Baba Nageshwar Das Worshipping Maa Durga: शारदीय नवरात्र की शुरुआत आज 3 अक्टूबर से हो चुकी है. नवरात्र में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, आज प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा हो रही है. भक्त अपनी-अपनी आस्था से माता को खुश करने में लगे हैं. कई भक्त कई तरह से माता पर आस्था दिखाते हैं तो कुछ ऐसे भी भक्त है जो पूरे 9 दिनों तक माता की आराधना में लीन रहते हैं.
36 वर्ष की उम्र से सीने पर रख रहे कलश
ऐसे ही एक भक्त देखने को मिले पटना के सचिवालय के पास स्थित मनोकामना मंदिर में, जहां वो अपने सीने पर 21 कलश को रखकर माता की आराधना कर रहे हैं. नवरात्रि के 9 दिनों तक 24 घंटे यह सीने पर कलश रखेंगे. इस दौरान बाबा अन्न जल के साथ-साथ प्रतिदिन की क्रिया को भी त्याग चुके हैं. यह भक्त पटना के रहने वाले 64 वर्षीय बाबा नागेश्वर दास हैं जो पिछले 28 वर्षों से अपनी 36 वर्ष की उम्र से मनोकामना मंदिर में अपने सीने पर कलश रखकर माता की आराधना करते आ रहे हैं.
हर साल यह इसी तरह माता की आराधना करते हैं. जब एक बार सीने पर कलश रखा जाता है तो नवमी की पूर्णाहुति के बाद ही हटाया जाता है. नागेश्वर बाबा बताते हैं कि इसके लिए वह दो दिन पहले से अन्न जल त्याग देते हैं जिसके कारण उनका आखिरी नीति क्रिया भी त्याग हो जाता है. नवमी के बाद भी वह तुरंत वह अन्न जल ग्रहण नहीं करते हैं, पूरे 2 दिन बाद यानी विजयदशमी के दूसरे दिन या अन्न जल ग्रहण करते हैं.
उन्होंने बताया बताया कि उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है. उन्होंने 36 साल की उम्र में माता की आराधना करने की शुरुआत की और उन पर माता का आशीर्वाद होता है. माता सब पार लगाती हैं. शुरुआत में वह सीने पर एक कलश रखते थे धीरे-धीरे कलश की संख्या बढ़ी, अब वह 21 कलश सीने पर रखते हैं.
काफी पुराना है मनोकामना मंदिर का इतिहास
बता दें कि पटना के मनोकामना मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. ऐसी मान्यता है कि जो सच्चे मन से इस मंदिर में आता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. नवरात्रि के समय काफी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं और माता का दर्शन पूजन करने के साथ-साथ बाबा नागेश्वर दास का भी सेवा करते हैं. पटना पुनाईचक की रहने वाली खुशबू देवी माता की पूजा के साथ-साथ बाबा की भी सेवा पैर दबा कर करने लगे.
खुशबू देवी ने बताया कि माता की पूजा करने के साथ-साथ बाबा की पूजा करना भी जरूरी है, क्योंकि इनकी पूजा की जाए या माता की पूजा की जाए दोनों एक ही बराबर है. माता अपने भक्तों से ज्यादा प्रसन्न होती हैं और उनके भक्त की अगर सेवा की जाती है, तो माता खुद ब खुद प्रसन्न हो जाती हैं.