हाजीपुर: देश के अन्नदाताओं को सम्मान और फसलों की सही कीमत मिले इसके लिए धान की सरकारी खरीद और एमएसपी की व्यवस्था लागू है. एमएससी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की घोषणा के साथ दावा किया जाता है कि किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य दिया जाएगा. लेकिन एमएसपी की घोषणा होने के बाद भी किसानों को उनके धान का सही मूल्य नहीं मिल पाता है. लिहाजा उन्हें औने-पौने दाम में बिचौलियों को धान बेचना पड़ता है.


धान की फसल को तैयार हुए अब महीने से ज्यादा गुजर चुका है. फसल खेतों से कटकर कब का किसानों के दरवाजे पर आ चुका है. लेकिन तैयार और कटी हुई फसल किसानों के लिए खुशी से ज्यादा बोझ बनती जा रही है. लागत हासिल करना और नई फसल के लिए पैसे का इंतजाम करना किसानों के लिए चुनौती बनी हुई है. किसानों के बीच जल्दी फसल बेचने की होड़ लगी हुई है.


बिहार सरकार ने भी धान अधिप्राप्ति के लिए सभी पैक्सों को आदेश दे दिया है. साथ ही प्रति क्विंटल धान की एमएसपी 1868 रुपये तय की गई है. लेकिन पैक्सों का सुस्त और लापरवाह रवैया किसानों के लिए आफत बनती जा रही है. किसानों की मानें तो पैक्सों द्वारा धान की खरीद नहीं की जा रही है, ऐसे में वो एमएसपी से कम मूल्य में बिचौलियों के धान बेचने को मजबूर हैं. इस स्थिति में सरकारी तंत्र पर सवाल उठना लाजमी है.


बता दें कि बिहार के अन्य जिलों के अलग-अलग पंचायतों के पैक्स द्वारा किसानों से धान खरीद की प्रक्रिया 23 नवंबर से शुरू है. लेकिन हाजीपुर के कुल 192 पंचायतों में से केवल 173 पंचायतों में ही धान की खरीद शुरू हो पाई है. इस बार जिले में 1,14,238 मीट्रिक टन धान की उपज हुई है , लेकिन सरकार ने कुल धान के 30% से भी कम 30 हजार मीट्रिक टन की खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया है. सरकारी खरीद की शुरुआत के 20 दिन गुजर जाने के बाद अभी तक लक्ष्य के अनुसार केवल 4 फ़ीसदी धान की ही खरीद हो पाई है.


बता दें कि जिले की कुल जनसंख्या लगभग 30 लाख की है, जिसमें से अभी तक महज 145 किसानों को एमएसपी की दर पर अपने धान को बेचने का सौभाग्य मिल पाया है. विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि आधी अधूरी तैयारियों और सिस्टम के झोल की वजह से खरीदारी नहीं हो पाती है.


इस संबंध में जिला सहकारीता पदाधिकारी विजय कुमार सिंह ने कहा कि कई पंचायतों में धान के भंडारण के लिए गोदाम तैयार नहीं है और किसानों से धान खरीद के लिए जो रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया है, उसकी वजह से बहुत कम किसान रजिस्टर्ड हुए हैं. इसी वजह से खरीद की रफ्तार धीमी है. अभी तक महज 4 फीसदी ही खरीद हुई है.


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