बिहार: आरा के ऐतिहासिक बेलाउर छठ घाट पर पसरा सन्नाटा, हर साल देश-विदेश से आते थे हजारों श्रद्धालु
आरा के बेलाउर गांव में काफी प्राचीन सूर्य मंदिर है, ऐसे में बेलाउर को भगवान भास्कर की नगरी भी कहा जाता है. यहां राजा द्वारा बनवाए गए 52 तालाबों में से एक तालाब के बीच में यह सूर्य मंदिर स्थित है, जहां छठ महापर्व के दौरान हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते थे.
आरा: नहाय-खाय के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत हो गई है. हालांकि, कोरोना काल की वजह से इस बार श्रद्धालुओं में उमंग और उत्साह कम दिख रहा है. बिहार के आरा स्थित सूबे के ऐतिहासिक बेलाउर छठ घाट पर भी इस बार कम चहल पहल देखने को मिल रहा है. बता दें कि बेलाउर का सूर्य मंदिर श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है. बेलाउर गांव में मौनी बाबा द्वारा बनाए गए काफी प्राचीन सूर्य मंदिर में छठ पर्व पर हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते थे. देश-विदेश से लोग भगवान भास्कर को अर्घ्य देने पहुंचे थे, लेकिन इसबार छठ पूजा की छटा पहले की तुलना में काफी कम है. कोरोना के कारण विदेश या अन्य प्रदेशों से छठ व्रती इस बार नहीं आ पाए हैं.
मालूम हो कि आरा के बेलाउर गांव में काफी प्राचीन सूर्य मंदिर है, ऐसे में बेलाउर को भगवान भास्कर की नगरी भी कहा जाता है. यहां राजा द्वारा बनवाए गए 52 तालाबों में से एक तालाब के बीच में यह सूर्य मंदिर स्थित है, जहां छठ महापर्व के दौरान हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते थे. लेकिन इस बार बेलाउर घाट पर पहले जैसी तैयारी नहीं की गई है. नहाये खाये के दिन भी बेलाउर पोखरे पर श्रद्धालुओं की भीड़ नहीं दिखी.
बता दें कि बेलाउर में छठ व्रत करने का अपना खास महत्व है. यहां भगवान सूर्य का ऐसा भव्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिभिमुख है. आरा-सहार मुख्य पथ पर स्थित बेलाउर का सूर्य मंदिर में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु विभिन्न जिलों से मन्नत पूरी होने पर उज्जवल भविष्य की कामना करने के लिए आते रहते हैं.
बेलाउर छठ घाट और यहां की ऐतिहासिक मंदिर के बारे में कहा जाता है कि करवासीन के रहने वाले मौनी बाबा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. इसके पूर्व उन्होंने 12 वर्षो तक साधना की थी, जैसा की लोग बताते हैं. उसी क्रम में भगवान सूर्य की मंदिर बनवाने की इच्छा प्रकट की. मंदिर में सात घोड़े वाले रथ पर सवार भगवान भास्कर की प्रतिमा ऐसी लगती है मानों वे साक्षात धरती पर उतर रहे हों. उनकी मनोरम छवि का दर्शन कर श्रद्धालु संतुष्ट हो जाते हैं. मंदिर के चारों कोने पर मकराना संगमरमर से बनी दुर्गा जी, शंकर जी, गणेश जी और विष्णु जी की प्रतिमा है. पोखरा के ठीक बीचोंबीच निर्मित मंदिर आकर्षक और भव्य दिखाई पड़ती है. सूर्य मंदिर समिति के सदस्यों ने बताया कि छठ व्रतियों की सुविधाओं और व्यवस्था के लिए काफी सदस्य सक्रिय हैं.
स्थानीय निवासी विनय बेलाउर बताते हैं कि कोरोना काल में स्थिति पहले के जैसा बिलकुल भी नहीं है. हर साल की तुलना में इस साल छठ घाट कम बनाये गए हैं. इसके साथ ही लोगों में भी उत्साह की कमी साफ़ तौर पर दिख रही है. राज्य सरकार और स्थानीय जिला प्रशासन की ओर से छठ को लेकर जो गाइडलाइन जारी की गई है, उसका पूरा ख्याल रखते हुए पूजा समिति तैयारी में जुटी हुई है.
उन्होंने आगे बताया कि दूसरे सूर्य मंदिरों की तुलना में इस मंदिर की कुछ भिन्न किस्म की विशेषता है. इसका मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है. यहां एक मौनी बाबा हुआ करते थे, जिन्होंने बेलाउर में बारह वर्षों तक साधना की थी. एक दिन उन्हें जागरण हुआ कि गांव में सूर्य मंदिर बनवाया जाए. इसके निर्माण से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है. बाबा ने बनारस जाकर मूर्ति खरीदी. लेकिन संयोग से वही मूर्ति जयपुर के राजा को भी पसंद आ गई. मामला कोर्ट में चला गया. न्यायालय ने बाबा को मूर्ति देने का आदेश दिया और तब इस मंदिर की स्थापना हुई.
बेलाउर सूर्य मंदिर विकास समिति के सदस्य बताते हैं कि छठ पूजा का काफी महत्त्व है. कोरोना वैश्विक महामारी में भी श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं. हालांकि, पहले की तुलना में इस बार भीड़ कम है. कोरोना के कारण विदेश से श्रद्धालु नहीं आये हैं. सरकार ने गाइडलाइन जारी है, जिसको देखते हुए इस साल मेला भी नहीं लगेगा. दुकानदारों को भी मना कर दिया गया है. छठ घाट पर इस बार एक भी दुकान नहीं सजेगी.