पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के पिछले तीन चुनावों में किसी एक गठबंधन को ही पूर्ण बहुमत मिलता रहा है, चाहे वह एनडीए हो या महागठबंधन जिसकी भी जीत हुई उसकी पूर्ण बहुमत से सरकार बनी. वर्ष 2005 अक्टूबर का चुनाव हो या 2010 या फिर 2015 का यही परंपरा तीनों चुनाव में दिखी ऐसे में इस बार का चुनाव परिणाम कैसा होगा इस पर सबकी नजरें टिकी है हालांकि इसका खुलासा तो 10 नवंबर को हीं होगा.


साल 2005 में बिहार विधान सभा का दो बार हुआ था चुनाव


विधान सभा के साल 2005 के चुनाव की बात करें तो 2005 में दो बार चुनाव हुए, 2005 फरवरी में हुए चुनाव में किसी भी गठबंधन या दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हो सकी थी जिसका परिणाम यह हुआ कि सरकार का गठन नहीं हो सका और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगानी पड़ी. वही 7 महीने के अंदर ही 2005 में अक्टूबर-नवंबर में फिर से चुनाव हुआ. 2005 अक्टूबर में हुए चुनाव में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिली, एनडीए को 143 सीट मिली जबकि बहुमत के लिए 122 की जरूरत थी. इनमें जेडीयू को 88 और बीजेपी को 55 सीटें थी. साल 2010 के चुनाव में भी एनडीए की जीत हुई और इस बार एनडीए के खाते में 206 सीटें आईं और उन्हें जीत हासिल हुई इसमें जेडीयू के खाते में 115 सीटें आईं वहीं बीजेपी के खाते में 91 सीट आईं थी.


2015 में महा गठबंधन को बहुमत मिली थी


बिहार विधान सभा के साल 2015 के चुनाव में एनडीए की जगह जनता ने महागठबंधन को पूर्ण बहुमत दिया. महागठबंधन को 178 सीटें मिली. महागठबंधन के तहत आरजेडी के 80 जेडीयू के 71 और कांग्रेस के 27 प्रत्याशियों ने जीत इस चुनाव में जीत का परचम लहराया था.और महागठबंधन की सरकार बनी थी. जो बाद में टूट गई और फिर से सत्ता में एनडीए के कॉम्बिनेशन से सरकार का गठन हो गया जो वर्तमान में चल रहा है.
अब जब साल 2020 का चुनाव चल रहा है और ऐसे में 10 नवंबर को इसका खुलासा होगा कि जनता किस के सर पर ताज पहनाती है इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हैं तमाम राजनैतिक दल अपने-अपने दावे और तर्क दिए हैं पर मतदाता अपना पत्ता नहीं खोल रहे हैं मतदाता अपना मत चुपचाप ईवीएम में दर्ज करने का मन बना चुके हैं जिसका परिणाम 10 नवंबर को आएगा और इसके साथ ही होगा खुलासा की जनता ने किसे अपना बहुमत दिया है और अगले 5 सालों तक बिहार की सत्ता की चाबी किसके हाथों में थमेगी, इसका इंतजार नेता और जनता सबको है.