गोपालगंज: जिला न्यायालय के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी- 10 मानवेन्द्र मिश्र ने आर्म्स एक्ट के दो आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए शुक्रवार को दोषमुक्त कर दिया है. यह मामला 19 साल से कोर्ट में चल रहा था. दोनों आरोपित तीन महीने जेल में भी रहे. ऐसे में अदालत ने पुलिस अनुसंधान में लापरवाही को लेकर काफी तल्ख टिप्पणी भी की. लापरवाही को देखते हुए अपराध अनुसंधान विभाग के महानिदेशक को कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि वे अपने अधीनस्थ पुलिस पदाधिकारियों से गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान सुनिश्चित कराएं ताकि भविष्य में ऐसा न हो.


क्या है मामला?


घटना 22 फरवरी 2003 की है. पुलिस को सूचना मिली थी कि कुख्यात अपराधी मुन्ना कमकर, कृष्णा गिरी के घर में छिपा है. यह पता चलने के बाद पुलिस पहुंची तो दोनों भागने लगे लेकिन पुलिस ने खदेड़कर पकड़ लिया. मुन्ना के हाथ में एक लोडेड देसी कट्‌टा और पैंट की जेब से दो गोली मिली थी. दूसरे व्यक्ति के पास से कुछ नहीं मिला था. दोनों को आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया और जेल भेज दिया गया. फिलहाल दोनों जमानत पर थे.


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प्राथमिकी और साक्ष्य में विरोधाभास


बताया जाता है कि पुलिस का अनुसंधान इतना लचर रहा कि वह अपनी बात को ही एक दूसरे रिपोर्ट में काटती रही. अभियुक्तों से बरामद गोलियों की संख्या हर रिपोर्ट में बढ़ती गई. यहां तक कि न्यायालय में भी जब्ती सूची से एक गोली ज्यादा पेश किया गया. गिरफ्तारी स्थल को लेकर भी गवाहों के बयान में विरोधाभास रहा जबकि सभी गवाह सरकारी थे. थाना प्रभारी का कहना था कि भागने के दौरान पकड़ा गया. सिपाही किशोर राम के अनुसार थाना प्रभारी घर के अंदर गए थे और वह हाथ में पिस्तौल और गोली लेकर निकले. इस तरह कई और बातों और साक्ष्यों में विरोधाभास दिखा और पुलिस अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाई.


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