बगहा: एक दौर था जब बिहार के पश्चिमी चंपारण के बगहा को मिनी चंबल के नाम से जाना जाता था. तब लोग अपने घर में भी सुरक्षित नहीं हुआ करते थे. अपराधियों का खौफ कहिए या जंगलराज की दहशत शाम के 5:00 बजते-बजते लोग अपने घरों में चले जाया करते थे. जंगलराज का गवाह बना एकमात्र बगहा जहां आरजेडी के लालू यादव की सरकार और दश्यू गिरोह के कहर से खौफ आलम बना रहता था.


90 के दशक जब बिहार में लालू यादव की सरकार थी, तभी नियम और कानून लालू यादव के इशारों पर चलते थे. बिहार में कोई भी कितना भी नियम बना ले, न्याय से ऊपर और नियमों के सदाचार से परे लालू यादव अपनी नीति चलते थे. लालू यादव के कार्यकाल को जंगलराज यूं ही नहीं कहा जाता है. उनके कार्यालय में बिहार के बगहा में अपहरण, फिरौती, हत्या, लूट जैसे अपराध चरम सीमा पर थी.


1990 में बनी आरजेडी की सरकार में राजनीति और अपराध का तालमेल लगातार बढ़ता ही रहा. लालू यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल में दश्यू सरगनाओं के अपराध से बगहा निजात पाने के लिए छटपटा रहा था. एक तरफ बिहार के राजनीति में लालू यादव का पकड़ हुआ करता था. वहीं बगहा में दश्यू गिरोह के लालू यादव और भांगड़ यादव जैसे अपराधियों का पकड़ था और वो अपना अलग ही शासन चलाते, उनका अपना अलग दरबार होता था.


14 दिसम्बर 1994 को रामनगर प्रखण्ड अंतर्गत नरकटिया भुअरवा गांव में सशस्त्र अपराधियों ने एक दर्जन से ज्यादा ग्रामीणों की हत्या कर दी थी, जिनकी हत्या हुई थी उनका नाम गौरी शंकर महतो, जय राम महतो, रामविलास महतो, विश्रान महतो, धर्मराज महतो, भिखारी महतो, छेदी महतो, रौशन महतो, रोगाही महतो, नरसिंह महतो, भुवनेश्वर महतो, रूदल महतो, बलिराम महतो, सदाकत मियां और पाण्डू मुण्डा था.


दश्यू सरगना राधा यादव, रामचन्द्र मल्लाह, अलाउद्दीन मियाँ, चुम्मन यादव, राजेन्द्र चौधरी, किशोरी नुनीया, पत्थर चौहान, नेमा यादव जैसे कुख्यात अपराधियों का गिरोह था, जो बगहा में जमकर उत्पात मचाते थे. ऐसे में तत्कालीन सरकार ने बगहा को अपराधमुक्त करने के लिए 8 जनवरी 1996 को पुलिस जिला बनाया था. इसके बाद धीरे-धीरे यहां कुछ महीनों तक अपराध पर लगाम तो लगा लेकिन पूरी तरह नियंत्रण नहीं हो सका.


तत्कालीन समय में किसी भी परिवार को चैन नहीं था. सुबह का व्यक्ति शाम को घर आएगा कि नहीं यह कहना मुश्किल था. बच्चों के स्कूल जाने के बाद मां सलामती की मन्नतें मांगती रहती थी. यह लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकार का चेहरा था.


आज भी बिहार के नक्शे में बगहा के पुलिस जिला का नक्सलाइट एरिया के रूप में वर्णन किया जाता है. आज भी पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में बिहार के मैप में बगहा को नक्सलाइट एरिया कहा जाता है. बॉर्डर से लेकर नगर पालिका क्षेत्र के आसपास सशस्त्र सीमा बल की बटालियन कैंप करती है. आज भी बगहा के दियारा क्षेत्र में दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा रहता है. उसे देख कर जंगलराज की याद आती है.


आज भी कभी बगहा जिला में कोई घटना घट जाए या किसी की अपरहण हो जाए या फिरौती की मांग आ जाए तो यहां की जनता थर्रा उठती है कि कहीं फिर से डाकुओं का बोलबाला तो नहीं हो गया, कहीं फिर से वही जंगलराज तो नहीं शुरू हो गया.


राजनीतिक मार कहिए या फिर कुर्सी की मांग कहिए जब कभी चुनाव से पहले गुंडागर्दी या फिरौती की मांग शुरू होती है, तो लोग सहम जाते हैं और लोगों को वही पुराना 15 साल का इतिहास याद आ जाता है, जब राहगीरों को पीटा जाता था, गाड़ियों को तोड़ा जाता था और गुंडों का तांडव चलता था. लोग आज भी उस जंगलराज को भूल नहीं पाते.


लेकिन जब लालू-राबड़ी की सरकार गिर गई और नीतीश कुमार की सरकार बनी तो अपराध पर अंकुश लगता गया क्योंकि नीतीश कुमार ने चुनावी सभा में यह ऐलान किया था कि हमारी सरकार सत्ता में आएगी तो हम अपराध पर नियंत्रण कर देंगे और वैसा ही हुआ. नीतीश कुमार की सरकार जैसे ही सत्ता में आई 2005 के बाद लोगों ने चैन की सांस ली और रात को भी सड़कों पर बेफिक्र घूमते थे. बगहा में अपराध घटने लगा, दश्यू सरगना सरेंडर करने लगे. बासुदेव यादव, चुम्मन यादव, राधा यादव जैसे कुख्यात सरगनाओं ने सरकार के सामने सरेंडर किया और नक्सलवाद पर भी लगाम लगी.


लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी बगहा में जिलाधिकारी की कोई जरूरत महसूस नहीं होती. वर्तमान जिलाधिकारी 60 किमी की दूरी तय कर क्षेत्र भ्रमण के लिए महीने में एक बार आते हैं. लेकिन क्या महीने में एक बार भ्रमण करने से बगहा का विकास हो जाएगा? बाकि समय जनता को ही जिला कार्यालय का चक्कर काटना होता है जिसमें जनता का आर्थिक और मानसिक शोषण होता है.