सुपौल : बिहार पुलिस के कई ऐसे मामले पहले भी देखे गए हैं जिनमें अक्सर कई मामलो को टेबल पर ही सुपरवाईज कर दी जाती है जिसका अंजाम ये होता है कि निर्दोष लोगो को सजा भुगतनी पड़ती है. ऐसा हीं एक मामला देखने को मिला जहां सुपौल सदर के सोनक से एक शख्स ने सदर थाने में अपने भाई के अपहरण का मुकदमा दर्ज करवाया. इस मामले में पुलिस ने आठ नामजद आरोपियों में से एक को जेल भी भेज दिया.


एक साल बाद अपहृत शख्स गांव पहुंचा और उसने अपहरण होने से इनकार किया बल्कि उसके दो बेटो ने अपने चाचा पर जमीनी विवाद को लेकर गांव के 8 निर्दोष लोगो को फसांये जाने का खुलासा किया हांलाकि इस बाबत अपहृत शख्स ने सदर के नए SDPO पुलिस के समक्ष अपना बयान दर्ज करवा दिया है.


सुपौल सदर थाना कांड संख्या 13 /2020 दिनांक 04 जनवरी 2020 को मामला जिले के मल्हनी पंचायत के सोनक गांव वार्ड 06 में भूमि विवाद को लेकर मो नागो और मो उमर में लड़ाई हुई थी जिस दौरान मो नागो ने सदर थाना में लिखित शिकायत दर्ज करवाया की उसका भाई मो मुस्ताक को गांव के मो उमर समेत 8 लोगो ने मारपीट कर अपहरण कर लिया.


सदर थाने की पुलिस ने 8 नामजद लोगो के खिलाफ FIR दर्ज कर ली. जिस दौरान सुपौल सदर के तत्कालीन SDPO विद्यासागर ने अपने सुपरविजिन रिपोर्ट में मामले को सत्य करार देते हुए 8 नामजद आरोपियों को दोषी मानते हुए अपहरण होने की बात लिख डाली और एक नामजद आरोपी को 6 मार्च 2020 को जेल भी भेज दिया.


अब आरोपी बनाये गए शख्स जेल से बाहर निकले 2 महीने 7 दिन जेल काटने के बाद बोले कि पुलिस ने झूठा केस को सत्य साबित के एवेज में तत्कालीन SDPO ने 75 हजार रूपये बतौर रिश्वत लेकर फसाए जाने का आरोप लगाया है. वही अपहृत शख्स मुस्ताक अब गांव पहुंचा तो उसके दोनों बेटे निर्दोष फंसाये गए लोगो के साथ खड़े दिखे.


उन्होंने कहा कि पुलिस पदाधिकारी ने उस वक्त ना उनसे कुछ जाँच पड़ताल और बयान ही लिया बल्कि उनलोगो का कहना है की मेरे पिता दिल्ली में नोएडा में राजमिस्त्री का कार्य कर रहे थे और भूमि विवाद में डेढ़ कट्टा जमीन के खातिर मेरे दो चाचा ने मिलकर गांव के पड़ोस में रहने वाले 8 लोगो को फसा दिया.


हांलाकि दिल्ली पुलिस के सहयोग से अपहृत शख्स सुपौल सदर थाने तक पहुँच गया. अब सदर के नए SDPO नए तरीके से पुलिस द्वारा अपहरण के मामले में अपहृत शख्स मुस्ताक का बयान दर्ज कर लिया है साथ ही उनलोगो को इस मामले से बरी करने की कार्रवाई में जुट गए है.


बहरहाल इस मामले में पुलिस अधिकारी ने अगर ठीक से जाँच किया होता तो एक शख्स को 2 महीने 7 दिन जेल नहीं काटनी पड़ती आखिर ऐसे गैर जिम्मेदार पुलिस अधिकारी जो टेबल रिपोर्ट तैयार कर निर्दोष को सजा दिलाने में तनिक भी देर नही करते उन पर सरकार को कार्रवाई जरुर करनी चाहिए.