Bihar Politics: सुशील मोदी का 'रामबाण', बिना नाम लिए जीतन राम मांझी पर साधा निशाना, कह दी ये बड़ी बात
सुशील मोदी ने कहा, " श्रीराम ऐसे विराट व्यक्तित्व थे कि उनके जीवन से भारत ही नहीं कई देशों की संस्कृति प्रभावित हुई. उन्हें काल्पनिक बताकर करोड़ों हिंदुओं की भावनाएं आहत नहीं करनी चाहिए."
पटना: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ( Jitan Ram Manjhi) ने भगवान राम के संबंध में विवादित टिप्पणी कर सूबे का सियासी पारा चढ़ा दिया. हम अध्यक्ष के बयान से बीजेपी नेता काफी खफा दिख रहे हैं. इसी क्रम में बीजेपी नेता सह प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने मांझी के बयान पर पलटवार किया है. उन्होंने बगैर किसी का नाम लिए भगवान राम के महत्व और समाज में उनके अस्तित्व के संबंध में बताया है.
हिंदुओं की भावनाएं नहीं करनी चाहिए आहत
उन्होंने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा, " मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारतीय इतिहास, संस्कृति और परम्परा के नायक ही नहीं, हमारे पुरखा हैं. उनके समकालीन महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के रूप में, जिनका इतिहास लिखा और जिनके होने के अमिट प्रमाण अयोध्या से श्रीलंका के राम सेतु तक उपलब्ध हैं, उन पर अनर्गल बयान देकर किसी को भी करोड़ों हिंदुओं की भावनाएं आहत नहीं करनी चाहिए. जिन दलों या लोगों ने क्षुद्र राजनीतिक हितों के दबाव में ऐसे बयान दिए, वे राम-भक्त समाज के चित से ही उतर गए."
सुमो ने कहा, " श्रीराम ऐसे विराट व्यक्तित्व थे कि उनके जीवन से भारत ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया सहित कई देशों की संस्कृति प्रभावित हुई. जो उनको काल्पनिक बताने का दुस्साहस कर रहे हैं, वे दरअसल आदि कवि वाल्मीकि, उनके आश्रम में पले सीता पुत्र लव-कुश, निषादराज केवट और भक्त शिरोमणि शबरी को भी नकारने की कोशिश कर रहे हैं."
ओछी राजनीति कभी नहीं होगी सफल
राज्यसभा सांसद ने कहा, " यह कहना हास्यास्पद ही है कि कोई स्वयं को शबरी का पुत्र बताए, लेकिन माता शबरी ने जिनकी भक्ति से संत समाज में अक्षय कीर्ति पाई, उस महानायक श्री राम को ही काल्पनिक बता दे. आस्था पर चोट और समाज को बांटने की ऐसी ओछी राजनीति कभी सफल नहीं होगी."
बता दें कि प्रदेश के गया जिले के लछुआड़ में बाबा भीम राव अंबेडकर (Baba Bheem Rao Ambedkar) की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष मांझी ने कहा था कि मैं राम को भगवान नहीं मानता. वे केवल गोस्वामी तुलसीदास और बाल्मीकि की रचना के एक पात्र थे. ऐसे में उन्हें (गोस्वामी तुलसीदास और वाल्मीकि) तो मानता हूं, लेकिन राम को नहीं मानता. इसी बयान पर विवाद जारी है.
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