पटना: बिहार के सियासी गलियारे में जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (JDU Upendra Kushwaha) को लेकर घमासान मचा है. एक तरफ वे पार्टी में ही अपने रास्ते पर चल रहे हैं तो वहीं जेडीयू कुछ सुनने को तैयार नहीं है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh) जो कल तक बयान नहीं दे रहे थे वह भी खुलकर बोलने लगे हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने 19 और 20 फरवरी को सिन्हा लाइब्रेरी में बैठक बुलाई है. इस बैठक की घोषणा के बाद से नीतीश कुमार की पार्टी में फूट का डर समा गया है. यही वजह है कि तुरंत ललन सिंह ने ट्वीट कर कुशवाहा की इस बैठक पर कहा कि कहीं पर निगाहें तो कहीं पर निशाना है.
क्या हैं इस बैठक के मायने?
उपेंद्र कुशवाहा ने इस बैठक के लिए एक पत्र लिखा है. पत्र में वही बातें हैं जो वो लगातार मीडिया के सामने कह भी रहे हैं. आरजेडी के साथ क्या डील हुई है वह बताया जाए. जेडीयू कमजोर हो रही है. वे कुछ बोल रहे हैं तो उनकी बातों की गलत तरीके से व्याख्या की जा रही है. मामला तब और बढ़ गया जब उनकी ओर से इस तरीके के बयान को सुनकर नीतीश कुमार ने कह दिया कि उपेंद्र कुशवाहा को जाना है तो चले जाएं. इस पर कुशवाहा ने हिस्से की बात कर दी. वो अपना हिस्सा मांगने लगे. अब इस बैठक के बाद से पार्टी में बौखलाहट है. इसके मायनों को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.
तो कुशवाहा और ललन सिंह में छिड़ी लड़ाई?
उपेंद्र कुशवाहा को लेकर ललन सिंह कुछ बोलने से बचते रहे थे. मकर संक्रांति के बाद से ही जेडीयू में विवाद जारी है. 5 फरवरी 2023 को उपेंद्र कुशवाहा ने पत्र जारी कर जेडीयू को बचाने की बात कही और मीटिंग बुलाई तो तुरंत ललन सिंह ने पलटवार किया. अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह लड़ाई कुशवाहा और ललन सिंह के बीच हो गई है. इसके पहले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने भी कई बयान दिए थे. इन दिनों वे चुप हैं.
ललन सिंह की लड़ाई इसलिए भी कि रविवार को पलटवार करते हुए सीधा ललन सिंह ने कहा- "कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना. जदयू के समर्पित एवं निष्ठावान कार्यकर्ता साथियों को दिग्भ्रमित करने का प्रयास है. ना कोई डील है और ना ही विलय की बात. यह सिर्फ एक मनगढ़ंत कहानी है." कल तक इसी डील पर पार्टी ने चुप्पी साधी थी. अब उपेंद्र कुशवाहा की ओर से बुलाई गई बैठक के बाद पार्टी को डर है कि कहीं कुशवाहा कोई खेल न कर दें.
कुशवाहा की बुलाई बैठक से फूट?
उपेंद्र कुशवाहा ने जो बैठक बुलाई है इसी से पार्टी में बेचैनी है. उपेंद्र कुशवाहा ने अपना हिस्सा मांगा है. उन्होंने 1994 वाली नीतीश कुमार और लालू यादव की बात भी याद दिलाई है. उसी के आधार पर हिस्सा मांग रहे हैं. कुशवाहा ने बैठक में जनता दल के प्रमुख साथी, पूर्व में रालोसपा के साथ काम कर चुके साथी और महात्मा फुले समता परिषद के प्रमुख साथियों को बुलाया है. पार्टी को डर है कि कुशवाहा अलग होते हैं तो कहीं वोट का बिखराव न हो जाए. 2024 में चुनाव है और अगर कुशवाहा कुछ भी करते हैं पार्टी से अलग होकर तो इससे नीतीश कुमार को नुकसान पहुंच सकता है.
इससे पहले आरसीपी सिंह और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मोर्चा खोल रखा है. नीतीश कुमार विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं. बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा ने कुछ किया तो नीतीश कुमार की देश की राजनीति पर असर पड़ सकता है.
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