पटना: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) जन सुराज पद यात्रा पर हैं. इस दौरान वह लगभग रोज ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं. हाल ही में प्रशांत किशोर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बिहार की यात्रा की पूरी कहानी बताई साथ ही यह भी बताया कि बिहार के विकास की गाड़ी पटरी से क्यों उतरी. प्रशांत किशोर ने कहा कि इसके लिए बिहार के विकास के आंकड़ों को पीछे से देखना होगा. साल 1965 में बिहार अग्रणी राज्यों में ही था, लेकिन उसके बाद सूबे का पतन होना शुरू हो गया. लालू और नीतीश सरकार के कार्यकाल को भी घेरते हुए पूरी राजनीतिक यात्रा बताई.


आंकड़ों के हिसाब से बताई बिहार की यात्रा


प्रशांत किशोर ने कहा कि आपको बिहार के आंकड़ों को थोड़ा पीछे देखने पड़ेगा. साल 1965 से लेकर 1990 तक बिहार ने एक बहुत बड़ी राजनीतिक अस्थिरता का दौर देखा है. इस दौरान लालू यादव मुख्यमंत्री थे. कहा कि 1966 से लेकर 1990 तक इन 23 साल में बिहार में 25 अलग अलग सरकारें बनीं. पांच बार गवर्नर रूल और साथ ही अलग-अलग 20 मुख्यमंत्री. इस दौरान कोई छह दिन के लिए मुख्यमंत्री बना तो कोई कुछ महीने के लिए सीएम बना. इसके कारण बिहार के विकास को हाशिए पर रख दिया. यही कारण था कि बाकी राज्य आगे बढ़ते गए और बिहार पीछे होते चला गया. साल 1990 में स्थिरता लौटी तो लालू प्रसाद यादव के फॉर्म में लौटी. उन्होंने कहा कि हम आर्थिक विकास के बदले सामाजिक न्याय करेंगे.


लालू के कार्यकाल का घेराव


प्रशांत किशोर आगे बोले कि सामाजिक न्याय में लालू यादव ने लोगों को आवाज दी. समाज के कुछ वर्गों को मानने में कोई दिक्कत भी नहीं होगी कि सच में लालू यादव ने उनके लिए बहुत कुछ किया है. सामाजिक न्याय सिर्फ आवाज नहीं है. उन वर्गों को शिक्षा नहीं मिली, पूंजी नहीं मिली, जमीन नहीं मिली. उनकी स्थिति कुछ बदली नहीं थी. लालू यादव ने सामाजिक न्याय के जरिए अपनी राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाया. साल 2005 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आए. उनका नारा रहा सामाजिक न्याय संग विकास. इस दौरान बिहार में कुछ विकास कार्य जरूर हुआ है, लेकिन नीतीश कुमार का दौर भी दो भाग में बंट गया.


नीतीश कुमार के कार्यकाल का घेराव


किशोर ने कहा कि इस दौर में बिहार की जनता को राजनीतिक अस्थिरता का बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा है. नीतीश कुमार के 17 साल के दौर में साल 2012 से लेकर 2017 तक का दौर जिसमें राजनीतिक स्थिरता थी. वो चाहे जिस भी लोग के साथ थे वे लोग मिलकर बिहार के विकास के लिए लगे हुए थे. बिहार में उस दौरान काम हुआ. बिहार में इतना अंधकार था कि छोटे दीए के भी जलने से बड़ा प्रकाश दिखा. वहीं 2012 से जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय लेवल पर आए उसके बाद फिर कायापलट हो गई. बिहार फिर से राजनीतिक अस्थिरता की कगार पर आ गया. जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति में आए तो नीतीश कुमार उनसे अलग हो गए. इसके बाद कई प्रयोग किए और पांच से छह बार वह चुनाव करते रहे. नीतीश कुमार अपनी सरकार बदलते बदलते 10 साल में छठवें तरह की सरकार बना रहे तो जाहिर सी बात है कि विकास हाशिए पर ही रहेगा. यही कारण रहा कि बिहार इतना पीछे हो गया.


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