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जब डॉक्टर लाचार, कैसे बचेगा बिहार? पटना के सबसे बड़े अस्पताल के डॉक्टर पत्नी की नहीं बचा पाए जान

पीएमसीएच के डॉक्टर रंजीत अपनी बीमार पत्नी को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल की दौड़ लगाते रहे. पत्नी को बचाने के लिए हाथ पैर जोड़ते रहे. खुद के डॉक्टर होने का दावा करते रहे लेकिन एक वेंटिलेटर पत्नी को दिलवा न पाए.

पटना: बिहार की राजधानी पटना के सबसे बड़े अस्पताल पटना मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल (पीएमसीएच) में तैनात डॉक्टर अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए नहीं बचा पाए क्योंकि उनकी बात डॉक्टरों ने ही नहीं मानी. पत्नी के इलाज के लिए हॉस्पिटल दर हॉस्पिटल भटकते रहे, लेकिन सही इलाज नहीं मिलने के अभाव में मौत हो गई. ये हैं डॉक्टर रंजीत कुमार सिंह, जिनकी पत्नी बरखा सिंह जो सिर्फ 44 साल की थीं. उनके पति खुद डॉक्टर रहते हुए भी नहीं बचा पाए. इस बात का दुख उन्हें इतना है कि बात करते-करते कई बार रो पड़ते हैं.

रंजीत सिंह बताते हैं कि वह किस तरह एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल भटकते रहे पर सही इलाज नहीं हो पाने के कारण पत्नी की मौत हो गई. रंजीत सिंह ने एबीपी न्यूज़ से बताया, वह पत्नी की तबीयत खराब होने के बाद पहले कुर्जी अस्पताल पहुंचे, फिर वहां से रुबन ले गए. उसके बाद पारस अस्पताल गए और वहां से पटना एम्स ले गए. लेकिन कहीं वेंटिलेटर नहीं होने की बात कही गई तो कहीं कोरोनाकाल के डर से भर्ती नहीं किया.

पीएमसीएच के डॉक्टर रंजीत ने मरीजों की इलाज के लिए पढ़ाई की. सरकारी नौकरी की, लेकिन पत्नी की ही इलाज के अभाव में मौत हो जाएगी यह सोचा नहीं था. पत्नी के साथ एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल की दौड़ लगाते रहे. पत्नी को बचाने के लिए हाथ पैर जोड़ते रहे. खुद के डॉक्टर होने का दावा करते रहे लेकिन एक वेंटिलेटर पत्नी को दिलवा न पाए.

प्राइवेट अस्पतालों को ठहराया जिम्मेदार पीएमसीएच में तैनात रंजीत कुमार सिंह ने अपनी पत्नी की मौत का जिम्मेदार शहर के बड़े प्राइवेट अस्पतालों को ठहराया है. पत्नी को नहीं बचा पाने का गम तो था लेकिन इस दर्द को बांटने वाला कोई न मिला. डॉक्टर साहब ने इंडियन मेडिकल एसोशिएशन यानि आईएमए को पत्र लिखकर बताया कि उनके साथ डॉक्टरों और अस्पतालों में कितना जुल्म किया.

उन्होंने पत्र में लिखा, "मैं डॉ रंजीत कुमार सिंह जो अभी चिकित्सा पदाधिकारी के पद पर कार्यरत हूं. मेरी पत्नी बरखा सिंह को दिनांक 23/7/20 को प्रातः 10 बजे सांस लेने में तकलीफ हुई. घर में मैंने देखा कि सुगर हाई और बीपी लो है. अपने आवास से नजदीक होने के कारण मैं तुरंत कुर्जी अस्पताल में एडमिट किया. मेरी पत्नी को एडमिट करने के बाद स्थिति नॉर्मल किया गया. पल्स काफी लो बताकर वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ती सकती है बताकर पत्नी को रूबन अस्पताल रेफर कर दिया गया, जबकि वहां भी वेंटिलेटर की व्यवस्था थी. जब मैं रूबन अस्पताल में अपनी पत्नी को लेकर गया तो वहां के डॉक्टरों से काफी मिन्नत करनी पड़ी. खुद डॉक्टर होते हुए भी मैंने वहां के डॉक्टरों का हाथ-पैर पकड़ा."

उन्होंने आगे लिखा, "कुछ देर ओपीडी में इलाज के बाद वेंटिलेटर का बहाना बनाकर वहां से भी मुझे दूसरी जगह रेफर कर दिया गया. उसके बाद मैं पत्नी को लेकर पारस अस्पताल गया, वहां डॉक्टरों ने देखना तो दूर छुआ तक नहीं. डॉक्टरों का एक डॉक्टर के साथ इस प्रकार का व्यवहार मेरे लिए ह्रदयाघात के समान था. उसके बाद पत्नी को एम्स पटना ले जाने के दौरान रास्ते में ही मौत हो गई. मेरी पत्नी को आईसीयू एवं वेंटिलेटर की आवश्यकता थी. अत: सचिव महोदय से निवेदन है कि रूबन एवं पारस अस्पताल के द्वारा की गई लापरवाही से मुझे अपूरणीय क्षति हुई है. आप अनुरोध है कि इन दोनों अस्पतालों पर आवश्यक कार्यवाई करें."

