पटना: रविवार 16 अप्रैल को बिहार महागठबंधन के लिए झटका वाला दिन रहा. एक तरफ कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता शकील अहमद (Shakeel Ahmad) ने एलान कर दिया कि वह भविष्य में कभी भी लोकसभा या विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे तो दूसरी ओर महागठबंधन में शामिल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संरक्षक जीतन राम मांझी (Jitan Ram manjhi) ने एक सभा में इशारों-इशारों में कह दिया है कि वह भी आंदोलन कर सकते हैं. इसमें कोई बुराई नहीं है. यानी एक शकील अहम तो साइड हो गए लेकिन मांझी तेवर के अपने मन की बात को वह बेहतर समझ रहे होंगे. पढ़िए इनसाइड स्टोरी.


बिहार में सात पार्टियों का महागठबंधन है जिसमें जेडीयू और आरजेडी के अलावा कांग्रेस के साथ हम की भी बड़ी भूमिका है. शकील अहमद अल्पसंख्यक समाज से आते हैं और कांग्रेस में काफी दिनों से रहे हैं. बिहार में दलित पार्टी को देखा जाए तो लोक जनशक्ति पार्टी के बाद जीतन राम मांझी दलित नेता के रूप में जाने जाते हैं. लोक जनशक्ति पार्टी भले टूट चुकी है लेकिन एलजेपी की दोनों पार्टियां बीजेपी के समर्थन में हैं. ऐसे में जीतन राम मांझी महागठबंधन में एकमात्र दलित के नेता हैं.


जानिए क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार


इन दोनों मामले पर बिहार के राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय ने कहा कि शकील अहमद से महागठबंधन पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है. यह बात सही है कि शकील अहमद काफी पुराने और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं. विधायक और मंत्री से लेकर सांसद तक का सफर तय किया लेकिन उनके इस नए तेवर से न तो कांग्रेस और न ही महागठबंधन पर कोई असर पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में पहले से ही कांग्रेस हाशिए पर है. कांग्रेस का जनाधार बिहार में बहुत कम है. 1990 के बाद से ही बिहार में मुस्लिम वोटरों का टर्नअप हो चुका है जो आरजेडी के पास है.


अरुण पांडेय ने कहा कि मधुबनी से अब्दुल बारी सिद्दीकी भी चुनाव लड़ चुके हैं और उन्होंने बीजेपी को टक्कर तक दे दी थी. बीजेपी लगातार दो बार मधुबनी में सीट निकाल रही है. निश्चित तौर पर महागठबंधन में कांग्रेस को तीन से चार सीटें ही मिल सकती हैं. मधुबनी सीट आरजेडी अपने खाते में ले सकती है और मधुबनी वाली सीट पर फिर अब्दुल बारी सिद्दीकी चुनाव लड़ सकते हैं. शकील अहमद के इस निर्णय से मधुबनी सीट पर भी कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है.


जीतन राम मांझी ने हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की थी. बार-बार यह भी कह रहे हैं कि वह नीतीश कुमार के साथ हैं. एक तरफ यह बात कहते हैं तो दूसरी ओर चेतावनी भी देने से पीछे नहीं हटते. रविवार (16 अप्रैल) को ही पटना के एक होटल में मांझी ने कहा कि जब गहलोत के खिलाफ पायलट अनशन पर बैठ सकते हैं तो नीतीश कुमार के विरोध में मांझी क्यों नहीं? अरुण कुमार पांडेय कहते हैं कि जीतन राम मांझी या मुकेश सहनी यह सब अवसरवादी नेता हैं. यह बात सही है कि अभी जीतन राम मांझी महागठबंधन से अलग नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका बेटा बिहार सरकार में मंत्री है. उनके सभी बयान आगामी लोकसभा चुनाव में सीटों में बढ़ोतरी एवं कैबिनेट में संख्या बढ़ाने को लेकर है.


वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि लोकसभा की 40 सीटों में मांझी जान रहे हैं कि बहुत तो एक सीट या दो सीट उन्हें मिल सकती है. उनकी मंशा है कि लोकसभा में सीटों की संख्या तीन से चार हो, साथ ही पहले से भी वह कैबिनेट में दो मंत्री की मांग करते रहे हैं. रविवार को भी उन्होंने अपने बयान में दो विभागों की मांग की बात बताई थी. यह बात जीतनराम भी जानते हैं कि महागठबंधन में वे दलित की पार्टी के रूप में हैं और नीतीश कुमार भी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर लोक जनशक्ति पार्टी बीजेपी के साथ रहे तो मांझी को महागठबंधन में रखना जरूरी है. जेडीयू और आरजेडी जीतन राम मांझी की पूरी मांग तो नहीं मान सकते हैं लेकिन उन्हें पूरी तरह इग्नोर भी नहीं कर सकते हैं इसलिए मांझी अभी से ही दबाव बनाने की राजनीति शुरू कर चुके हैं.


यह भी पढ़ें- Bihar News: बिहार में अब जहरीली शराब पीने से मौत पर परिजनों को CM देंगे 4-4 लाख का मुआवजा, नीतीश ने रखी शर्त