पटनाः बिहार में शराबबंदी कानून की समीक्षा की बात करने वालों को शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी (Vijay Kumar Chaudhary) ने करारा जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि सिर्फ समीक्षा की बात का कोई अर्थ होता नहीं है. समीक्षा की बात करने वालों को जवाब देते हुए कहा कि बार-बार समीक्षा कहने के बजाए कानून के किस भाग या किस अंश, किस धारा से उनकी असहमति है, उसके बारे में ठोस सुझाव दें. वह आए तो कोई बात हो. अभी तक किसी ने कोई ठोस सुझाव नहीं दिया है कि इस बिंदु पर समीक्षा होनी चाहिए. विजय चौधरी की बातों से साफ हो गया कि अगर कोई अब समीक्षा की बात करता है तो वह सुझाव लेकर ही बात करे.


विजय कुमार चौधरी ने कहा कि सबसे पहले यह समझना होगा कि शराबबंदी का मकसद क्या था, शराबबंदी का मकसद था कि जो लोग शराब पीकर पब्लिक प्लेस पर कुछ करते थे तो भले अच्छे लोग शाम होते ही चौक-चौराहे पर निकलने से परहेज करते थे. उस स्थिति को दूर करने के लिए शराबबंदी लगाई गई थी. कामयाबी का ही दूसरा नाम सफलता है. हत्या, बलात्कार, लूट इन सबको जघन्य अपराध घोषित करके काफी सख्त सजा का प्रावधान किया गया. आज हत्याएं हो रही हैं, बलात्कार हो रहे हैं. सामान्य समझ की बात है कि कोई समाज हित का कानून है, अगर उसका उल्लंघन हो रहा है तो यह सबकी नैतिक जिम्मेदारी है कि सब लोग एक स्वर में कहें कि इसे और सख्ती से लागू करना चाहिए.


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सदन में सबने एक साथ लिया था संकल्प


शिक्षा मंत्री ने कहा कि संयोग से यह कानून जब बन तो वो बिहार विधानसभा के अध्यक्ष थे और वो सदन की अध्यक्षता कर रहे थे. जब यह कानून पास हुआ था सदन में सबकी सहमति थी उल्लास का माहौल था. सबने दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर एक साथ इसका समर्थन किया. आज जो लोग भी बोल रहे हैं पता नहीं किस कारण से बोल रहे हैं. सदन के आग्रह पर संकल्प कराया कि हम लोग सभी सदस्य ना हम पिएंगे और दूसरों को भी नहीं पीने के लिए प्रेरित करेंगे. कहा कि एनडीए विधायक दल की बैठक में सदन में इसकी जब बात आती है तो सिर्फ मांझी ही नहीं उनके निर्देश पर पूरा विधायक दल दोनों हाथ उठाकर इस विधेयक का समर्थन देते हैं, तो देखने-देखने का फर्क है.


मुख्य न्यायाधीश ने कभी कानून पर टिप्पणी नहीं की


इधर शराबबंदी को लेकर हाई कोर्ट की ओर से की गई टिप्पणी पर विजय चौधरी ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश महोदय ने जो बात कही है, वह सिर्फ कार्यान्वयन से जुड़ा हुआ है. न्यायालय में मामलों की संख्या बढ़ रही है. न्यायालय पर दबाव बढ़ रहा है. मुख्य न्यायाधीश ने कभी भी इस कानून के इंटेंट (इरादा) या कंटेंट पर कोई टिप्पणी नहीं की है. ना ही उन्होंने कहा है कि कानून गलत है.


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