पटना: लालू परिवार पर कभी ईडी तो कभी सीबीआई की कार्रवाई जारी है. वहीं दूसरी ओर एनडीए से नाता तोड़ने के बाद सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) जितने ही ज्यादा बीजेपी पर गरम हैं उतने ही लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के करीब. उनके बयानों से ही यह झलकने लगा है. बिहार के मुख्यमंत्री जो कुछ समय पहले तक इन सारे मसलों पर बोलते नहीं थे अब वो खुलकर बोलने लगे हैं. अब तो लालू के लिए सीएम के मुख से 'बेचारा' शब्द भी निकलने लगा है. ऐसे में सवाल है कि नीतीश का ये लालू प्रेम भाईचारे के लिए है सियासत के खेल में कुछ और है?


नीतीश के बयानों से समझें नजदीकियां और मायने


लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के खिलाफ विपक्षी एकता की शुरुआत सीएम नीतीश कुमार ने की और दो बैठकों का दौर समाप्त हो चुका है. तीसरी बैठक 1 सितंबर को मुंबई में होने वाली है. इसकी जानकारी खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार (25 अगस्त) को मीडियाकर्मियों से बातचीत में दी. सीबीआई और ईडी की कार्रवाई पर नीतीश कुमार ने कहा कि उनको (लालू) बेचारे को तो जान बूझकर न तंग किया जा रहा है. केंद्र पर हमला करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि आजकल जो हैं केंद्र में किसी को छोड़ रहे हैं. सबको तंग ही न कर रहे हैं.


नीतीश के इस बेचारे शब्द से नजदीकियां झलके या कोई और मायने लेकिन यह पहल बार नहीं है. अभी इसी साल मार्च में नीतीश कुमार ने ईडी-सीबीआई की कार्रवाई पर चुप्पी तोड़ी थी. कहा था कि ये कोई मुद्दा नहीं हैं. 2017 में भी छापेमारी हुई थी. अब 5 साल बाद फिर कार्रवाई हो रही है. जब से वे आरजेडी के साथ आए है, तब से क्या हो रहा, ये सभी देख रहे हैं.


चार कारणों से समझें क्यों उठ रहे सवाल


बीजेपी लगातार यह आरोप लगा रही है कि नीतीश कुमार लालू के सहारे अब राजनीति कर रहे हैं. नीतीश कुमार के हाथ में कुछ भी नहीं है. इन तीन कारणों से समझें क्यों इस तरह के सवाल उठ रहे हैं.


पहला: सीएम नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़कर अगस्त 2022 में बिहार में महागठबंधन की सरकार बना ली. उनके जाते ही जेडीयू में टूट भी हो गई. उपेंद्र कुशवाहा जैसे बड़े नेता ने भी पार्टी छोड़ी और आरोप लगाया कि आरजेडी और जेडीयू में डील हुई है. इस बात को वजन इस वजह से भी मिलती है कि नीतीश कुमार ने खुद ही मीडिया से बातचीत में तेजस्वी की ओर इशारा करते हुए कहा था कि अगला चुनाव अब इन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा.


दूसरा: लैंड फॉर जॉब मामले में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की जिसमें तेजस्वी को भी आरोपी बनाया. यह मामला बिहार विधानसभा सत्र में बीजेपी ने उठाया. तेजस्वी यादव के इस्तीफे की मांग की गई. विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि नीतीश कुर्सी बचाने के लिए डिप्टी सीएम को बर्खास्त नहीं कर रहे. आरजेडी के सहारे सीएम हैं. भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का ढोंग करते हैं. चार्जशीटेड भ्रष्टाचारी डिप्टी सीएम तेजस्वी सदन में कैसे आ जाते हैं? उनको इस्तीफा देना चाहिए. सीएम आखिर क्यों इस्तीफा नहीं ले रहे हैं?


तीसरा: इसी बीच हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संरक्षक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने भी नीतीश कुमार पर गंभीर आरोप लगाया और पार्टी छोड़ दी. कहा था उनकी पार्टी को विलय के लिए दबाव बनाया गया था. मांझी ने सीएम नीतीश कुमार पर सवाल उठाए थे कि तेजस्वी यादव को क्यों नहीं बर्खास्त किया जा रहा है? जीतन राम मांझी ने कहा कि उन पर जब आरोप लगा था तो तुरंत इस्तीफा ले लिया गया था. अब नीतीश कुमार ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं?


चौथा: बिहार में बढ़ते अपराध के मामलों पर भी यही कहा जा रहा है कि जब से नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ सरकार बनाई है तो प्रदेश में अपराध बढ़ गए हैं. चुनावी रणनीतिकार और राजनीतिक जानकार प्रशांत किशोर ने भी अपने बयान में यह बात कही है कि बिहार की सत्ता पूरी तरह से आरजेडी के हाथ में इसलिए जंगलराज की वापसी हो रही है.


क्या पीएम बनना है मकसद?


2024 में केंद्र की सत्ता से बीजेपी को उखाड़ फेंकने की बात कही जा रही है. बीजेपी कह रही है कि नीतीश कुमार का पीएम बनने का सपना पूरा नहीं होगा. हालांकि नीतीश कुमार खुद कह चुके हैं कि उनकी कोई मंशा नहीं है कि वह पीएम बनें. वह विपक्ष को बस एकजुट करना चाहते हैं. हालांकि यह सवाल इसलिए उठते रहे हैं क्योंकि खुद जेडीयू के कई नेता यह बात कह चुके हैं कि नीतीश कुमार में पीएम बनने की क्षमता है. वह पीएम मैटेरियल हैं. वहीं आरजेडी भी चाहती है कि नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति करें. बिहार की गद्दी तेजस्वी यादव के हाथों में सौंप दें. खैर राजनीति में कुछ भी संभव या असंभव नहीं है. बिहार की राजनीति में कब क्या हो जाए यह कह पाना भी मुश्किल है. सीएम नीतीश कुमार को राजनीतिक पंडित भी नहीं आंक सकते हैं.


यह भी पढ़ें- Lok Sabha Elections 2024: पटना में आज BSP का पिछड़ा सम्मेलन, मायावती का कितना असर? समझें सियासी समीकरण