औरंगाबाद के बीरेंद्र ने BPSC में लहराया परचम, जानें कैसे अंडे की दुकान से तय किया ऑफिसर बनने का सफर
घर की माली स्थिति बेहद खराब होने की वजह से बीरेंद्र ने अंडे की दुकान खोल ली. इस व्यवसाय के साथ-साथ बीरेंद्र ने पढ़ाई भी जारी रखी. जब ग्राहक नहीं रहते, तो वे दुकान पर ही पढ़ाई करते थे. इसी मेहनत की वजह से उन्हें आज यह सफलता मिली है.
औरंगाबाद: बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की 64वीं सिविल सेवा संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में परचम लहराने वाले बीरेंद्र की कहानी काफी प्रेरणादायक है. अंडे की छोटे से दुकान से ऑफिसर बनने तक का सफर किसी सपने से कम नहीं है. सूबे के औरंगाबाद जिले के कर्मा रोड स्थित छोटे से गुमटी में बैठकर अंडे बेचने वाले बीरेंद्र के लिए बीपीएससी क्रैक करना एक सपना था, जिसे उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से साकार किया.
पिता की मौत के बाद छोड़ दिया गांव
औरंगाबाद जिले के बारुण प्रखंड के एक छोटे से गांव हाथीखाप के रहने वाले बीरेंद्र के पिता भिखारी राम पेशे से मोची थे और दूसरे के फटे जूते सिलकर वे अपने तीन बच्चों की परवरिश करते थे. लेकिन साल 2012 में पिता की मौत के बाद तीनों भाइयों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. मां के साथ सभी ने गांव छोड़कर शहर का रुख किया. घर की जिम्मेवारी बड़े भाई जितेंद्र के कंधे पर आ गई. शहर आकर सबों ने कर्मा रोड के दलित बस्ती में किराए पर दुकान लिया और जीवन की गाड़ी खिंचने लगे.
इधर, बीरेंद्र ने पढ़ाई का जुनून नहीं छोड़ा. घर की माली स्थिति बेहद खराब होने की वजह से बीरेंद्र ने अंडे की दुकान खोल ली. इस व्यवसाय के साथ-साथ बीरेंद्र ने पढ़ाई भी जारी रखी. जब ग्राहक नहीं रहते, तो वे दुकान पर ही पढ़ाई करता था. धीरे-धीरे घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक हुई तो बड़े भाई ने बैग का एक छोटा सा दुकान खोला, जहां चमड़े के बैग समेत अन्य सामग्रियों की बिक्री होने लगी.
दुकान छोड़कर पढ़ाई पर लगाया ध्यान
आर्थिक स्थिति ठीक होने के बाद बड़े भाई जितेंद्र ने अपने छोटे भाई को दुकान छोड़कर सारा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित करने के लिए कहा. दोनों भाईयों ने बाबा भीमराव अंबेडकर की जीवनी को अपने हृदय में आत्मसात करते हुए हर कठिन और विषम परिस्थिति का सामना करने की ठानी. बीरेंद्र ने दुकान बंद कर बगल के ही एक प्रतियोगी राजीव कुमार जिन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली से पूरी की थी, उनका साथ लिया और उनके मार्गदर्शन में अपनी पढ़ाई शुरू की.
धीरे-धीरे बैच बना और सबों ने कम्पीटिशन को फतह करने की ठानी, लेकिन सफलता बीरेंद्र ने हासिल की. उन्होंने बीपीएससी की परीक्षा में 201वां स्थान प्राप्त किया. उनके इस कामयाबी से परिजन काफी खुश हैं. आज बीरेंद्र के दो कमरों के घर पर बधाई देने वालों की भीड़ लगी हुई है. उन्होंने यूपीएससी फतह करने का लक्ष्य रखा है. उन्होंने यह संकल्प लिया है कि गरीब तबके के बच्चे जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उनकी मदद कर वे सफलता के मार्ग को प्रशस्त करेंगे.
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