बिहार: परिवार के आगे लालू यादव लाचार, कई नेताओं ने छोड़ा RJD का साथ, कई छोड़ने की तैयारी में
नेताओं की नाराजगी तेजस्वी से नहीं लालू यादव से है. इन नेताओं का कहना है कि परिवार के मोह में लालू उनकी अनदेखी कर रहे हैं.
पटना: रघुवंश प्रसाद सिंह को लालू यादव ने चिट्ठी लिख कर कहा 'आप कहीं नहीं जा रहे हैं'.. आरजेडी छोड़ने के बाद रघुवंश प्रसाद अब तक किसी दूसरी पार्टी में नहीं गए हैं.. लेकिन अपने फैसले से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.. जेल से लिखी लालू यादव की चिट्ठी का रघुवंश प्रसाद ने कोई जवाब भी नहीं दिया है. न ही इसकी जरूरत समझी. लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उन्होंने एक चिट्टी जरूर लिखी है. वो भी मनरेगा को लेकर
यूपीए सरकार में रघुवंश केंद्र में ग्रामीण विकास मंत्री हुआ करते थे.. लालू यादव से उनकी दोस्ती छात्र राजनीति से थी. सालों पुराना ये रिश्ता अब खत्म हो गया है. रघुवंश बाबू की तरह ही आरजेडी के कई पुराने नेता अब पार्टी से निकलने की तैयारी में हैं. उनकी नाराजगी तेजस्वी से नहीं लालू यादव से है. इन नेताओं का कहना है कि परिवार के मोह में लालू उनकी अनदेखी कर रहे हैं. आरजेडी में ऐसे नेता विधानसभा चुनाव से पहले पाला बदलने के मूड में हैं. पिछले कुछ महीनों में पार्टी के 10 विधायक आरजेडी छोड़ चुके हैं.
क्यों छोड़ी रघुवंश ने RJD रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी छोड़ रहे हैं, ये बहुत पहले से तय था. वे इन दिनों दिल्ली के एम्स में भर्ती हैं. उन्हें कोरोना हो गया था. आरजेडी छोड़ने का फैसला उन्होंने बहुत भारी मन से लिया. पिछले कुछ सालों से उन्हें आरजेडी में घुटन हो रही थी. कई बार उन्हें अपमान का घूंट पीना पड़ा. लालू के बड़े बेटे और विधायक तेज प्रताप यादव ने उनके लिए आपत्तिजनक बातें कही थीं. तेज ने रघुवंश बाबू के बारे में कहा था कि एक लोटा पानी निकल जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. रघुवंश तब पटना के एम्स में थे. उन्होंने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
बात तब बिगड़ी जब बाहुबली नेता रामा सिंह को आरजेडी में शामिल कराने का फैसला हुआ. रघुवंश ने इसका विरोध किया. रामा सिंह ने ही उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में हराया था. लेकिन रघुवंश की नहीं सुनी गई. उनकी ही तरह पार्टी के कई सीनियर नेताओं का अब लालू यादव से मोहभंग हो चुका है. सब की बस एक शिकायत है. इनका आरोप है कि लालू यादव अपने परिवार के बाहर कुछ सोच ही नहीं पाते हैं. उन्हें अब पार्टी नहीं बस परिवार की चिंता रह गई है. ऐसा कहने वाले वे लोग हैं जो दशकों तक लालू के साथ रहे. संघर्ष से लेकर सत्ता तक, लेकिन अब वे अलग रास्ते पर चलने का मन बना चुके हैं ..
लोकसभा चुनाव बाद से ही पार्टी में कुछ अच्छा नहीं 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से ही आरजेडी में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है. लालू यादव रांची जेल में हैं. वहीं से सारे फैसले करते हैं, जिसे लेकर पार्टी में भारी असंतोष है. 2019 में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पटना में राबड़ी देवी के घर मीटिंग हुई थी. इस बैठक में रघुवंश प्रसाद सिंह ने तेज प्रताप यादव पर कार्रवाई की मांग की थी. उससे पहले उन्होंने लालू यादव को चिट्ठी लिखकर तेजस्वी यादव की शिकायत की थी. उन्होंने कहा था कि चुनाव नतीजे आने के बाद चार महीनों तक तेजस्वी गायब रहे. वे लगातार पार्टी में काम काज के तरीके बदलने की मांग करते रहे, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई.
