधान के अनुच्छेद 341 के तीसरे उपबंध को हटाने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, क्योंकि इस उपबंध को मनमाना और असंवैधानिक के रूप में देखा जाता है. केंद्र ने 2022 में पूर्व प्रधान न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया था, जिसे ऐसे नए व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की संभावना पर विचार करना था, जो ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति से संबंधित रहे हैं, लेकिन हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म के अलावा अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए हैं.


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