(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
बिहार: पूर्णिया कॉलेज के कमरे में बैठकर राष्ट्रकवि दिनकर ने की थी इस महाकाव्य की रचना, आज भी महफूज रखी है उनकी कलम
द्विज जी के ही प्रधानाध्यापक रहते हुए उनके करीबी मित्र और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का पूर्णिया आना हुआ. दिनकर और द्विज की दोस्ती उस जमाने में एक मिसाल थी. पूर्णिया पहुंचकर दिनकर जी ने एक कमरे में बैठकर रश्मिरथी की रचना की और ये जगह इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया.
पूर्णिया: बिहार के पूर्णिया जिले और साहित्य का लगाव ऐतिहासिक रहा है. पूर्णिया में फणीश्वरनाथ रेणु और सुधांशु जैसे साहित्यकार से लेकर द्विज तक ने अपनी अमिट पहचान छोड़ी है. जिले के पूर्णिया कॉलेज में बनी लाइब्रेरी भी ऐतिहासिक है. यहीं भारत के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी रचना "रश्मिरथी" लिखी थी. पूर्णिया कॉलेज के पुस्तकालय में आज भी रश्मिरथी की किताबें मिलेंगी.
पहले इस लाइब्रेरी की हालत खस्ता थी. लेकिन बीते कुछ माह में नए सत्र के लिए लाइब्रेरी का कायाकल्प बदला है. साफ सफाई से लेकर साज सज्जा और व्यवस्था भी दुरुस्त हुई है. पहले के मुकाबले अब ज्यादा बच्चे लाइब्रेरी में अपनी पढ़ाई करते दिख रहे हैं.
द्विज के कार्यकाल में पूर्णिया कॉलेज की पहचान
साल 1948 में पूर्णिया कॉलेज की स्थापना हुई थी. इसी साल से लगभग 15 सालों से कुछ ज्यादा समय तक हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हजारी प्रसाद झा "द्विज" यहां के प्रधानाध्यापक रहे. इन डेढ़ दशक से ही पूर्णिया कॉलेज उत्तरी बिहार में बड़ा नाम बनाना शुरू कर चुका था.
60 के दशक में दिनकर आए थे पूर्णिया
द्विज जी के ही प्रधानाध्यापक रहते हुए उनके करीबी मित्र और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का पूर्णिया आना हुआ. दिनकर और द्विज की दोस्ती उस जमाने में एक मिसाल थी. पूर्णिया पहुंचकर दिनकर जी ने एक कमरे में बैठकर रश्मिरथी की रचना की और ये जगह इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया.
दिनकर की याद में बनाया गया पुस्तकालय
समय बीतने के बाद जिस कमरे में बैठकर दिनकर जी ने रश्मिरथी की रचना की थी, पूर्णिया कॉलेज ने उस कमरे को पुस्तकालय बना दिया और बिहार के इस प्रांत में एक ऐतिहासिक पुस्तकालय का निर्माण हुआ. जानकार बताते हैं कि जिस कलम से रश्मिरथी लिखी गयी थी वो कलम आज भी पूर्णिया कॉलेज के इस पुस्तकालय में हिफाज़त से रखी हुई है. इसके अलावा एक बड़ी सी अंग्रेज़ी में पुस्तक भी इस पुस्तकालय में देखने मिलेगी जिसमें साहित्य से जुड़ी ऐतिहासिक कहानियां हैं.
नए सत्र के लिए बदला कायाकल्प
इस लाइब्रेरी में बीते साल जब कुछ स्थानीय पत्रकार पहुंचे तो हाल बेहद खस्ता दिखे. दिनकर के कमरे में मकड़े के जाले बिछे पड़े थे और अंधेरा ऐसा की मानो दिनकर ने खमोश होकर अपने रश्मिरथी को कहीं छुपा रखा हो. पुस्तकालय के रीडिंग रूम में तनहाईयों में बीच किताब अपने जिल्द पलटने का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा हो. पत्रकारों ने इस जर्जर हालात को जब दुनिया के सामने लाई तो असर भी हुआ और लाइब्रेरी का आज कायाकल्प हो गया है. इतना ही नहीं दिनकर जी का कमरा आज रौशन है.