शिवानंद तिवारी बस कहने भर के लिए RJD में.. लालू यादव के करीबी सीनियर नेताओं से कोई राय मशविरा नहीं किया जाता है. लालू राबड़ी सरकार में मंत्री रहे एक नेता ने बताया कि पार्टी अब बस फैमिली रह गई है. जिसमें सब आपस में लड़ते रहते हैं. तेजस्वी बनाम तेज प्रताप, तो कभी मीसा बनाम तेजस्वी. महीनों तक पार्टी तेज प्रताप और उनकी पत्नी रहीं ऐश्वर्य के झगड़े में फंसी रही. इस चक्कर में पार्टी की दशा और दिशा खराब होती गई. आरजेडी के सीनियर नेता इस हालात के लिए तेजस्वी नहीं बल्कि लालू यादव को कसूरवार मानते हैं. लालू यादव और शिवानंद तिवारी जेपी मूवमेंट से साथ रहे हैं लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तिवारी का अब पार्टी से मन टूट गया है. लंबे समय से उन्होंने पार्टी के कार्यक्रम में जाना छोड़ दिया है. बाबा के नाम से मशहूर तिवारी अब बस कहने भर के लिए आरजेडी में हैं..
अब्दुल बारी सिद्दीकी आरजेडी के वरिष्ठ नेता हैं. कई बार के विधायक हैं. ईमानदार छवि रही है, लेकिन पार्टी में किसी फैसले के बारे में उनसे कोई राय नहीं ली जाती है. जेडीयू की तरफ से कई बार उन्हें पार्टी बदलने का ऑफर मिला, लेकिन वो लालू यादव के सिपाही बने रहे. पिछले महीने उनसे मुलाकात हुई थी. तेजस्वी यादव के साथ वे दरभंगा के बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा कर रहे थे. पार्टी के हालात को लेकर वे दुखी थे. कोरोना से संक्रमित होने के बाद वे इन दिनों अस्पताल में हैं.
फैमिली के आगे लालू लाचार पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरजेडी के सीनियर लीडर अली अशरफ फातमी पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं. मिथिलांचल में उनका अच्छा खासा प्रभाव है. पिछले ही महीने उनके विधायक बेटे ने भी जेडीयू का हाथ थाम लिया है. पिछले लोकसभा चुनाव में लालू चाहते थे कि फातमी मधुबनी से लड़ें. लेकिन तेजस्वी यादव ने विरोध कर दिया. बाद में फातमी ने लालू का ही साथ छोड़ दिया. फातमी कहते हैं कि फैमिली के आगे लालू लाचार हो गए हैं. उन्हें सिफ अपने परिवार की चिंता है.
तेजस्वी यादव की तरह ही तेज प्रताप यादव ने भी लोकसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार का विरोध किया था. विरोध ही नहीं उन्होंने तो खिलाफ में चुनाव प्रचार भी किया था. तेज के ससुर रहे चंद्रिका राय सारण से आरजेडी के उम्मीदवार थे. लालू ने उन्हें टिकट दिया तो बेटे ने बगावत कर दी. चंद्रिका हारे लेकिन पार्टी के कई नेताओं के कहने पर भी उन्होंने तेज प्रताप पर कोई कार्रवाई नहीं की. राज्यसभा से लेकर विधान परिषद में कौन जाएगा ? लालू यादव इस पर किसी से कोई राय नहीं लेते हैं. विधानसभा चुनाव सिर पर हैं लेकिन क्या करना है ? किसी सीनियर लीडर को कुछ नहीं पता है. पिछले दो महीनों में कई विधायक आरजेडी छोड़ चुके हैं. लालू के समधी चंद्रिका राय, प्रेमा चौधरी, जयवर्धन यादव, अशोक कुमार और फराज फातमी इस लिस्ट में हैं. खबर है कि चुनाव से पहले कई और भी नेता रघुवंश बाबू की तरह पार्टी को अलविदा कहने के मूड में हैं.
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