क्या है पूरा मामला पूरा मामला इसी महीने के 23 तारीख का है, जब डॉक्टर की पत्नी बरखा सिंह की तबीयत अचानक से बिगड़ गई. पति ने तुरंत उन्हें घर के नजदीक कुर्जी मेमोरियल अस्पताल में भर्ती कराया. थोड़ा-बहुत इलाज कराने के बाद अस्पताल प्रशासन ने बेहतर इलाज के लिए उन्हें पाटलिपुत्र इलाके स्थित रूबन अस्पताल में रेफर कर दिया. वहां उनका कोरोना जांच किया गया और रिपोर्ट निगेटिव आई. डॉक्टर साहब का आरोप है कि पत्नी को आईसीयू में एडमिट करने के बजाय ओपीडी में रखा गया.

तबीयत बिगड़ती देख वहां से भी उन्हें पारस अस्पताल जाने की बात कही गई. वहां पहुंचने पर उन्हें डॉक्टर समेत सभी स्टाफ की मिन्नते करनी पड़ी, फिर भी उन्हें वेंटिलेटर की सुविधा नहीं मिली. अस्पतालों के चक्कर लगाते-लगाते वो पत्नी को लेकर पटना एम्स पहुंचे वहां भी उन्हें आंधे घंटे तक रोककर रखा गया. पत्नी की गेट पर ही मौत हो गई. अब डॉक्टर रंजीत ने IMA को पत्र लिखकर प्राइवेट अस्पताल पर उचित कारवाई की मांग की है. IMA के सचिव को लिखे पत्र में डॉक्टर रंजीत ने रूबन एवं पारस अस्पताल को पत्नी की मौत का कारण माना है, और उनपर उचित कार्रवाई की मांग की है.

बेटी भी बनना चाहती है डॉक्टर एक ही बेटी है जो बारहवीं पास कर डॉक्टर बनने के लिए तैयारी कर रही है. जब डॉक्टर पिता निजी अस्पताल डॉक्टरों से चिरौरी कर रहे थे उस वक्त बेटी आकांक्षा अपनी मां के साथ एब्यूलेंस में बैठी रही. डॉक्टर परिवार से होने का जो गर्व था वह उसके सामने चकनाचूर होता दिख रहा था. पिता की परेशानी और मां की बिगड़ती तबीयत उसे परेशान कर रहा था. एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाने से उसका विश्वास डगमगा रहा था. मां को अपने सामने इलाज़ के आभाव में तिल तिल मरते देख रहा सहा भरोसा भी टूटने लगा. आकांक्षा की आंखों के सामने मां की सांस टूट रही थी. पर वह बेबस थी बिल्कुल निरीह. 13 घटे तक मां को इलाज पाने के लिए भटकते पिता की स्थिति देखकर आकांक्षा भी हिल गई.

आकांक्षा ने कहा कि कुछ डॉक्टर की वजह से बदनामी होती है. मेरी मां की मौत से सबक सीखें सभी डॉक्टर. वो डॉक्टर बनना चाहती हैं पर अपने पिता की तरह जो मरीज के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.

आखिर पीएमसीएच में भर्ती क्यों नहीं कराया गया पटना के वैशाली आपर्टमेंट में रहने वाले गार्ड ब्रज किशोर और पड़ोसी गौतम बताते हैं कि इस आपर्टमेंट में आठ डॉक्टर रहते हैं फिर भी अपने पड़ोसी डॉक्टर की पत्नी को बचा नहीं सके. कोरोना में हालात इतने खराब हो गए हैं कि पड़ोसी तक किसी को डर से देखने नहीं जा रहे.अस्पतालों की व्यवस्था किसी से छुपी नहीं है. सवाल यह उठता है कि पीएमसीएच में बतौर डॉक्टर खुद तैनात थे फिर भी वह वहां एडमिट क्यों नहीं करवाया. क्या डॉक्टर रंजीत को पीएमसीएच पर भरोसा नहीं था या फिर बीमार पत्नी जिसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी उसे आखिर आशंका किस बात की थी जिस डर से एडमिट नहीं करवाया.

इस सवाल के जवाब में डॉक्टर साहब ने कहा कि पीएमसीएच में इलाज़ तो होता है लेकिन जितनी संख्या में मरीज आते हैं उस अनुपात में डॉक्टर, नर्स, पारा मेडिक स्टाफ नहीं होते हैं. डॉक्टर पर लोड ज़्यादा है. ऐसे में उन्हें यह उम्मीद थी कि सरकारी अस्पताल से बेहतर इलाज प्राइवेट अस्पतालों में हो जाएगा. सरकार की तरफ से हाल ही कोरोना मरीज़ों को निजी अस्पतालों में भर्ती किए जाने का आदेश जारी किया गया है लेकिन कोरोना मरीज़ों की छोड़िए आम मरीज़ों को भी भर्ती करने में डर है.

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